वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ भड़काई गई सुनियोजित हिंसा के खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों नहीं?
- कमलेश पाण्डेय वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ पश्चिम बंगाल में जो हिंसा हुई वह सुनियोजित थी।यह अब तक की केन्द्रीय एजेंसियों की तफ्तीश से काफी कुछ साफ होता जा रहा है। लेकिन सवाल है कि इस सुनियोजित हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों नहीं
वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ भड़काई गई सुनियोजित हिंसा के खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों नहीं?


- कमलेश पाण्डेय

वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ पश्चिम बंगाल में जो हिंसा हुई वह सुनियोजित थी।यह अब तक की केन्द्रीय एजेंसियों की तफ्तीश से काफी कुछ साफ होता जा रहा है। लेकिन सवाल है कि इस सुनियोजित हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही? राज्य प्रशासन की जवाबदेही क्यों नहीं सुनिश्चित की गई? उसकी लापरवाही पर संसद और जिम्मेदार संस्थाएं कब तक एक्शन लेंगीं, क्योंकि विदेशी-देशी सांठगांठ से हुई हिंसा में हिंदुओं के जानमाल की क्षति हुई है। ऐसा कोई पहली बार नहीं हो रहा। इसलिए उदंड और बेलगाम राजनीति की लगाम कौन कसेगा, यह अब यक्ष प्रश्न है?

जांच एजेंसियों के सूत्रों की मानें तो इस हिंसा की प्लानिंग लंबे समय से की जा रही थी| लगभग पिछले तीन महीनों से इलाके के लोग इस घटना को अंजाम देने की योजना बना रहे थे| पूरे मामले की जांच के दौरान पाया गया है कि यह आतंकवाद फैलाने का नया तरीका है| प्रारंभ में रामनवमी की तारीख तय थी, लेकिन उस दिन कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के कारण चीजें बदल गईं।लेकिन वक्फ संशोधन कानून ने ट्रिगर पॉइंट दे दिया।

खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक मुर्शिदाबाद की हिंसा में विदेशी हस्तक्षेप से इनकार नहीं किया जा सकता है | जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) और हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी (हूजी) जैसे समूह बांग्लादेश बॉर्डर से लगते इलाकों और सुंदरबन डेल्टा में हथियारों की आपूर्ति कर रहे हैं| ये आतंकी संगठन ट्रेनिंग देने के साथ ही प्रोपेगेंडा भी फैला रहे हैं | अंतरराष्ट्रीय संगठन अशांति को बढ़ाने के लिए वैश्विक मीडिया का उपयोग कर रहे हैं | वे दहशत फैलाने के लिए अफ़वाह फैलाने में मदद कर रहे हैं| यह उसी तरह है जैसे सीएए विरोध प्रदर्शनों के दौरान एनआरसी को मुसलमानों की नागरिकता छीनने के रूप में प्रचारित किया गया था | विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिरासत में लिए गए या गिरफ्तार किए गए लोगों को भी नायक के रूप में महिमामंडित किया जा रहा है|

दरअसल वक्फ कानून में संशोधन के विरोध में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में जो हिंसा भड़क उठी है, उससे खुफिया एजेंसियों ने अन्य राज्यों में भी ऐसी घटनाओं की आशंका जताई है | इसके दृष्टिगत देशभर में लगातार सतर्कता बरती जा रही है। यह बात दीगर है कि अभी तक अन्य राज्यों से किसी अप्रिय घटना की खबर नहीं है | केंद्र सरकार के मुताबिक वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की अधिसूचना के मद्देनजर अभी तक अन्य राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों से किसी भी सांप्रदायिक स्थिति की कोई रिपोर्ट नहीं मिली है।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि भारत एक शांतिप्रिय देश रहा है। फिर भी पहले मुस्लिम आक्रान्ताओं ने और फिर ब्रिटिश नौकरशाहों ने अपने-अपने प्रशासनिक स्वार्थ की प्रतिपूर्ति के लिए ऐसी-ऐसी अव्यवहारिक नीतियों को कानूनी अमली जामा पहनाया, जिससे हिन्दू समाज जाति और क्षेत्र के नाम पर बिखर गया। कभी मुस्लिम अधिकारी तो कभी ईसाई अधिकारी और उनके पिट्ठू लोग हिन्दुओं पर हावी होते चले गए | इसी कड़ी में सांप्रदायिक, जातीय और क्षेत्रीय हिंसा को अघोषित प्रशासनिक एजेंडे के तौर पर बढ़ावा दिया गया | इसके अलावा कभी प्रशासनिक उदासीनता तो कभी पक्षपाती दृष्टिकोण अपनाते हुए संगठित अपराध को बढ़ावा दिया गया, जिससे विधि व्यवस्था की स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती चली गई|

इसी स्थिति से निजात पाने के लिए देश में आजादी की लड़ाई तेज हुई और साम्पदायिक विभाजन तक की नौबत आई | इस दौरान हिन्दू-मुस्लिम दंगे भी खूब हुए | कथित राष्ट्रवादियों ने ढोंगी धर्मनिरपेक्षता की तो खूब बातें कीं, लेकिन अपने कुत्सित जातीय, क्षेत्रीय और सांप्रदायिक एजेंडे से आगे की कभी नहीं सोच पाए | मसलन बहुमत की आड़ में शांतिप्रिय सत्ता परिवर्तन भी सुनिश्चित हुआ, लेकिन विधायिका, कार्यपालिका और अन्य समाज के जिम्मेदार स्तंभों से जुड़े लोग मुगलिया और ब्रितानी प्रशासनिक लापरवाहियों से कोई सबक नहीं सीख पाए | वह लोग अपने फायदे की बात तो करते रहे, लेकिन, लेकिन आमलोगों के सुख-शांति में खलल डालने वालों के खिलाफ कभी सख्ती नहीं दिखाई | इस नजरिए से संसद और विधान मंडलों ने प्रभावकारी कानून नहीं बनाए। परिणाम यह है कि आज भी आम आदमी सुपोषण योग्य भोजन, अच्छी शिक्षा और चिकित्सा सुविधा, जन-सुरक्षा के लिए मोहताज है| एक ओर देश के अमनपसंद आमलोग जहाँ रोटी, कपड़ा और मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा सम्मान की प्राप्ति के लिए आरक्षण को अचूक हथियार समझ बैठे हैं, वहीं दूसरी ओर 1947 में पाकिस्तान और 1972 में बंगलादेश लेने वालों के वंशज ब्रेक के बाद भारतीय भू-भाग पर सांप्रदायिक तांडव मचा रहे हैं। और नेताओं की नीतिगत लापरवाहियों से हमारा सिविल और पुलिस प्रशासन असहाय बना रहता है|

हैरत की बात है कि कभी ये लोग दलित-मुस्लिम समीकरण तैयार करवाते हैं तो कभी मुस्लिम-ओबीसी समीकरण को फंडिंग करवाते हैं | वहीं इसी की आड़ में कुछ अभिजात्य मुसलमान विदेशों से हवाला के जरिए फंडिंग लेकर देश में पाकिस्तान-बंगलादेश के ही नहीं बल्कि अरब देशों के हमदर्द पैदा करते हैं| इनकी नापाक मंशा जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे हालत पूरे देश में पैदा करने की है, जिसकी झलक गाहे-बगाहे दिखाते रहते हैं| लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री भी शायद यह समझ गई हैं कि इस तरह बहुत दिनों तक शासन नहीं किया जा सकता। यही कारण हैं कि दक्षिण कोलकाता के कालीघाट के एक कार्यक्रम में ममता बनर्जी ने कहा कि धर्म के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। धर्म का मतलब है भक्ति, स्नेह, मानवता, शांति, सौहार्द, संस्कृति, सद्भाव और एकता है। इंसानों से प्यार करना किसी भी धर्म की सर्वोच्च अभिव्यक्तियों में से एक है। हम अकेले पैदा होते हैं और अकेले मरते हैं, तो लड़ाई क्यों? अगर हम लोगों से प्यार करते हैं तो हम सब कुछ जीत सकते हैं। लेकिन अगर हम खुद को अलग-थलग कर लेंगे तो हम किसी को भी नहीं जीत पाएंगे। अगर किसी पर हमला होता है, चाहे वह उपेक्षित हो, उत्पीड़ित हो, वंचित हो, हाशिए पर हो या किसी भी धर्म से हो - हम सभी के साथ खड़े हैं।

(लेखक, स्वतंत्र स्तंभकार हैं)

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हिन्दुस्थान समाचार / सीपी सिंह