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पूर्वी चंपारण,08 मार्च (हि.स.)।फसल विविधिकरण के लिए मूंगफली की खेती लाभकारी है। इसकी जानकारी देते परसौनी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिको ने बताया कि पूर्वी चंपारण जिले में तिलहन की पैदावार को बढ़ाने को लेकर कृषि विज्ञान केंद्र परसौनी द्वारा समूह अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण के अंतर्गत मूंगफली की खेती को किसानों के बीच शुरुआत की गयी है।
इस नई पहल से तिलहन की खेती को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ फसल विविधिकरण को भी प्रोत्साहन मिलेगा। गरमा (जायद) ऋतु में तिलहनी फसलों में मूंगफली को सबसे लाभदायक फसल माना जाता है। इसे ‘किसानों का सोना’ भी कहा जाता है, क्योंकि यह एक प्रमुख नगदी फसल है। मूंगफली की खेती को बढ़ावा देने से किसानों के पास एक अतिरिक्त आय का स्रोत आएगा, जिससे वे अपनी कृषि प्रणाली को और अधिक मजबूत कर सकेंगे। फसल विविधिकरण से भूमि की उर्वरता भी बनी रहती है। इस संदर्भ में, डॉ. अंशू गंगवार, विषय वस्तु विशेषज्ञ (कृषि अभियंत्रण) ने कृषि विज्ञान केंद्र, परसौनी के प्रशिक्षण सभागार में पहाड़पुर प्रखंड के अत्युत्तम किसान उत्पादक संगठन और तुरकौलिया प्रखंड के सामेंदु एग्रोप्रोडूयूसर संगठन के सदस्यों एवं अन्य किसानों के लिए मूंगफली की खेती पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम के माध्यम से किसानों को मूंगफली की खेती से संबंधित संपूर्ण जानकारी प्रदान की गई, और किसानों के बीच मूंगफली के बीज के साथ अन्य क्रिटिकल इनपुट की सहायता प्रदान की गयी।
कार्यक्रम में डॉ. गंगवार ने किसानों को समूह अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण कार्यक्रम के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि समूह अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण किसानों को नवीनतम पद्धतियों का हस्तांतरण करने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है और इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य, उन्नत किस्मों, फसल उत्पादन और संरक्षण प्रौद्योगिकियों तथा प्रबंधन पद्धतियों को वास्तविक कृषि स्थितियों में किसानों के खेतों पर प्रदर्शित करना है। इसके साथ ही उन्होंने मूंगफली के महत्व पर प्रकाश डाला और बताया कि मूंगफली प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, और कई महत्वपूर्ण विटामिनों और खनिजों से भरपूर होता है। फसल उत्पादन में लागत को कम करने के दृष्टिकोण से मूंगफली के उत्पादन में कृषि यंत्रीकरण के महत्व को भी रेखांकित किया और मूंगफली की पंक्ति में बुवाई करने की सलाह दी। मृदा विशेषज्ञ, डॉ. आशीष राय ने बताया कि गर्मी के मौसम में मूंगफली के बीज की लगभग 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करनी चाहिए। इसके दाने बड़े आकार के होते हैं, जिसमें तेल की मात्रा लगभग 45-50 प्रतिशत तक पाई जाती है। बीज के लिए चयनित फलियों में से बुवाई के लगभग 1 सप्ताह पहले दाने हाथ या मशीन से निकाल लें। मूंगफली के अधिक उत्पादन हेतु जिस मिट्टी में कैल्शियम एवं जैव पदार्थों की अधिकता युक्त दोमट एवं बलुई दोमट अच्छी होती है उसमें बुआई करें। गहरी और भारी मिट्टी में मूंगफली की बुवाई नहीं करनी चाहिए। बुआई के पहले खेत की गहरी जुताई करें किसान जिससे मूंगफली के दाने ज्यादा बनेंगे और जड़ का विस्तार ज्यादा होगा और सिंचाई के बाद मिट्टी को जरूर चढ़ाएं जिससे पौधे का बढ़वार अधिक होगा।
बीज को बुआई के पहले राइजोबियम से उपचारित बीज का प्रयोग करने की सलाह दी। मूंगफली की बुवाई कतारों में की जानी चाहिए, और कतारों के बीच कम से कम 30-45 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए। सिंचित क्षेत्रों में बीज की गहराई 4-5 सेंटीमीटर तक रखनी चाहिए। इसके साथ ही डॉ राय ने मूंगफली के खेती में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम के अलावा सल्फर, बोरोन, और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों के उपयोग के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी। फसल में खरपतवार प्रबंधन के लिए प्री-एमरजेंस और पोस्ट- एमरजेंस खरपतवारनाशी दवाओं के बारे में भी बताया गया। उन्होंने यह भी बताया कि किसी भी फसल की उपज कैसी होगी, यह काफी हद तक उसकी सिंचाई पर निर्भर करता है। ऐसे में कम से कम 2-3 सिंचाई करने की सलाह किसानों को दी गई। अन्य तकनीकी जानकारी के लिए विशेषज्ञों से समय-समय पर सलाह जरूर लेते रहें किसान।
हिन्दुस्थान समाचार / आनंद कुमार