मध्‍य प्रदेश में मोहन सरकार की कृषि क्षेत्र में दंड नीति
- डॉ. मयंक चतुर्वेदी संत तुलसीदास ने “रामचरित मानस” के जरिए सामाजिक जीवन के आदर्श को स्‍थापित किया है, प्रत्‍येक स्‍थ‍िति में सीख देने के लिए प्रभु श्रीराम और उनके इर्द-गिर्द अनेकों लोगों के कई उदाहरण इस ग्रंथ में मौजूद हैं। एक प्रसंग लंका चढ़ाई क
पराली से मप्र में होता पर्यावरण का नुकसान और मुख्‍यमंत्री मोहन यादव की सख्‍ती


लेखक फाेटाे -डॉ. मयंक चतुर्वेदी


- डॉ. मयंक चतुर्वेदी

संत तुलसीदास ने “रामचरित मानस” के जरिए सामाजिक जीवन के आदर्श को स्‍थापित किया है, प्रत्‍येक स्‍थ‍िति में सीख देने के लिए प्रभु श्रीराम और उनके इर्द-गिर्द अनेकों लोगों के कई उदाहरण इस ग्रंथ में मौजूद हैं। एक प्रसंग लंका चढ़ाई के समय श्रीराम ने विनयपूर्वक समुद्र से मार्ग देने की गुहार लगाने के संबंध में भी है। लेकिन जब देखा कि समुद्र से आग्रह करते हुए तीन दिन बीत गए, किंतु समुद्र पर कोई प्रभाव नहीं हुआ है, तब भगवान राम ने अपने सामर्थ्‍य की शक्‍ति का उपयोग कर दंड के रास्‍ते की अनिवार्यता को व्‍यवहार में लाने की ठानी। इस संपूर्ण घटना के बारे में संत तुलसी लिखते हैं-

विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।।

“रामचरित मानस” की इस पंक्‍ति की जो सबसे बड़ी सीख है, वह यही है कि जब अनेक बार आग्रह से काम न बने, तब दंड ही अंतिम विधान है क्‍योंकि ‘भय बिनु होइ न प्रीति।’ वस्‍तुत: मध्‍य प्रदेश में भी यही स्‍थ‍िति बनी है और इस बार राज्‍य के सामने हैं उसके अपने किसान भाई। जिनमें अनेकों किसानों को कई बार समझाने के बाद वे अपनी सुविधा के लिए खेतों में नरवाई जलाने के कृत्‍य में लगे हुए हैं, जबकि वह भी जानते हैं कि यह कृत्‍य ‘पर्यावरण’ की दृष्टि से बेहद नुकसान दायक है।

वस्‍तुत: इस संबंध में एक नया निर्णय राज्‍य की डॉ. मोहन यादव सरकार ने लिया है। मुख्‍यमंत्री ने साफ कह दिया है, “फसल कटाई के बाद खेतों में नरवाई जलाने के मामलों में वृद्धि होने से वायु प्रदूषण सहित कई प्रकार से पर्यावरण को बेहद नुकसान हो रहा है। खेत में आग लगाने से जमीन में उपलब्ध पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं और भूमि की उर्वरक क्षमता में भी गिरावट आती है। इसके निदान के लिये राज्य सरकार पहले ही नरवाई जलाने को प्रतिबंधित कर चुकी है। इसके बाद भी यदि कोई किसान अपने खेत में नरवाई जलाता है तो उसे ‘मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना’ का लाभ नहीं दिया जाएगा। इसके अलावा नरवाई जलाने पर संबंधित किसान से अगले साल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसल उपार्जन भी नहीं किया जाएगा।” उन्होंने बताया कि पर्यावरण, मृदा संरक्षण एवं भूमि की उत्पादकता बनाए रखने के मद्देनजर राज्य सरकार का यह निर्णय 01 मई से लागू होगा।

एक तरह से देखा जाए तो इस तरह का सख्‍त निर्णय लेने की आज बेहद आवश्‍यकता थी, ताकि जो कृषक पर्यावरणीय नुकसान में जाने-अनजाने भागीदार हो रहे हैं, उसे रोका जा सके। हालांकि यह अच्‍छी बात है कि राज्‍य का कृषि क्षेत्र पिछले कई वर्षों से श्रेष्‍ठ कार्य कर रहा है। पिछले 20 सालों में मध्‍य प्रदेश के किसानों को जो सुविधाएं राज्‍य शासन की ओर से मिलीं और दूसरी तरफ कृषकों ने भी राज्‍य से मिलने वाली सुविधाओं का लाभ उठाकर कृषि को सामान्‍य से उन्‍नत बनाने का जो प्रयास अपने स्‍तर पर किया है, वह देशभर में आज मिसाल है। यही कारण है कि अब तक “कृषि कर्मण्‍ड अवार्ड” जैसे अनेकों कृषि नवाचार एवं अन्‍य सफलताओं के लिए पुरस्‍कार मध्‍य प्रदेश को मिले हैं।

एक संक्षिप्‍त नजर इस क्षेत्र पर डालें तो मध्य प्रदेश में 45 लाख हेक्टेयर में कृषि सिंचाई की सुविधा है। उद्यानिकी उत्पादों के समग्र रूप से उत्पादन में राज्‍य देश में प्रथम स्थान पर है। देश में आज टमाटर, सोयाबीन, गेहूँ, मक्का, प्याज, लहसुन और हरी मिर्च के उत्पादन में राज्‍य का दूसरा स्थान है। इसी तरह से प्रदेश फूल-फल तथा एरोमेटिक फसलों के उत्पादन में देश में दूसरे स्थान पर है। राज्‍य दुग्ध उत्पादन में तीसरा स्थान रखता है। प्रतिदिन साढ़े पांच लाख किलोग्राम दुग्ध उत्पादन होता है, जो सरप्लस है। देश की 27 प्रतिशत जैविक खेती आज मध्य प्रदेश में हो रही है। प्रदेश में बेहतर वेयरहाउसिंग कैपेसिटी है, 13 लाख मीट्रिक टन से अधिक क्षमता के कोल्ड स्टोरेज हैं।

इसके साथ ही प्रदेश में 25 लाख हेक्टेयर भूमि में उद्यानिकी उत्पाद लिए जा रहे हैं। खाद्य डेरी प्रोसेसिंग यूनिट्स के लिए सकारात्मक उद्योग नीति बनाई गई है। प्रदेश में प्लांट तथा मशीनरी पर 40 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है। कृषि खाद्य एवं डेयरी की सूक्ष्म इकाइयों की स्थापना के संबंध में अतिरिक्त रूप से शासन द्वारा इंसेंटिव प्रदान किया जाता है। अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए अतिरिक्त तथा निर्यात करने वाली इकाइयों को एडिशनल 12 प्रतिशत इंसेंटिव दिया जा रहा है। मध्यप्रदेश में 15 फूड क्लस्टर बनाए गए हैं। यहां कृषि तथा खाद्य प्रोसेसिंग इकाइयों की स्थापना के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार है। अनेक योजनाएं कृषकों से जुड़ीं और खेती को लाभ का धंधा बनाने के उद्देश्‍य से आज राज्‍य में चलायी जा रही हैं, जिसका कुल परिणाम यह है कि मध्य प्रदेश विविध कृषि एवं उद्यानिकी गतिविधियों में देश में अग्रणी है।

कहना होगा कि देश के 10 प्रतिशत क्षेत्रफल वाले राज्य मध्य प्रदेश में देश की लगभग सात प्रतिशत आबादी निवास करती है। यहां 11 कृषि-जलवायु क्षेत्रों में विभिन्न फसलों का उत्पादन किया जाता है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में वर्तमान सरकार परिणाम देने वाली नीतियों के माध्यम से प्रगति के नए अध्याय लिख रही है। स्‍वभाविक है कि कुछ किसानों के द्वारा नरवाई जलाने का कृत्‍य प्रदेश को आलोचना का शिकार बनाता है और कहीं न कहीं किसानों की मंशा पर प्रश्‍न भी खड़े करता है कि वे पर्यावरण संरक्षण के लिए संवेनशील नहीं दिखते। स्‍वभाविक है कि इन परिस्‍थ‍ितियों में राज्य सरकार का यह निर्णय कहीं न कहीं उन किसानों को नरवाई जलाने से अवश्‍य रोकेगा, जो अब तक जन-जागृति की भाषा समझने को तैयार नहीं दिखे हैं। कम से कम नई व्‍यवस्‍था में लाभ से वंचित हो जाने का भय उन्‍हें अवश्‍य अपने नागरिक कर्तव्‍य के प्रति जिम्‍मदार बनाएगा, आज इस निर्णय से यही आशा की जानी चाहिए।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी