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कानपुर, 15 अप्रैल (हि.स.)। सामाजिक समरसता संघ की गतिविधि ही नहीं बल्कि संघ के स्वयंसेवक का स्वभाव है। 25 से 30 वर्षों से साथ में कार्य करने वाले कार्यकर्ता एक दूसरे की जाति नहीं जानते यही संघ की खासियत है। शमशान, मंदिर और जलाशय (कुआं, नल, तालाब आदि) पर हिंदू समाज की सभी जातियों का समान अधिकार है। हमें अपने कार्य और स्वभाव के माध्यम से यही मानसिकता का संपूर्ण समाज में निर्माण करनी है। यह बातें मंगलवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कही।
डॉ. मोहन भागवत पांच दिनों के दौरे पर कानपुर प्रवास पर हैं। जहां सोमवार को उन्होंने कारवालों नगर स्थित प्रदेश के सबसे बड़े संघ कार्यालय कैलाश भवन का उद्घाटन किया। वहीं मंगलवार को सामाजिक समरसता गतिविधि के कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की। प्रांत के सामाजिक समरसता प्रमुख रवि शंकर ने सामाजिक समरसता की चल रही गतिविधियों के संदर्भ में सरसंघचालक को जानकारी दी।
मोहन भागवत ने कहा कि ऐसी कोई जाति नहीं जिसने देश के उत्थान में, देश के संकटों में संघर्ष में योगदान न दिया हो। सभी जातियों ने महापुरुष दिए हैं। समरसता संघ के स्वयंसेवक का स्वभाव होने के कारण संघ से जुड़ने वाले प्रत्येक व्यक्ति में समरसता का भाव होना स्वभाविक हो जाता है। शताब्दी वर्ष में संघ का साहित्य लेकर हम गांव-गांव जाने वाले हैं। हमें गांव-गांव जाकर समरसता के पवित्र संदेश को देना है। एक लक्ष्य तय करना होगा। उन्होंने आगे कहा कि हमें सामाजिक विषमता को समाप्त करेंगे। समता युक्त, शोषण मुक्त, जाति विद्वेष मुक्त भारत बनाना होगा। हमें इस कार्य को बहुत तेजी से करना है। संघ के स्वयंसेवक का समरसता पूर्ण स्वभाव समाज का स्वभाव बने, इसका प्रयास हमें तेजी से करना है।
बैठक में क्षेत्र प्रचारक अनिल, प्रान्त प्रचारक श्रीराम, प्रान्त संघ चालक भवानी भीख, प्रान्त प्रचार प्रमुख डॉक्टर अनुपम, क्षेत्र प्रचारक प्रमुख राजेंद्र सिंह, सह प्रान्त प्रचारक मुनीश सहित प्रान्त के 21 जिलों के जिला समरसता प्रमुख तथा विभाग समरसता प्रमुख उपस्थित रहे।
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हिन्दुस्थान समाचार / रोहित कश्यप