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मंदसौर, 26 अप्रैल (हि.स.)। राष्ट्रसंत ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि इस जिंदगी को हम भुनभुनाते हुए नहीं गुनगुनाते हुए जीएं। अपने जीवन का पहला मूलमंत्र इसे बना लें कि मैं यह जीवन आह... आह... करके नहीं वाह... वाह... कहते जीऊंगा। जब भी हम वाह... कहते हैं तो यही जिंदगी हमारे लिए स्वर्ग बन जाती है और जब हम आह.. . कहते हैं तो जिंदगी नर्क-सी हो जाती है। अगर हमारे लिए थाली में भोजन आया है तो शुक्रिया अदा करो देने वाले भगवान का, अन्न उपजाने वाले किसान का और घर की भगवान का। जरा कल्पना करें आज से 50 साल पहले लोगों के पास आज जैसा भौतिक सुख भले कम था पर सुकून बहुत था। उस वक्त जब सुकून बहुत था, तो आदमी बड़े चैन से सोता था। आज सुख है तो भी लोग पूरी रात चैन से सो नहीं पाते। आज आदमी की जिंदगी कैसी गजब की हो चुकी है, बेडरूम में एसी और दिमाग में हीटर।
संतप्रवर नई आबादी स्थित संजय गांधी उद्यान में आयोजित दो दिवसीय प्रवचन माला के प्रथम दिवस शनिवार को श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हमारा यह जीवन परम पिता परमात्मा का हमारे लिए दिया हुआ बहुत बड़ा वरदान है। यदि कोई मुझसे पूछे कि दुनिया में सबसे कीमती वस्तु क्या है तो मैं कहूंगा जीवन। हो सकता है दुनिया में सोना, चांदी, हीरा, माणक, मोती का मूल्य होता हो लेकिन जीवन है तो चांद-सितारों का और इन सबका मूल्य है। यदि जीवन ही नहीं तो इनका सबका मूल्य ही क्या। कल्पना करो कि जीवन नहीं हो तो हमारे लिए किस चीज का मूल्य है। जीवन के हर क्षण, हर पल को हमें आनंद-उत्साह से भर देना चाहिए, अगर प्रेम, आनंद-उल्लास, माधुर्य से जीना आ जाए तो आदमी मर कर नहीं जीते-जी स्वर्ग को पा सकता है।
उन्होंने कहा कि पत्थर में ही प्रतिमा छिपी होती है, जरूरत केवल उसे हमें तराशने की है। लगन, उमंग, उत्साह हो तो मिट्टी से मंगल कलश, बांस से बांसुरी बन जाती है। यह हमारी जिंदगी परम पिता परमेश्वर का दिया प्रसाद है, हम भी इसका सुंदर निर्माण कर सकते हैं। दिक्कत केवल यहीं है कि पानी, बिजली, गैस घर में आए तो उसका पैसा उसकी कीमत हमें लगती है, अगर जिंदगी आ गई तो उसकी हमें कोई कीमत नहीं लगती। बेकार में जाती बिजली, बेकार में जाती गैस और बेकार हो रहा पानी हमें खटकता है अगर जिंदगी का समय बीता जाए तो हमें वह खटकता नहीं। कोरोना काल ने लोगों को जीवन की सांसों की कीमत याद दिला दी, आॅक्सीजन और चंद सांसों की कीमत तब उसे पता चली। हमारे जीवन की एक-एक सांस कितनी कीमती है। विश्व विजय पर निकला सिकंदर को जिंदगी की कीमत का पता तब चला जब जीवन के अंत समय में वह अपने पूरे साम्राज्य के बदले भी चंद सांसें नहीं खरीद सका। शरीर छोड़ने से पहले वह यह कह गया कि वो सिकंदर जिसने पूरी दुनिया को जीता था-वो अपनी ही जिंदगी से हार गया। ये जिंदगी फिर ना मिलेगी दोबारा। और फिर कब मिलेगी यह भी हमें पता नहीं। इन बंगलों, इन फार्म हाउसों, इन महलों की उम्र कितनी, आंख बंद करने जितनी। आंख बंद कब हो जाए, यह भी हमें पता नहीं।
इससे पूर्व संत ललित प्रभ जी और मुनि शांतिप्रिय जी के शहर आगमन पर युवाओं ने गुरुदेव के जयकारे लगाते हुए बधाया। श्रद्धालु बहनों ने अक्षत उछालकर संतों का स्वागत किया। कार्यक्रम के मुख्य अथिति सकल जैन समाज के अध्यक्ष जय कुमार बड़जात्या सकल जैन समाज महामंत्री मनीष सेठी द्वारा दीप प्रज्वालित कर किया गया। पूर्व अध्यक्ष दिलीप लोढ़ा एवं लाभार्थी ज्ञानचंद चंद्ररदेवी पोखरना रंगवाला, अभय पोखरना, पिंटू, सुरेंद्र पोखरना परिवार का आयोजन समिति द्वारा सभी अथितियों का बहुमान किया गया।
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हिन्दुस्थान समाचार / अशोक झलोया