भारत की अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत : हरीश चंद्र
शिमला, 26 अप्रैल (हि.स.)। शिमला स्थित ऐतिहासिक गेयटी थियेटर में आज 'गौरवभूमि भारत' विषय पर एक भव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस आयोजन का संयुक्त रूप से ठाकुर रामसिंह इतिहास शोध संस्थान नेरी (हमीरपुर), अखिल भारतीय साहित्य परिषद (शिमला) और हिमाचल अध्
संगोष्ठी को सम्बोधित करते हरीश चंद्र


शिमला, 26 अप्रैल (हि.स.)। शिमला स्थित ऐतिहासिक गेयटी थियेटर में आज 'गौरवभूमि भारत' विषय पर एक भव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस आयोजन का संयुक्त रूप से ठाकुर रामसिंह इतिहास शोध संस्थान नेरी (हमीरपुर), अखिल भारतीय साहित्य परिषद (शिमला) और हिमाचल अध्ययन केन्द्र ने संचालन किया।

गोष्ठी की अध्यक्षता हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर डॉ. वीर सिंह रांगड़ा ने की, जबकि साई इटरनल फाउंडेशन के चेयरमैन राजकुमार वर्मा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। विशिष्ट अतिथि के तौर पर डॉ. ओ. पी. शर्मा और मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उत्तर क्षेत्र के बौद्धिक प्रमुख श्री हरीश चंद्र ने विचार व्यक्त किए।

कार्यक्रम की शुरुआत जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले में बलिदान हुए हिन्दू पर्यटकों को श्रद्धांजलि अर्पित कर की गई। इसके बाद दीप प्रज्ज्वलन कर विधिवत कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर विभिन्न अतिथियों का स्वागत और सम्मान भी किया गया।

हिमाचल अध्ययन केंद्र के संयोजक अधिवक्ता देशराज ठाकुर ने कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए कहा कि लंबे समय से विदेशी दृष्टिकोण से लिखे गए भारतीय इतिहास ने हमारी सोच को प्रभावित किया है। अब समय आ गया है कि हम अपने स्वाभिमान और गौरवशाली अतीत के छिपे पहलुओं को उजागर करें।

मुख्य वक्ता हरीश चंद्र ने भारत की अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विश्व की 49 प्राचीन सभ्यताओं में केवल भारत, चीन और इंडोनेशिया ही शेष बचे हैं। उन्होंने बताया कि इंडोनेशिया भले ही इस्लामिक राष्ट्र है, लेकिन उसकी संस्कृति में हिन्दू परंपराओं की गहरी छाप आज भी स्पष्ट दिखाई देती है। भारत की अमर आत्मा का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।

हरीश चन्द्र ने गुप्तकालीन स्वर्णिम युग और भारत के प्राचीन वैभव की चर्चा करते हुए वीरों के त्याग और बलिदान को याद किया। पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, दशगुरु परंपरा, वीर सावरकर, चाफेकर बंधु, भगत सिंह और राजगुरु जैसे महापुरुषों के अदम्य साहस और योगदान को विशेष रूप से रेखांकित किया।

उन्होंने पंच प्रण की ओर अग्रसर होने के लिए समाज से समरसता, परिवार की समृद्धि, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी अपनाने और नागरिक कर्तव्यों के पालन का आह्वान किया।

गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे प्रो. वीर सिंह रांगड़ा ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने हजार वर्षों की विदेशी आक्रांताओं की चुनौतियों के बावजूद अपनी सांस्कृतिक आत्मा को जीवित रखा। उन्होंने महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी के संघर्षों का उदाहरण देते हुए भारतीय अस्मिता और स्वाभिमान के महत्व को रेखांकित किया।

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हिन्दुस्थान समाचार / उज्जवल शर्मा