पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौता रद्द किया जाना भारत के हित में है
- डॉ. विश्वास चौहान भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध के बाद 2 जुलाई 1972 को शिमला समझौता (Shimla Agreement) हुआ था। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांति बहाली, युद्धबंदियों की रिहाई और आपसी विवादों को शांतिपूर्वक हल करना था। परंतु 21
डॉ विश्‍वास चौहान


- डॉ. विश्वास चौहान

भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध के बाद 2 जुलाई 1972 को शिमला समझौता (Shimla Agreement) हुआ था। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांति बहाली, युद्धबंदियों की रिहाई और आपसी विवादों को शांतिपूर्वक हल करना था। परंतु 21वीं सदी के पहले दो दशकों में पाकिस्तान की ओर से बार-बार सीमा उल्लंघन, आतंकवाद को समर्थन और कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने के प्रयासों ने शिमला समझौते की आत्मा को गंभीर रूप से आहत किया है। हाल ही में पाकिस्तान द्वारा इस समझौते को औपचारिक रूप से 'निरस्त' करना एक प्रतीकात्मक घटना है, परंतु इसके निहितार्थ भारत के दृष्टिकोण से लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं।

इस आलेख में हम विस्तार से विश्लेषण करेंगे कि पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौते को रद्द किया जाना भारत के लिए कैसे लाभकारी है, किन ऐतिहासिक तथ्यों, आंकड़ों और घटनाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है और इसके दीर्घकालिक रणनीतिक प्रभाव क्या हो सकते हैं।

शिमला समझौता: संक्षिप्त पृष्ठभूमि

1971 के भारत-पाक युद्ध के पश्चात भारत ने पाकिस्तान के 90,000 से अधिक सैनिकों को बंदी बनाया था। युद्ध के परिणामस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान, स्वतंत्र राष्ट्र ‘बांग्लादेश’ बना। इन परिस्थितियों में शांति बहाली के उद्देश्य से तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला में समझौता हुआ। इसके प्रमुख बिंदु थे:

भारत और पाकिस्तान अपने मतभेदों को द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाएंगे। युद्धबंदियों की सुरक्षित वापसी की जाएगी। दोनों देश एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करेंगे। नियंत्रण रेखा (LoC) को दोनों पक्ष सम्मान देंगे।

लेकिन उक्त समझौते का पाकिस्तान की ओर से निरन्तर उल्लंघन की घटनाएं हुई तथा शिमला समझौते के बाद भी पाकिस्तान ने कभी इस समझौते की आत्मा का पालन नहीं किया। पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौता उल्लंघन की प्रमुख घटनाएं इस प्रकार थी -

1. कारगिल युद्ध (1999)पाकिस्तानी सेना ने भारतीय नियंत्रण वाले कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ कर ली, जबकि शिमला समझौते के अनुसार, नियंत्रण रेखा का सम्मान अनिवार्य था।

2. सीमा पर लगातार संघर्ष विराम उल्लंघन2003 में संघर्ष विराम समझौता हुआ, परंतु 2010 से 2020 के बीच पाकिस्तान ने औसतन प्रति वर्ष 1500 से अधिक बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया (गृह मंत्रालय के आंकड़े)।

3. आतंकवाद को समर्थनपाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों- लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद आदि ने भारत में कई आतंकी हमले किए:

साल 2001 में संसद पर हमला, 2008 मुंबई हमले (166 मृतक), 2016 पठानकोट हमला, 2019 पुलवामा हमला (40 CRPF जवान शहीद) ये घटनाएं शिमला समझौते की शांति एवं आपसी सम्मान की भावना के विरुद्ध थीं।

वर्तमान में पाकिस्तान द्वारा समझौते को निरस्त करना एक मूर्खतापूर्ण कदम के लिए इतिहास में स्मरण किया जाएगा। वैसे भी इस समझौते का कोई महत्व नहीं रह गया था क्योंकि 2024 के उत्तरार्ध में पाकिस्तान की संसद में एक प्रस्ताव पारित हुआ जिसमें शिमला समझौते को अप्रासंगिक और निष्प्रभावी बताया गया और इसे औपचारिक रूप से रद्द करने की सिफारिश की गई। इसके पीछे तर्क दिया गया कि भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य पुनर्गठन ने यथास्थिति को बदल दिया है।

मेरी राय में पाकिस्तान का यह कदम भारत के लिए झटका नहीं बल्कि एक रणनीतिक अवसर है। अब प्रश्न यह है कि पाकिस्तान का यह कदम भारत के हित में कैसे है? तो इस सम्बन्ध में निम्नानुसार तर्क दिए जा सकते हैं।

पहला यह कि भारत अब द्विपक्षीयता की बाध्यता से मुक्त हो गया है क्योंकि शिमला समझौते के तहत भारत-पाकिस्तान विवादों का समाधान केवल द्विपक्षीय तरीके से करना था। अब भारत इस विषय को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रखने के लिए स्वतंत्र है और विशेषकर आतंकवाद जैसे विषयों पर व्यापक वैश्विक समर्थन प्राप्त कर सकता है।

दूसरा यह कि पाकिस्तान की विश्वसनीयता को इस कदम से क्षति पहुंची है क्योंकि शिमला समझौता संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुरूप था और एक अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता मानी जाती है। पाकिस्तान द्वारा इसे रद्द करना उसकी अस्थिर और गैर-जिम्मेदार छवि को और मजबूत करता है। इससे भारत को विश्व स्तर पर कूटनीतिक लाभ मिलेगा।

तीसरा, भारत को अब कूटनीतिक आक्रमकता का अवसर मिल गया है क्योंकि पाकिस्तान द्वारा यह समझौता रद्द करने से भारत अब अपने पक्ष को अन्य देशों के सामने खुलकर रख सकता है, विशेष रूप से पाकिस्तान द्वारा लगातार प्रायोजित आतंकवाद और सीमा उल्लंघनों पर। G20, SCO और BRICS जैसे मंचों पर भारत इस मुद्दे को मजबूती से उठा सकता है जो पहले इस समझौते से बंधा होने से नहीं उठा पाता था।

चौथा यह कि अब LoC की स्थिति और रक्षा नीति को सुदृढ़ किया जा सकेगा क्योंकि अब भारत को नियंत्रण रेखा की ‘यथास्थिति’ बनाए रखने की बाध्यता नहीं है। इससे सामरिक रूप से पाकिस्तान की ओर अधिक सक्रिय रक्षा नीति अपनाने की संभावनाएं बनती हैं- जैसे सर्जिकल स्ट्राइक (2016) और एयर स्ट्राइक (2019) जैसे उपायों को वैधानिक रूप से और अधिक समर्थन मिल सकता है।

भविष्य की रणनीतिक दिशा: भारत को अब क्या करना चाहिए?

1. नई सुरक्षा नीति का निर्माणभारत को एक अद्यतन सीमा नीति बनानी चाहिए जो केवल रक्षात्मक नहीं, अपितु सक्रिय प्रतिकार पर आधारित हो।

2. राजनयिक स्तर पर आक्रामकताभारत को पाकिस्तान की यह असंगत स्थिति वैश्विक मंचों पर उजागर करनी चाहिए कि वह शांति समझौतों को स्वीकारने और बनाए रखने में विफल राष्ट्र है।

3. आतंकवाद विरोधी वैश्विक गठजोड़ में नेतृत्वभारत, अमेरिका, फ्रांस, इज़राइल और अन्य आतंकवाद-विरोधी राष्ट्रों के साथ गठजोड़ को और मजबूत कर सकता है।

4. UN और ICJ में कदमअब भारत, पाकिस्तान की नापाक गतिविधियों को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) और UN में अधिक मजबूती से उठा सकता है।

कुल मिलाकर इस समझौते को पाकिस्तान द्वारा रद्द करने से भारत की सामाजिक और आंतरिक नीति पर सकारात्मक प्रभाव ही पड़ेगा। वहीं, कश्मीर में सुदृढ़ शासन की संभावनाएं बढ़ जाएंगी क्योंकि अब भारत जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की ‘राजनीतिक घुसपैठ’ की बात को पूरी तरह नकार सकता है। यह जम्मू-कश्मीर के एकीकरण को और सशक्त करेगा।

भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा क्योंकि पाकिस्तान के साथ किसी विवाद के कारण होने वाली अनिश्चितता को भारत एकतरफा तरीके से नियंत्रित कर सकता है। इससे निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा।

हम कह सकते हैं कि शिमला समझौता, ऐतिहासिक रूप से भारत की नैतिक और राजनयिक विजय थी लेकिन इसका पालन केवल भारत ने किया। पाकिस्तान ने हमेशा इसकी आत्मा का उल्लंघन किया। अतः उसका इसे रद्द करना प्रतीकात्मक मात्र है - परंतु इससे भारत को अपनी विदेश नीति, रक्षा नीति और आंतरिक स्थिरता को सुदृढ़ करने का एक अवसर मिल गया है। अब भारत द्विपक्षीय समझौतों की मर्यादा से बंधा नहीं है और अपनी सामरिक शक्ति और कूटनीतिक कौशल का प्रयोग स्वतंत्र रूप से कर सकता है। पाकिस्तान की यह हरकत, दूरगामी दृष्टि से भारत के हित में सिद्ध होती है - न केवल वर्तमान सामरिक सन्दर्भ में बल्कि दीर्घकालिक रणनीतिक दृष्टिकोण से भी।

(लेखक, अंतरराष्ट्रीय विधि, स्टेट लॉ कॉलेज भोपाल में प्राध्यापक हैं।)

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी