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फरमान अली
केंद्र की भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व वाली राजग सरकार ने संशोधित वक्फ बोर्ड बिल पास कर दिया और राष्ट्रपति ने उसको मंजूरी भी दे दी। अब वक्फ कानून आठ अप्रैल से देशभर में लागू हो गया है। इस बिल के क्या फायदे होंगे क्या नुकसान होगा यह बात इतर है ,लेकिन इस ऐतिहासिक कदम के बाद उन मुस्लिम रहनुमाओं को अपने गिरेबां में झांकना होगा कि आखिर केंद्र सरकार को यह कदम क्यों उठाना पड़ा? वक्फ बोर्ड की भूमि की बंदरबाट, भ्रष्टाचार और कुछेक परिवारों का कब्जा इसकी प्रमुख है। आज वक्फ बोर्ड की हजारों एकड़ जमीन अदालती झमेलों में फंसी है। आखिर ऐसा क्यों हुआ? इस विकट स्थिति के लिए आखिरकार कौन जिम्मेदार है। अब यह सवाल तो उठेगा ही और रहनुमाओं को जवाब देना चाहिए।
संशोधित बिल पास होने के बाद जहां सुप्रीम कोर्ट में धड़ाधड़ याचिकाएं डाली जा रही हैं, वही एक हारे हुए जुआरी की तरह मुस्लिम रहनुमा भी केवल और केवल खोखली बयानबाजी कर रहे हैं। साथ ही कथित तौर पर उनके रहनुमा कहे जाने वाले राजनीतिक दलों के नेता क्यों चुप्पी साधे हुए हैं। यह सवाल भी देश पूछ रहा है।
इस बिल का क्या असर होगा? क्या आम मुसलमान को इसका लाभ मिल पाएगा ? अभी हम इस बहस पर नहीं जाना चाहते लेकिन हमारा मानना है कि मुसलमान वक्फ प्रॉपर्टी के केयरटेकरों को इस पर गंभीरता से सोचना होगा। पिछले सैकड़ों सालों के दौरान वक्फ संपत्ति के साथ ये लोग कितना इंसाफ कर पाए हैं? यह किसी से छुपा नहीं है। उनके बुजुर्गों ने समाज लिए जो जमीन और अपनी कीमती संपत्ति वक्फ की थी, उनका क्या मकसद था ? क्या इन केयरटेकरों ने उनके मकसद के हिसाब से आम लोगों को या आम मुसलमान को उनका हक देने की कभी कोशिश की या फिर माफिया या बड़े पैसे वालों को वक्फ की संपत्ति चंद पैसों में लेकर सौंप देने का काम किया? अब सरकार ने एक कदम उठाया तो ये लोग क्यों लोग बिलबिला रहे हैं। क्या इन लोगों को पहले नहीं सोचना चाहिए था कि आखिर वक्फ की संपत्ति की बंदरबांट क्यों हो रही है? मुसलमान की शिक्षा और बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए आखिर इन लोगों ने काम क्यों नहीं किया किया। वक्फ संपत्ति का बंदरबाट करना या फिर अपने परिवार के लोगों का लालन-पोषण करना ही इनका मकसद रह गया था? यह बहुत बड़ा सवाल है। इस सवाल का जवाब आज समुदाय की जनता को इन लोगों को देना होगा। आखिर क्यों इस्लामी सिद्धांतों के मुताबिक यह लोग यह इंसाफ नहीं कर पाए। यह बेहद गंभीर मामला है । आगे इस तरह के मसले ना हों तो मुस्लिम रहनुमाओं को अब इस पर पहल करनी होगी। गंभीरता दिखानी होगी और गंभीर मंथन करना होगा। हूबहू इस्लाम में जो मकसद इस तरह के मामलों में दिया गया ,उसके अनुरूप काम करना होगा। यदि यह लोग ऐसा करते तो शायद वक्फ संशोधन बिल की आवश्यकता नहीं पड़ती।
हम यह नहीं कहते कि इसको लेकर सरकार की मंशा अच्छी है या बुरी। यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन कहीं ना कहीं तो गड़बड़, भ्रष्टाचार और घोटाले थे और इस गड़बड़ी के विरोध में आज तक कोई भी रहनुमा क्यों नहीं आगेआया । सबसे बड़ा सवाल यही है।
आम मुसलमानों को भी इस पर पैनी नजर रखनी होगी। उन्हें रहनुमाओं से सवाल करने होंगे। न कि इस्लाम के नाम पर उनके समर्थन में हां में हां मिलानी होगी। आम लोगों को इस पर सवाल करना चाहिए कि आखिर इसकी नौबत क्यों आई ? आगे उनकी क्या मंशा है?
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद