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विद्यासागर विश्वविद्यालय में हुआ आयोजन, विशेषज्ञों ने हिंदी पत्रकारिता की विरासत पर रखे विचार
मिदनापुर, 28 मार्च (हि.स.)। पश्चिम बंग हिंदी अकादमी के तत्वावधान में विद्यासागर विश्वविद्यालय, मेदिनीपुर में शुक्रवार को 'हिंदी पत्रकारिता की विरासत और बंगाल' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। यह कार्यक्रम पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पहल और अकादमी के अध्यक्ष विवेक गुप्ता के प्रोत्साहन से आयोजित किया गया।
कार्यक्रम का उद्घाटन विद्यासागर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. दीपक कुमार कर, कुलसचिव डॉ. जयंत किशोर नंदी, पश्चिम मेदिनीपुर जिला सूचना एवं संस्कृति अधिकारी वरुण मंडल, विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रमोद कुमार प्रसाद, आलोचक मृत्युंजय श्रीवास्तव, प्रो. अंजुमन आरा, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के डॉ. विवेक सिंह और आशुतोष कॉलेज की प्राध्यापिका डॉ. रीमा राय ने किया।
इस अवसर पर कुलपति डॉ. दीपक कुमार कर ने कहा कि भारत की विभिन्न भाषाएं हमें एकता के सूत्र में बांधती हैं और हिंदी संपर्क भाषा के रूप में अहम भूमिका निभाती है। वहीं, पश्चिम बंग हिंदी अकादमी के सदस्य एवं संयोजक डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि बंगाल और हिंदी का संबंध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक है। उन्होंने कहा कि एक समय बंगाल ने हिंदी पत्रकारिता की नींव रखी थी और आज हिंदी अकादमी उस परंपरा को नई पीढ़ी से जोड़ने का काम कर रही है।
कार्यक्रम के पहले तकनीकी सत्र में वक्तव्य देते हुए डॉ. इतु सिंह ने कहा कि पत्रकारिता का प्रारंभिक उद्देश्य समाज, भाषा और देश सेवा था। उन्होंने बताया कि बंगाल से प्रकाशित पत्रिकाएं जनता में आत्मबोध की भावना जगाने के लिए थीं। डॉ. रेणु गुप्ता ने कहा कि पत्रकारिता का जन्म प्रतिरोध की संस्कृति के रूप में हुआ था और इसने दो सौ वर्षों की यात्रा पूरी कर ली है।
डॉ. रीमा राय ने पत्रकारिता के बदलते स्वरूप पर चर्चा करते हुए कहा कि आज मीडिया जनता की सोच को नियंत्रित करने का एक माध्यम बन चुका है। वहीं, डॉ. विवेक सिंह ने कहा कि पत्रकारिता की विरासत में मोह का भाव तो है ही, लेकिन इसके खोने का दुख भी है। उन्होंने कहा कि आजादी के समय पत्रकारिता में जो बदलाव हुए, वे कांग्रेस के बदलते तेवर से जुड़े थे।
अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. अंजुमन आरा ने कहा कि यह आयोजन बंगाल में हिंदी पत्रकारिता की विरासत को समझने और सहेजने का कार्य कर रहा है।
दूसरे तकनीकी सत्र में प्रो. लिली शाह ने 'नया समाज' पत्रिका के माध्यम से पत्रकारिता के स्वरूप को समझाया। डॉ. मधु सिंह ने बताया कि 'नृसिंह' पहली राजनीतिक पत्रिका थी, जिसका मुख्य उद्देश्य न्याय की रक्षा और झूठ का पर्दाफाश करना था।
प्रो. मंटू दास ने कहा कि पत्रकारिता की विरासत को बचाने के लिए गांधी के तीन बंदरों की सीख को अपनाना होगा। डॉ. श्रीकांत द्विवेदी ने 'विश्व भारती' पत्रिका के इतिहास और वर्तमान पर प्रकाश डाला, जबकि डॉ. पंकज साहा ने पत्रकारिता की मौजूदा स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि यह कई चुनौतियों का सामना कर रही है।
इस सत्र में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा कि पत्रकारिता की पूरी यात्रा 'ज़ख्म से जश्न' तक की यात्रा है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में विरासत को याद करना देशद्रोह जैसा समझा जाता है, लेकिन यह आयोजन इस विरासत को सहेजने का प्रयास कर रहा है।
तीसरे तकनीकी सत्र में डॉ. संजय पासवान ने कहा कि वर्तमान समय में पत्रकारिता में भाषाई विभेद देखने को मिल रहा है। डॉ. प्रकाश अग्रवाल ने कहा कि आज मीडिया संस्थानों के पास सरकारी अनुदान और विज्ञापन के अलावा कोई अन्य आर्थिक विकल्प नहीं है, जिससे निःस्वार्थ भाव से समाज सेवा करने वाले पत्रकारों की संख्या घट रही है।
इस सत्र में आदित्य गिरि ने बंगाल की सांस्कृतिक और भाषाई विरासत पर जोर दिया। अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ. प्रमोद कुमार प्रसाद ने कहा कि हिंदी पत्रकारिता की विरासत साहित्यिक पत्रकारिता के समानांतर चल रही है।
इस अवसर पर अंकिता महापात्रा और ज्योति चौरसिया ने शोध पत्र वाचन किया। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. संजय जायसवाल, डॉ. इबरार ख़ान, रूपेश कुमार यादव और मदन शाह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन सुषमा कुमारी, गायत्री वाल्मीकि और टीना परवीन ने दिया।
कार्यक्रम को सफल बनाने में विकास जायसवाल, अनिल शाह, चंदन भगत, मधु साव, लक्ष्मी यादव, निशु कुमारी, सृष्टि गोस्वामी, रिया श्रीवास्तव और गायत्री वाल्मीकि की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इस अवसर पर असित पांडेय, संजय शाह, लक्खी चौधरी, सपना खरवार सहित सैकड़ों साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।
हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर