गोलाघाट में रंगाली बिहू के स्वागत की तैयारियां जोरों पर
गोलाघाट, 28 मार्च (हि.स.)। असम में रंगाली बिहू का आगमन होने ही वाला है, और इस पर्व के स्वागत में पूरे राज्य सहित गोलाघाट जिले में भी तैयारियां जोरों पर हैं। फागुन की तेज़ आंधियां पेड़ों की पुरानी पत्तियों को गिराकर उन्हें नंगे शाखों में बदल रही हैं।
गोलाघाट में बैसाखी के स्वागत की तैयारियां जोरों पर


गोलाघाट, 28 मार्च (हि.स.)। असम में रंगाली बिहू का आगमन होने ही वाला है, और इस पर्व के स्वागत में पूरे राज्य सहित गोलाघाट जिले में भी तैयारियां जोरों पर हैं। फागुन की तेज़ आंधियां पेड़ों की पुरानी पत्तियों को गिराकर उन्हें नंगे शाखों में बदल रही हैं। इसी बीच सेमल के लाल फूल, आम के मंजर, कटहल के कोमल पत्ते और कोयल की मधुर कूक ने बसंती मौसम में एक नया रंग घोल दिया है। धरती की इस श्रृंगार बेला के साथ ही असमिया समाज का सबसे प्रिय पर्व, रंगाली बिहू, दरवाजे पर दस्तक दे चुका है।

गोलाघाट के विभिन्न क्षेत्रों में बिहू के स्वागत की तैयारियां बड़े उत्साह के साथ चल रही हैं। बिहू नर्तक और नर्तकियां अपनी प्रस्तुतियों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। गांव-गांव और शहर-शहर में गूंजते ढोल और पेपा की ध्वनियां पूरे वातावरण को संगीतमय बना रही हैं। ग्रामीण घरों के आंगन में बिहू नर्तक और नर्तकियां उत्साहपूर्वक नृत्य का अभ्यास कर रहे हैं।

इसके साथ ही ढोल निर्माताओं की भी व्यस्तता चरम पर है। हर गली और नुक्कड़ पर बिहू की तैयारी में जुटे लोगों की चहल-पहल दिखाई दे रही है। गोलाघाट के छात्र संघों और खेल मैदानों में भी बिहू के अभ्यास सत्र आयोजित किए जा रहे हैं। इन सत्रों में युवा लड़कियों से लेकर वृद्ध महिलाएं तक बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। उनकी ऊर्जा और उत्साह देखने लायक है।

गोलाघाट में हर तरफ बिहू का उल्लास छाया हुआ है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लोग अपने घरों और आसपास को संवारने में लगे हैं। फूलों से सजी गलियां, लोक गीतों की गूंज और पारंपरिक वेशभूषा में सजे लोग रंगाली बिहू के स्वागत में मग्न हैं।

असमिया संस्कृति की यह विशिष्ट पहचान न केवल राज्यवासियों को जोड़ती है, बल्कि उनकी परंपराओं और भावनाओं को भी जीवंत बनाती है। इस बार भी गोलाघाट पूरे हर्षोल्लास के साथ बैसाखी का स्वागत करने के लिए पूरी तरह तैयार है।

हिन्दुस्थान समाचार / देबजानी पतिकर