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तिनसुकिया, 28 मार्च (हि.स.)। रंगाली बिहू के आगमन के साथ असम में शिल्पकारों की व्यस्तता बढ़ गई है। डिगबोई और टिंगराई क्षेत्र के तांतशालों (हथकरघा इकाइयों) में महिलाएं पूरे जोश और उत्साह के साथ पारंपरिक गामोछा बुनने में जुटी हुई हैं।
गामोछा, असमिया संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, जिसे रंगाली बिहू के अवसर पर प्रियजनों को उपहार स्वरूप भेंट किया जाता है। इस विशेष मौके पर हाथ से बुने गए गामोछा की मांग बढ़ जाती है। शिल्पकार महिलाएं इस अवसर का लाभ उठाकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रही हैं। वे अपनी कला और मेहनत के माध्यम से अपनी आजीविका चला रही हैं।
हालांकि, बाजार में मशीन से बने गामोछा की गुपचुप बिक्री ने इन शिल्पकारों की परेशानी बढ़ा दी है। बाहरी राज्यों से लाए गए सस्ते और कम गुणवत्ता वाले गामोछे स्थानीय उत्पादों को टक्कर दे रहे हैं। इससे शिल्पकारों की मेहनत और उनकी पारंपरिक कला को नुकसान पहुंच रहा है। हालांकि, राज्य सरकार ने बाहरी यानी मशीन से बने गामोछा की बिक्री पर राज्य में पूरी तरह से रोक लगा रखा है। बावजूद चोरी-छिपे अभी भी मशीन से बने गामोछा बिकते नजर आ जाते हैं।
इसके बावजूद, महिलाओं की लगन और समर्पण में कोई कमी नहीं है। तांतशालों में चरखों की आवाज़ और करघों की लयबद्ध ध्वनि पूरे माहौल को जीवंत बना रही है। अपने हाथों से तैयार किए गए हर गामोछा में वे प्यार और मेहनत की सुगंध भर रही हैं।
रंगाली बिहू के इस उल्लासमय पर्व में असम की परंपरा और संस्कृति को संजोए रखने के लिए शिल्पकारों का यह प्रयास निश्चय ही सराहनीय है।
हिन्दुस्थान समाचार / देबजानी पतिकर