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गोरखपुर, 01 अप्रैल (हि.स.)। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के निदेशक डॉ. अजीत कुमार शासने ने कहा कि आयुर्वेद और जैव प्रौद्योगिकी के सामंजस्य से समग्र स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन आएगा। आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है। आज के दौर में इसे जैव प्रौद्योगिकी से समन्वित किया जाना समय की मांग है। आयुर्वेद में जैव प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग से वैश्विक चिकित्सा सेवा क्षेत्र को नई और सही राह दिखाई जा सकती है।
डॉ. शासने नें मंगलवार को महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर (एमजीयूजी) द्वारा संचालित संबद्ध स्वास्थ्य विज्ञान संकाय के तत्वावधान में सोसाइटी फॉर बायोटेक्नोलॉजिस्ट इंडिया (एसबीटीआई) के सहयोग से आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के समापन समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। ‘आयुर्वेद एवं बायोमेडिकल विज्ञान में जैव प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग’ विषयक सम्मेलन के समारोप में डॉ. शासने ने कहा कि आयुर्वेद ने लंबे कालखंड से स्वास्थ्य सेवा की है। उसकी उपादेयता हमेशा प्रासंगिक है। इसके साथ यह भी ध्यान रखना होगा कि विश्व प्रौद्योगिकी पर निर्भर हो रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में स्वास्थ्य क्षेत्र को सुदृढ़ करने के लिए आयुर्वेद और जैव प्रौद्योगिकी को साथ-साथ आगे बढ़ना होगा।
अध्यक्षता करते हुए एमजीयूजी के कुलपति प्रो. सुरिंदर सिंह ने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी और आयुर्वेद का समागम स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में एक शक्तिशाली बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है। आयुर्वेद के सदियों पुराने ज्ञान का सम्मान करके और इसे बायोटेक की प्रगति के साथ जोड़कर हम आधुनिक स्वास्थ्य चुनौतियों के लिए प्राकृतिक समाधान का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद व बायोमेडिकल साइंस में बायोटेक्नोलॉजी के अनुप्रयोग पर आयोजित यह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करेगा।
एसबीटीआई के अध्यक्ष प्रो. एडथिल विजयन ने कहा कि यह सम्मेलन समूचे स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए मील का पत्थर साबित होगा। कोलंबो विश्वविद्यालय की प्रो. सुमादी डिसिल्वा ने कहा इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ने जैव प्रौद्योगिकी विज्ञान और आयुर्वेद को सेतु के रूप में जोड़ा है। इस समन्वय से स्वास्थ्य सेवा तो मजबूत होगा ही, रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे।
--तकनीकी सत्रों में हुआ विचार विनिमय
अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के तीसरे दिन तकनीकी सत्रों में आयुर्वेद और जैव प्रौद्योगिकी के विभिन्न पहलुओं पर विषय विशेषज्ञों ने विचार विनिमय किया। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कनिका मलिक ने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नवाचारों का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है। बायोटेक्नोलॉजी चिकित्सा, कृषि, उद्योग, और पर्यावरण संरक्षण जैसे कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव ला चुका है।
प्रो. उमेश यादव ने कोरोना जैसे संक्रमण के रोकथाम में कारगर औषधियों की जानकारी दी। इस अवसर पर सम्मेलन से हासिल अपने अनुभव को साझा करते हुए चिल्लांगकोर्ण विश्वविद्यालय बैंकाक के प्रो चंचाई बोनला ने कहा कि यहां बहुत कुछ बताने के साथ काफी कुछ सीखने को भी मिला। प्रो.सुमादी डिसिल्वा (श्रीलंका), प्रो रूपाली गुप्ता, डॉ गौतम आनंद (इजरायल), डॉ विवेक मौर्या (कोरिया), डॉ हेमंत बीड, डॉ रोहित उपाध्याय (यूएसए) सहित देश के कई राज्यों से आए वरिष्ठ वैज्ञानिक और शोधार्थियों ने सम्मेलन में भाग लेने पर उत्साह व्यक्त किया।
स्वागत एमजीयूजी में संबद्ध स्वास्थ्य विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता प्रो. सुनील कुमार सिंह और आभार ज्ञापन डॉ. अनुपमा ओझा ने किया। इस अवसर पर आयोजन समिति के सचिव डॉ. अमित दुबे, डॉ. धीरेन्द्र सिंह, डॉ. पवन कुमार कनौजिया, डाॅ. संदीप कुमार श्रीवास्तव, डाॅ.अंकिता, डॉ.कीर्ति यादव, डाॅ. अखिलेश कुमार दूबे, डाॅ. प्रेरणा अदिती, डाॅ. किरन कुमार ए., डाॅ.आशुतोष सहित सभी विभागों के शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित रहे।
--अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में इन्हें मिला अवार्ड
अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में एसबीटीआई की सचिव डॉ अंजू टी.आर. ने यंग साइंस्टिस्ट अवार्ड की घोषणा की। इसमें केएपीएल अवॉर्ड एमजीयूजी की डॉ. रश्मि शाही, आईबीएस अवार्ड एमजीयूजी के डॉ. मंतव्य सिंह,सीवी जैकब अवॉर्ड एमजीयूजी की अंजली राय, केएन नरसिंहा अवॉर्ड एमिटी यूनिवर्सिटी नोएडा के बी. बंदोपाध्याय और कुनथ फार्मास्युटिकल अवॉर्ड यूएसए की पार्वती राजेश को दिया गया। इसी क्रम में प्रो एडथिल विजयन अवार्ड श्रीलंका के डॉ. मध्यमंची प्रदीप को तथा ओरल प्रेसेंटेशन में प्रथम पुरस्कार नव्या अग्रवाल, द्वितीय आकांक्षा गुप्ता, तृतीय पुरस्कार पूजा दुबे को दिया गया। पोस्टर प्रस्तुति में प्रथम पुरस्कार शिवम पाण्डेय, द्वितीय पुरस्कार अनुप्रिया वेलु और तृतीय पुरस्कार नेहा श्रीनिवास को प्राप्त हुआ।
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हिन्दुस्थान समाचार / प्रिंस पाण्डेय