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नई दिल्ली, 25 मार्च (हि.स.)। ग्रामीण परिवारों के लिए नल के पानी तक पहुंच बढ़ाने की दिशा में जल जीवन मिशन के शुभारंभ के बाद से देश में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। अगस्त 2019 में इसकी शुरुआत में केवल 3.23 करोड़ (16.71 फीसद) ग्रामीण परिवारों के पास नल के पानी के कनेक्शन थे। विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से मिले आंकड़ों के मुताबिक 20 मार्च 2025 तक लगभग 12.30 करोड़ अतिरिक्त ग्रामीण परिवारों को इस योजना के तहत नल के पानी के कनेक्शन दिए गए हैं। इस प्रकार 20 मार्च, 2025 तक देश के 19.36 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से लगभग 15.53 करोड़ (80.22 फीसद) परिवारों में नल से जल आपूर्ति की जा रही है।
उक्त जानकारी मंगलवार को राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में जल शक्ति राज्य मंत्री वी. सोमन्ना ने दी। इसमें बताया गया कि केंद्र सरकार जल आपूर्ति, जल वितरण, अपशिष्ट जल और ठोस अपशिष्ट उपचार, सीवरेज प्रणाली, उपचारित अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग, जल प्रबंधन और ऊर्जा अनुकूलन के विशिष्ट क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने के लिए रणनीतिक अंतरराष्ट्रीय साझेदारी बना रही है। भारत और डेनमार्क ने 28 सितंबर, 2020 को एक हरित रणनीतिक साझेदारी की है। इसके बाद राष्ट्रीय जल जीवन मिशन, जल शक्ति मंत्रालय, नई दिल्ली और डेनिश पर्यावरण संरक्षण एजेंसी, पर्यावरण मंत्रालय, डेनमार्क (डीईपीए) के बीच सभी ग्रामीण घरों को पेयजल आपूर्ति उपलब्ध कराने के लिए केन्द्र सरकार के उद्देश्य का समर्थन करने के लिए संयुक्त कार्य योजना (2021-2024) तैयार की गई है। कार्य योजना का उद्देश्य जल आपूर्ति, जल वितरण, अपशिष्ट जल उपचार, सीवरेज प्रणाली, उपचारित अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग, जल प्रबंधन और जल क्षेत्र में ऊर्जा अनुकूलन के विशिष्ट क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाना है।
जवाब में जल शक्ति राज्य मंत्री वी. सोमन्ना ने बताया कि आज तक 11 राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश ‘हर घर जल’ वाले बन गए हैं यानि वहां शत प्रतिशत घरों में नल के पानी की आपूर्ति हो रही है और शेष राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश मिशन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के विभिन्न चरणों में हैं। जल जीवन मिशन के तहत मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार भारतीय मानक ब्यूरो के बीआईएस: 10500 मानकों को पाइप जलापूर्ति योजनाओं के माध्यम से आपूर्ति किए जा रहे पानी की गुणवत्ता के लिए बेंचमार्क के रूप में अपनाया जाता है। बीआईएस पेयजल की गुणवत्ता के लिए विभिन्न फिजियो-केमिकल और बैक्टीरियोलॉजिकल मापदंडों के लिए 'स्वीकार्य सीमा' और 'वैकल्पिक स्रोत की अनुपस्थिति में अनुमेय सीमा' निर्दिष्ट करता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / दधिबल यादव