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प्रयागराज, 25 मार्च (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समग्र शिक्षण अभियान के तहत ब्लाक व न्याय पंचायतों में स्थापित संसाधन केंद्रों में कार्यरत एकेडेमिक रिसोर्स पर्सन (एआरपी) को नई चयन प्रक्रिया से बाहर करने के खिलाफ दाखिल परिषदीय विद्यालयों के सैकड़ों सहायक अध्यापकों की याचिकाएं खारिज कर दी हैं।
कोर्ट ने कहा कि बच्चों में भाषाई व गणितीय कौशल बढ़ाने की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत आदर्श विद्यालय विकसित करने की सरकार की नीतिगत योजना में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि तीन वर्ष तक काम कर चुके अध्यापकों को विद्यालयों में वापस भेज अनुभव का लाभ लेना और नए अध्यापकों को एआरपी बनने का अवसर देना किसी प्रकार से विभेदकारी व मनमानापन नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि सरकार ने तीन वर्ष से अधिक एआरपी रहे चुके अध्यापकों को अनर्ह करार देकर नए को चयनित करना छात्रों के बृहत्तर हित में है और सरकार की नीति तार्किक भी है। यह निर्णय न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की ने दिलीप कुमार सिंह राजपूत व 20 अन्य सहित दर्जनों याचिकाओं को खारिज करते हुए दिया है।
याचियों का कहना था कि दो फरवरी 2019 से नई व्यवस्था लागू की गई है। चयन मापदंड तय है। एआरपी का शुरुआती कार्यकाल एक वर्ष व कार्य प्रकृति के अनुसार नवीनीकरण जो अधिकतम तीन वर्ष तक निर्धारित किया गया है। याची पिछले पांच वर्षों से एआरपी के रूप में कार्यरत हैं। अब सरकार ने नई नियुक्ति करने का फैसला लिया है, जिसमें तीन वर्ष कार्य कर चुके लोगों को चयन के लिए अनर्ह घोषित कर दिया गया है।इसे याचिका में चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया था कि याचियों को भले ही चयनित होने का अधिकार नहीं है लेकिन उन्हें चयन प्रक्रिया में शामिल होने का अधिकार है। उन्हें रोकना संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 का उल्लंघन है।
कोर्ट ने कहा कि पूरे प्रदेश में चार लाख से अधिक अध्यापक हैं। प्रत्येक ब्लाक में पांच एआरपी नियुक्त हैं। योजना स्थायी नहीं, कुछ वर्षों की है। तीन वर्ष कार्य के बाद अपने विद्यालय में वापस जाएं और अनुभव का लाभ अपने मूल विद्यालय में जाकर दें। एआरपी के प्रदेश में 4400 पद ही हैं। नए लोगों को अवसर देना मनमानी नहीं है।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे