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नैनीताल, 1 अप्रैल (हि.स.)। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से लागू समान नागरिक संहिता कानून की संवैधानिकता सहित कानून के प्रवधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के बाद राज्य सरकार को 48 घंटे के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। सरकार की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए 48 घंटे का समय मांगा गया, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए दस दिन बाद की तिथि नियत की है।
मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामले के अनुसार यूसीसी को चुनौती देने वाली आधा दर्जन से अधिक याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर की गई हैं। भीमताल निवासी सुरेश सिंह नेगी ने यूसीसी में लिव इन रिलेशनशिप के प्रविधान को जबकि मुस्लिम, पारसी आदि के वैवाहिक पद्धति की यूसीसी में अनदेखी किए जाने सहित अन्य प्रविधानों को चुनौती दी गई है। देहरादून के एलमसुद्दीन सिद्दीकी ने याचिका दायर कर अल्पसंख्यकों के रीति-रिवाजों की अनदेखी किए जाने का उल्लेख किया है। अन्य याचिका में कहा गया कि जहां सामान्य शादी के लिए लड़के की उम्र 21 व लड़की की 18 वर्ष होनी आवश्यक है जबकि लिव इन रिलेशनशिप में दोनों की उम्र 18 वर्ष निर्धारित की गई है, ऐसे में उनके वाले बच्चे कानूनी बच्चे कहे जाएंगे या वैध माने जाएंगे। अगर कोई व्यक्ति अपनी लिव इन रिलेशनशिप से छुटकारा पाना चाहता है तो वह एक साधारण से प्रार्थना पत्र रजिस्ट्रार को देकर करीब 15 दिन के भीतर अपने पार्टनर को छोड़ सकता है जबकि साधारण विवाह में तलाक लेने के लिए पूरी न्यायिक प्रक्रिया अपनानी पड़ती है और दशकों के बाद तलाक होता है, वह भी पूरा भरण पोषण देकर। आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने नागरिकों को संविधान प्रदत्त अधिकारों में हस्तक्षेप कर हनन किया है। याचिकाकर्ता का यह भी कहना था कि यूसीसी लागू होने के बाद लोग शादी न करके लिव इन रिलेशनशिप में ही रहना पसंद करें, जब तक पार्टनर के साथ सम्बंध अच्छे हो तब तक रहे, नही बनने पर छोड़ दें। 2010 के बाद शादी का रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है, नहीं करने पर तीन माह की सजा या 10 हजार का जुर्माना देना होगा।
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हिन्दुस्थान समाचार / लता