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नई दिल्ली, 26 अप्रैल (हि.स)। केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री जी. किशन रेड्डी ने शनिवार को कहा कि इस्पात भारत की आर्थिक प्रगति की रीढ़ है। यह ‘विकसित भारत 2047’ के राष्ट्रीय विजन का एक महत्वपूर्ण प्रवर्तक है। कोयला गैसीकरण को एक विकल्प के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है, इसे 2030 तक 100 मीट्रिक टन करने का लक्ष्य है।
रेड्डी ने मुंबई में ‘स्टील इंडिया 2025’ के छठे संस्करण को संबोधित करते हुए बताया कि कैसे भारत बुनियादी ढांचे के विकास में नए वैश्विक मानक स्थापित कर रहा है। जम्मू-कश्मीर में स्थित चिनाब ब्रिज, जो दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल है, से लेकर तमिलनाडु में ऐतिहासिक पम्बन ब्रिज तक, यह सब इस्पात क्षेत्र की बढ़ती ताकत के कारण संभव हुआ है। केंद्रीय मंत्री ने उद्योग भागीदारों से कोकिंग कोयला ब्लॉकों की नीलामी में शामिल होने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि देश की बुनियादी ढांचे की यात्रा में हर मील का पत्थर इस्पात से बना है। यह एक गतिशील राष्ट्र की प्रगति और आकांक्षाओं को दर्शाता है। भारत के इस्पात क्षेत्र में हाल ही के वर्षों में प्रभावशाली वृद्धि हुई है जिससे देश विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक राष्ट्र बन गया है। मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शब्दों का उल्लेख करते हुए इस्पात को भारत का उदयमान क्षेत्र बताया, जो आत्मनिर्भर भारत अभियान के माध्यम से घरेलू खपत, औद्योगिक विस्तार और आत्मनिर्भरता का प्रमुख कारक है।
केंद्रीय मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि यदि इस्पात भारत की अर्थव्यवस्था का आधार है तो कोयला और खनन क्षेत्र इसकी मजबूत नींव है। उन्होंने कच्चे माल की सुरक्षा विशेषकर कच्चे माल की रणनीति और कच्चे माल के मिश्रण में बदलाव के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लौह अयस्क, कोकिंग कोयला, चूना पत्थर और मैंगनीज, निकल और क्रोमियम जैसे आवश्यक मिश्र धातु तत्वों की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक आर्थिक आवश्यकता और रणनीतिक अनिवार्यता दोनों है।
उन्होंने कहा कि भारत ने हाल ही में पिछले वित्त वर्ष में एक बिलियन टन कोयला उत्पादन और प्रेषण की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है, जो राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में एक परिवर्तनकारी कदम है। ऊर्जा सांख्यिकी 2025 से पता चलता है कि कोयला भारत की कुल ऊर्जा जरूरतों का लगभग 60 फीसदी और इसके विद्युत उत्पादन का 70 फीसदी हिस्सा बना हुआ है।
रेड्डी ने इस्पात निर्माण में महत्वपूर्ण कोकिंग कोयले के बारे में बताया कि इस्पात उत्पादन लागत में इसकी हिस्सेदारी लगभग 42 फीसदी है। उन्होंने कहा कि भारत वर्तमान में अपनी कोकिंग कोयले की आवश्यकता का लगभग 85 फीसदी आयात करता है। इसके लिए सरकार ने 2021 में मिशन कोकिंग कोयला शुरू किया जिसका उद्देश्य आयात पर निर्भरता को कम करना, घरेलू उत्पादन को 140 मीट्रिक टन करना और 2030 तक इस्पात निर्माण में घरेलू कोयले के मिश्रण को 10 फीसदी से बढ़ाकर 30 फीसदी करना है। उन्होंने बताया कि इस मिशन का लक्ष्य 2030 तक 58 मीट्रिक टन कोयला धुलाई क्षमता का निर्माण करना और 23 मीट्रिक टन धुले हुए कोकिंग कोयले की आपूर्ति करना भी है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इस दिशा में एक प्रमुख पहल राष्ट्रीय कोयला गैसीकरण मिशन है जिसका लक्ष्य 2030 तक 8,500 करोड़ रुपये के निवेश से 100 मीट्रिक टन गैसीकरण का लक्ष्य प्राप्त करना है। राष्ट्रीय इस्पात नीति में 2030-31 तक 300 मीट्रिक टन और 2047 तक 500 मीट्रिक टन उत्पादन क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है। कोयला मंत्रालय और खान मंत्रालय इस दृष्टिकोण के साथ पूरी तरह से जुड़े हुए हैं और इसे साकार करने के लिए सक्रिय कदम उठा रहे हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / प्रजेश शंकर