(साक्षात्कार) रीमेक से नहीं, असली कहानी से बनता है सिनेमा- सनी देओल
हिंदी सिनेमा में अपने दमदार अभिनय और जोशीले डायलॉग्स के लिए मशहूर सनी देओल ने साल-2023 में 'गदर 2' के ज़रिए अपने करियर की दूसरी पारी का शानदार आगाज़ किया था। अब वे एक बार फिर बड़े पर्दे पर लौटे हैं, अपनी फिल्म 'जाट' के साथ, जो 10 अप्रैल को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है।
सनी देओल

लोकेश चंद्र दुबे

हिंदी सिनेमा में अपने दमदार अभिनय और जोशीले डायलॉग्स के लिए मशहूर सनी देओल ने साल-2023 में 'गदर 2' के ज़रिए अपने करियर की दूसरी पारी का शानदार आगाज़ किया था। अब वे एक बार फिर बड़े पर्दे पर लौटे हैं, अपनी फिल्म 'जाट' के साथ, जो 10 अप्रैल को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है।

हिन्दुस्थान समाचार को दिए गए एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में सनी देओल ने अपने करियर, पारिवारिक बदलावों और फिल्म को लेकर उत्साह से जुड़ी कई बातें शेयर कीं। बातचीत के दौरान अभिनेता ने मुस्कुराते हुए कहा कि घर में बहू आने के बाद देओल परिवार की किस्मत मानो चमक गई है। हर तरफ से शुभ समाचार मिल रहे हैं और ज़िंदगी में सकारात्मक बदलाव महसूस हो रहा है। यहां पढ़िए सनी देओल के साथ हुई बातचीत के कुछ खास अंश, जहां उन्होंने पारिवारिक सुख, फिल्मी चुनौतियों और भविष्य की योजनाओं पर खुलकर बात की।

'गदर 2' की जबरदस्त सफलता के बाद दर्शकों की उम्मीदें आपसे और भी बढ़ गई हैं। ऐसे में इस फिल्म को चुनने के पीछे आपकी सबसे बड़ी वजह क्या रही?

गदर 2 के बाद मैथ्री ने मुझे साइन कर लिया था। मेरे पास एक कहानी थी, जिसे हमने कोविड-19 के दौरान तैयार किया था। मैंने उस कहानी को लेकर कई डायरेक्टर्स से संपर्क किया, लेकिन किसी ने उसमें खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसी दौरान मैथ्री प्रोडक्शन्स ने मुझे सलाह दी कि मैं गोपीचंद मलिनेनी से बात करू, वह इस स्क्रिप्ट में दिलचस्पी जरूर लेंगे। लेकिन जब मैं गोपीचंद से मिला तो उनके पास भी एक कहानी थी और वो थी 'जाट' की। जब मैंने वह कहानी सुनी तो मुझे इतनी पसंद आई कि मैंने तुरंत कहा, 'चलो पहले इसी पर काम करते हैं। अगर आप फिल्म देखेंगे तो उसमें ड्रामा है, एक्शन है, इमोशन है और बहुत कुछ ऐसा है जो दर्शकों को पसंद आएगा। फिल्म में मेरा जो लीड किरदार है, वो जाट कम्युनिटी से है। पंजाब में कुछ लोग 'जट' कहते हैं, कुछ 'जाट', लेकिन ज़्यादातर किसान वहीं से आते हैं और इसलिए हमने फिल्म का टाइटल 'जाट' रखने का फैसला किया। ये कहानी मेरे दिल के काफ़ी क़रीब है और मैं चाहता हूँ कि दर्शक भी इस सफर को उतनी ही शिद्दत से महसूस करें, जितनी हमने इसे बनाते वक्त की थी।

'गदर 2' जैसी ब्लॉकबस्टर देने के बाद क्या आप दर्शकों की बढ़ती उम्मीदों को लेकर कोई दबाव महसूस करते हैं?

नहीं, मैंने अपने करियर में कई फिल्में की हैं, लेकिन मैंने कभी भी अपने काम को लेकर किसी तरह का प्रेशर महसूस नहीं किया। मेरे लिए सबसे ज़रूरी चीज़ ये होती है कि जिस कहानी पर मैं काम कर रहा हूं, वो दमदार हो और लोगों के दिलों से जुड़ सके। अगर दर्शकों को कहानी से जुड़ाव महसूस होता है तो फिल्म अपने आप सफल हो जाती है। हर कहानी की अपनी एक आत्मा होती है और 'जाट' की कहानी ने मुझे तुरंत बांध लिया था। रही बात साउथ के फिल्मकारों की तो साउथ इंडस्ट्री में जिस तरह का सम्मान, समर्पण और प्रेम काम को लेकर दिखता है वो वाकई काबिल-ए-तारीफ है। यही वजह है कि हमने 'जाट' को भी पूरे समर्पण और ईमानदारी के साथ बनाया है। मेरे लिए ये फिल्म सिर्फ एक और प्रोजेक्ट नहीं है, बल्कि एक जज्बात है और मैं चाहता हूं कि ये जज्बात दर्शकों तक भी पहुंचे।

'चुप' जैसी दमदार फिल्म को वो पहचान नहीं मिली जिसकी वो हकदार थी, क्या आपको भी ऐसा लगता है?

मेरा स्टारडम जिन फिल्मों से बना है, 'चुप' उनसे बिल्कुल अलग तरह की फिल्म थी। जिन क्षेत्रों में मेरी फैन फॉलोइंग ज़्यादा है, वहां शायद उस तरह का सिनेमा अभी भी ज़्यादा नहीं देखा जाता। जबकि 'चुप' एक शहरी फिल्म थी, जो भारतीय सिनेमा की हकीकत को बेहद अलग अंदाज़ में पेश करती है। 'गदर 2' की सफलता के बाद मैंने ये समझा कि अब हर फिल्म को बहुत सोच-समझकर चुनना होगा। ऐसी कहानियां जो दर्शकों से जुड़ाव बनाए और उनके दिलों को छू सके। 'चुप' एक बेहद खूबसूरत फिल्म थी, जिसे आर. बाल्की साहब ने शानदार ढंग से निर्देशित किया था। सनी भावुक होकर कहते हैं कि लेकिन अब मेरा फोकस उन फिल्मों पर है जो मेरी ऑडियंस को वो दे सके, जिसके लिए उन्होंने मुझे हमेशा चाहा है, दमदार किरदार, गूंजते डायलॉग और दिल से जुड़ी कहानियां।

अब जब आप साउथ के डायरेक्टर्स के साथ काम कर रहे हैं, फैंस जानना चाहते हैं, इतना इंतज़ार क्यों कराया?

दरअसल, एक एक्टर अपने करियर की दिशा अक्सर ऑडियंस की उम्मीदों के मुताबिक ही मोड़ता है, लोग मुझे 'गदर' जैसी दमदार और इमोशनल फिल्मों में देखना पसंद करते हैं। जब वो फिल्म रिलीज़ हुई तो दर्शकों ने उसे ब्लॉकबस्टर बना दिया। उसके बाद मैंने तय किया कि अब मैं वही फिल्में करूंगा, जिनमें दर्शक मुझे देखना चाहते हैं। 'गदर 2' में मेरी वापसी देखने के बाद साउथ के कई प्रोड्यूसर्स को भी लगा कि मुझे अपनी किसी एक्शन-पैक्ड, कमर्शियल फिल्म में कास्ट करना चाहिए। फिर उन्होंने मेरी तरफ ऐसे कुछ प्रोजेक्ट्स का प्रस्ताव भेजा। मेरे लिए सबसे ज़रूरी बात ये होती है कि मैं जो भी किरदार निभाऊं, वो लोगों के दिलों में उतर जाए। जब दर्शक किसी फिल्म को सिर आंखों पर बैठा लेते हैं, तो वो हमारे लिए सबसे बड़ी जीत होती है।

67 की उम्र में ऐसा दमदार एक्शन करना आसान नहीं होता, यह आप के लिए कितना चुनौतीपूर्ण रहा

उम्र तो मेरे लिए बस एक नंबर है, सनी देओल मुस्कुराते हुए कहते हैं। मैंने कभी इसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया, क्योंकि मैं आज भी वही करता हूं जो हमेशा करता आया हूं। असल में मुझे अपनी उम्र का एहसास भी नहीं होता, जब तक कोई याद नहीं दिला दे कि मैं 67 का हो चला हूं। सिनेमा में जब आप किसी किरदार को देखते हैं, तो आप उसकी उम्र नहीं देखते। आप उसके जज़्बात, उसकी कहानी और उसकी सच्चाई को महसूस करते हैं। इसलिए मेरे लिए उम्र की बात वहीं खत्म हो जाती है। जब तक मैं अपने किरदारों के साथ ईमानदारी से जुड़ा हूं, तब तक मेरी उम्र मायने नहीं रखती, मायने रखता है सिर्फ वो किरदार जो मैं निभा रहा हूं।

देओल परिवार को लगातार मिल रही सफलताओं को आप ईश्वर की कृपा मानते हैं?

निश्चित रूप से हम पर ईश्वर की अपार कृपा रही है, सनी देओल भावुक होकर कहते हैं। जब से मेरे बेटे राजवीर की शादी हुई और हमारे घर में बहू के रूप में एक बेटी आई है, तब से मानो सब कुछ और भी बेहतर हो गया है। वे मुस्कान के साथ आगे कहते हैं, घर का माहौल पहले से ज्यादा खुशनुमा हो गया है। हर चीज़ में एक पॉजिटिव एनर्जी महसूस होती है। मैं बस यही दुआ करता हूं कि यह सुखद सिलसिला यूं ही बना रहे और हमारे परिवार पर भगवान का आशीर्वाद हमेशा बना रहे।

बॉलीवुड और साउथ इंडस्ट्री, दोनों में आपने काम किया है, क्या कुछ ऐसा है जो आपको साउथ में अलग या खास लगा हो?

दर्शक उन फिल्मों से सबसे ज़्यादा जुड़ाव महसूस करते हैं, जिनमें उन्हें अपना प्रतिबिंब दिखे, अपनी मिट्टी, अपनी कहानी और अपनी भावनाएं। साउथ की फिल्में इसी भावनात्मक जुड़ाव को समझती हैं और उसी के मुताबिक फिल्में बनती हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश बॉलीवुड ने पिछले कुछ सालों में इस एहसास को कहीं खो दिया है। हमारे जमाने के जो निर्देशक और निर्माता थे, उन्होंने जो सिनेमाई परंपराएं बनाईं थीं, वो अब नए मेकर्स की भीड़ में कहीं धुंधली हो गई हैं। अब हम साउथ की फिल्मों के रीमेक बनाकर उनसे सीखने की कोशिश कर रहे हैं कि असली कहानियां कैसी होनी चाहिए। सच कहूं तो हम असली सिनेमा बनाना ही भूल चुके हैं। उम्मीद करता हूं कि अब चीजें बदलेंगी और हम फिर से अपनी जड़ों की ओर लौटेंगे, वही कहानियां कहेंगे जो हमारे दिलों से निकले और सीधे दर्शकों के दिलों तक पहुंचें।

हिन्दुस्थान समाचार