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बीजापुर, 30 मार्च (हि.स.)। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिला से लगभग 47 किमी दूर चेरपल्ली के पास सकलनारायण की पहाड़ी है, इस पहाड़ी पर स्थित गुफा में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति है। हर साल गुड़ी पड़वा यानी हिन्दू नववर्ष के दिन बड़ी तादात में श्रद्धांलु दर्शन करने के लिए यहां पहुंचते हैं। यहां सकल नारायण मेला का भव्य आयोजन 26 मार्च से शुरू हो गया है, जिसका आज 30 मार्च को गुड़ी पड़वा के दिन परायण हाे जायेगा।
तय कार्यक्रम के अनुसार चिंतावागू नाला के किनारे मेला का आयोजन होता है, जिसमें 26 मार्च को मंडपाच्छदान 27 को गोवर्धन पूजा अर्चना एवं ध्वजा रोहण, 28 मार्च को पूजा अर्चना मंदिर परिसर में, 29 मार्च को 2 बजे से माता राधा एवं कृष्ण का विवाह समारोह संपन्न हुआ। मंदिर के अंदर राधा कृष्ण एवं रुक्मणी की मूर्ति स्थापित है, जहां रात भर मेला भरता है। उसके दूसरे दिन अर्थात आज 30 मार्च को मेले का समापन कर हिंदू नव वर्ष एवं गुड़ी पड़वा मनाया गया तथा लोग एक दूसरे को नया वर्ष एवं चैत्र नवरात्रि की शुभकामनाएं एवं बधाइयां दी।
सकलनारायण गुफा तक पहुंचने कोई पक्का रास्ता नही हैं। पगडंडियों के रास्ते से होकर भगवान के दर्शन करने भक्त पहुंचते हैं। गुफा के अन्दर घनघोर अंधेरा रहता है। दर्शन करने आए भक्त अपने साथ टार्च या मोबाइल टार्च के सहारे अन्दर प्रवेश करते हैं, सामने के प्रवेश द्वार पर चौखट लगी है। सकलनारायण गुफा के अंदर बहुत सारी सुरंगें हैं। गुफा के अंदर सीढ़ियां बनी हुई हैं, सीढ़ियां चढ़ने के बाद श्रीकृष्ण भगवान अपनी उंगली से पर्वत को उठाए हुए नजर आते हैं। भक्तगण दर्शन करने के बाद कुछ दूरी पर पतली सुरंग है जिसमें पांच पांडवों की मूर्तियां हैं। ठीक उसके ऊपर में भी एक सुरंग है जिसमें गोपियों की मूर्ति है। गुफा के दाईं ओर कालिंदी कुंड है वहां हर समय दलदल बना रहता है पत्थर के ऊपर से पानी रिसता रिसता है इस पानी को लोग अमृत के रूप में ग्रहण करते हैं। उस कुंड के बगल से पापनाशक द्वार है, जिसमें होकर निकलने पर सब पाप कट जाने की बात पुराने बुजुर्ग कहते हैं।
बाहर निकलने का रास्ता काफी छोटा और संकरा है। यहां घुटनों के बल चलकर निकलना होता है। सकलनारायण गुफा का अंतिम द्वार एकदम अनोखा है, गुफा के आस-पास सैकड़ों मधुमक्खियों के छत्ते लगे हैं। पहाड़ी के आस-पास गांव के पुजारी और ग्रामीण भगवान के दर्शन की पूरी व्यवस्था करते हैं। हिन्दू नववर्ष के अंतिम और शुरुआत के समय भगवान श्रीकृष्ण और राधा की शादी रचाई जाति है। आस-पास के ग्रामीण इस आयोजन में शामिल होते हैं, भगवान की मूर्तियों की शादी रचाई जाति है, यह कार्यक्रम पूरे पांच दिन का होता है। शादी समारोह के अंतिम दिन हिन्दू नववर्ष की शुरुवात होती है। इस मेले को हिंदू वर्ष का अंतिम और आगमन मेला कहा जाता है। हर साल यहां हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं और नए साल के आगमन पर भगवान श्रीकृष्ण से सुख, शांति, समृद्धि और सौभाग्य की कामना करते हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे