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हनुमान जयंती (12 अप्रैल) पर विशेष
गिरीश्वर मिश्र
संस्कृति के लोक का कलेवर अत्यन्त विशाल, व्यापक और आमजन को सामर्थ्यवान बनाने वाला होता है। उसके अंतर्गत परिकल्पित परिवेश के पात्र अक्सर देश- काल की सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए विचार, प्रतिमा, प्रथाओं और विभिन्न अनुष्ठानों की सहायता से सबके लिए उपलब्ध रहते हैं। उनके साथ कथाएँ और किंवदंतियाँ भी जुड़ती रहती हैं क्योंकि उनसे लोगों को जीवन जीने के लिए जरूरी समर्थन, प्रेरणा और शक्ति मिलती है। राम-भक्ति के सिरमौर पवनसुत श्री हनुमान शारीरिक बल और उत्तम कोटि की मेधा या बुद्धि में श्रेष्ठ ऐसे ही विरल भारतीय व्यक्तित्व की सर्जना हैं। हनुमान जी कई अर्थों में विलक्षण हैं। वे कई तरह के परस्पर विरोध दिखाने वाली विशेषताएँ भी रखते हैं। मानवेतर होने पर भी गूढ़ राम-रसायन का तत्व उन्हीं के पास है। वे श्रीराम के निकट परिवार के सदस्य न होकर भी “राम पंचायतन” के प्रमुख और स्थायी सदस्य हैं। मंदिरों और चित्रों में सर्वत्र श्रीराम का स्मरण श्री हनुमान के बिना पूरा नहीं होता है।
भगवान श्रीराम अपने प्रिय भक्त हनुमान को भरत की ही तरह सगा छोटा भाई मानते हैं। भरतजी भक्त-शिरोमणि कहलाते हैं। उन्हीं की तरह महावीर श्री हनुमान भी निर्विवाद रूप से श्रीराम के परम भक्त हैं। गोस्वामी जी उनको कपीश्वर कहते और कवीश्वर वाल्मीकि के साथ याद करते हैं। ये दोनों सीताराम के गुणों के पुण्य जंगल में विचरण करते रहते हैं -सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिनौ कवीश्वरकपीश्वरौ। श्रीराम की कथा हनुमान जी को अत्यंत प्रिय है और यदि वे उसके रसिया हैं तो श्रीराम और सीताजी को भी हनुमान जी अत्यंत प्रिय हैं और उनके मन में बसे रहते हैं। श्री हनुमान की लौकिक उपस्थिति और अलौकिक कार्य-शैली सबको चकित करने वाली है। यही कारण है कि उनकी लोकप्रियता असाधारण रूप से बढ़ती रही है। बचपन से ही श्री हनुमान के स्मरण के साथ बल, तेज और निर्भीकता की भावनाएँ जुड़ जाती हैं। श्री हनुमान के कई मंदिरों की सिद्ध स्थानों के रूप में प्रसिद्धि है और बड़ी आस्था के साथ भक्त और दुखियारे सभी वहाँ पहुँचते हैं।
रामकथा के ब्यौरे में जाएँ तो पता चलता है कि जब जटिल प्रसंग आते हैं, जब कठिन समस्या का कोई समाधान नहीं मिलता तो हनुमान का स्मरण किया जाता है। वे रामदूत और एक संवादी के रूप में जगत प्रसिद्ध हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं, श्रीराम द्वारा लंका विजय की मानुष अवतार वाली रामकथा में कई जटिल अवसरों पर बजरंग बली के बिना उलझनों का समाधान ही नहीं मिलता और कथा आगे ही नहीं बढ़ती। हनुमान जी सभी सिद्धियों के आगार और गुणों में निष्णात तो हैं ही उनके पास सभी निधियाँ भी हैं। यह सब होने के बावजूद अतुलित बलशाली हनुमान जी बड़े सरल स्वभाव के हैं। सभी तरह की संपदा होने के बावजूद उन्हें अहंकार का लेश मात्र नहीं है। उनका अहं भाव विगलित हो चुका है और वे इस मायावी जाल से परे हैं। श्रीराम और उनके भक्तों के साथ उनका व्यापक तादात्मीकरण है। इस तरह के अद्वैत के साथ वह प्रभु श्रीराम के साथ निर्विकल्प रूप से जुड़े हुए हैं। रामकाज करना ही उनका प्रथम और अंतिम ध्येय है। विमल यश वाले हनुमानजी मित्रता, शौर्य, साहस, धैर्य, चातुर्य और बुद्धिमत्ता आदि गुणों में अतुलनीय मानक सदृश हैं। वे दुर्मति को हटा कर सुमति को प्रतिष्ठित कर भक्तों का क्लेश दूर करते हैं।
वस्तुतः श्रीराम तक की यात्रा बिना हनुमानजी की सहायता के संभव नहीं है और उन जैसे निःस्पृह स्वभाव वाले को निश्छल प्रेम के सिवा कुछ भी नहीं चाहिए। इसलिए हनुमान जी सर्वजनसुलभ हैं। आज देश के कोने-कोने में गाँव और शहर सर्वत्र उनकी पूजा-अर्चना के लिए लोग तत्पर रहते हैं और अनेकानेक भव्य मंदिर उनको समर्पित हैं। लोग अपनी मनोकामना की साध लिए बड़े भरोसे के साथ हनुमानजी की शरण में आते हैं। हनुमानजी को रिझाने के लिए मंदिरों में मंगलवार को भीड़ टूट पड़ती है। पर हमें यह भी जरूर याद रखना चाहिए कि सच्ची भक्ति तो भक्त और भगवान के बीच किसी तरह का हिसाब-किताब नहीं करती। वह निर्मल मन से समर्पण और अखंड प्रीति चाहती है। हनुमानजी की भक्ति हमें अपने जीवन में अभय, परदुखकातरता, निष्कपट मित्रता, सदाचार और ईश्वर के प्रति समर्पण जैसे मूल्यों को उतारने के लिए प्रेरित करती है।
(लेखक, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश