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अरुण कुमार दीक्षित
औरंगजेब एक धर्मांध शासक था। औरंगजेब ने इस्लाम को राज्य धर्म बनाया। बहुसंख्यक हिंदुओं को इस्लाम धर्म में परिवर्तित किया। उसने सामाजिक, राजनीतिक दुर्व्यवहार किया। वह कभी भी सर्व समाज का हितैषी नहीं रहा। सम्पूर्ण मानवता के लिए कभी स्वीकार करने वाला शासक नहीं बन पाया। साम्राज्य जरूर बढ़ता गया। उसने हिन्दुओं के प्रति ही नहीं शिया मुसलमानों के प्रति भी घृणित आचरण किया। राज्य की सेवाओं में शियाओं को औरंगजेब ने पृथक कर रखा था। औरंगजेब की क्रूरता की पराकाष्ठा इस सीमा तक थी, कि उसने हिन्दुओं पर (जजिया) तीर्थ कर व्यापारिक कर जैसी कठोरताएं की थी। हिन्दुओं को भारत में ही अपमानित करने के साथ उसने राज्य की सेवाओं से हटाने की भी कार्रवाई की थी। असंख्य हिन्दू मंदिरों को तोड़ने, देवी-देवताओं की मूर्तियों को अपमानित कर तोड़ने के इतिहास का नाम है औरंगजेब।
औरंगजेब ने कभी मानवीय मूल्यों को नहीं समझा। वह भारत को दारुल हरब में परिवर्तित करने के लिए जीवन भर जुटा रहा। प्रत्येक भारतवासी को यह बात समझना होगा कि वह विदेशी हमलावर था। वह लाखों कत्ल करने वाले तैमूरलंग, बाबर, नादिरशाह, गजनी, गोरी, गाजी, खिलजी की तरह लुटेरा युद्ध पिपासु था। इन विदेशी आक्रांताओं ने लगातार मंदिरों,नगरों, गांवों को लूटा। कत्लेआम किया। भारत की संस्कृति, सभ्यता को तहस-नहस करने में कोताही नहीं बरती। बावजूद इसके भारत मे इनकी तरफदारी करने वाले अनेक लोग सक्रिय हैं। औरंगजेब को लेकर पूरे राष्ट्र में बहस है। एक तरफ बहस में भारत को एक संस्कृति एक राष्ट्र मानने जानने वाले लोग हैं, दूसरी तरफ विदेशी आक्रमणकारियों को उनके सैकड़ों वर्ष मृत्यु के पश्चात गले लगाने को आतुर दिखाई दे रहे हैं। उनके प्रतीकों को लेकर हल्ला मचा रहे हैं।
ऐसी स्थितियां भारत के मन को चिंतित और व्यथित करने वाली हैं। इससे अनेक प्रश्न भी उभर रहे हैं। भारत के वह लोग जो विदेशी हमलावरों की स्मृतियों को आखिर क्यों सजाने और संवारने को लेकर तत्पर हैं। झगड़े पर आमादा हैं। यह प्रश्न राजनीतिक नहीं है। यह भारत के स्व और भारत की संस्कृति पर हमला है। भारत की रिद्धि, सिद्धि और समृद्धि से जुड़े प्रश्न हैं। इस पर तो बात होनी ही चाहिए कि विदेशी आक्रांताओं का महिमा मण्डन करने वाले आखिर चाहते क्या है ? औरंगजेब के कालखंड में हिन्दू अपने मंदिरों की मरम्मत नहीं कर सकते थे। उसका सीधा आदेश था कि मंदिरों की मरम्मत न करने दी जाए। उसने अपने सूबेदारों को सभी हिन्दू मंदिरों एवं पाठशालाओं को तोड़ने की आज्ञा भी दी थी। इससे हिन्दू अपने धर्म की शिक्षा का प्रचार प्रसार न कर पाएं। बनारस का विश्वनाथ मंदिर, मथुरा का केशव देव मंदिर, गुजरात का सोमनाथ मंदिर ध्वस्त किए गए। साथ ही अधिकांश उत्तर भारत के बड़े-बड़े मंदिरों को तोड़ दिया गया था। औरंगजेब के अधीनस्थ हिन्दू राजाओं के राज्यों में भी मंदिर, पाठशालाएं ध्वस्त की गईं। इन सभी स्थानों पर औरंगजेब के आदेश अनुसार मस्जिद बनाई गईं। 1679 में हिंदुओं पर जजिया (धार्मिक कर) लगा दिया गया।
इसके लिए सभी गैर मुसलमानों को तीन वर्गों में बांटा गया। हिन्दुओं पर तीर्थ यात्रा कर लगाया गया। जबकि मुसलमान तो व्यापारिक कर से भी मुक्त थे। हिन्दू व्यापारियों से वस्तुओं के मूल्य का पांच फीसदी धन कर के रूप में लिया जा रहा था। हिन्दुओं को लगान और विशेष स्थान की नियुक्तियों से हटा दिया गया था। साल 1674 में गुजरात में धार्मिक अनुदान में हिन्दुओं को दी गई भूमि को जब्त कर लिया गया। 1688 में हिन्दुओं के त्योहार और उत्सव पर प्रतिबंध लगाया गया था। उसी समय राजपूतों के अतिरिक्त सभी हिन्दुओं को पालकी या अच्छे घोड़े की सवारी करने और हथियार रखने से भी रोक दिया गया था। इस तरह की प्रताड़ना का सीधा अर्थ धर्म परिवर्तन ही था। इतिहासकार लेनपूल ने लिखा है, ''अपने इतिहास में मुगलों ने पहली बार एक कट्टर मुसलमान को बादशाह के रूप में देखा। औरंगजेब 40 वर्ष की आयु में बादशाह बना था।'' उसकी धार्मिक असहिष्णुता के कार्यों पर विचार करते हुए डॉ. एसआर शर्मा ने लिखा, ''ये सभी कार्य एक योग्य शासक अथवा एक निर्माणकर्ता राजनीतिज्ञ के नहीं थे, बल्कि एक अंधी धर्मांधता का विस्फोट था जो, उन्हें निःसंदेह अन्य सभी क्षेत्रों में मेधावी औरंगजेब के लिए शोभनीय न था।''
औरंगजेब की धार्मिक नीति के विरुद्ध पहला संगठित विद्रोह जाटों ने किया था। मथुरा में वीर सिंह बुंदेला द्वारा बनवाए गए केशव देव मंदिर को तोड़कर उसी स्थान पर मस्जिद स्थापित की। औरंगजेब वास्तव में राजपूतों के स्वतंत्र अस्तित्व को समाप्त करना चाहता था। शिवाजी भारत के राष्ट्रनायक थे। मुगलों से शिवाजी का पहला संघर्ष 1656 ई. में हुआ। 1660 में शिवाजी का बीजापुर और दक्षिण के सूबेदारों संघर्ष हुआ। राजा जयसिंह के समझाने पर शिवाजी 1666 में औरंगजेब से मिलने आगरा आए। वहां औरंगजेब ने शिवाजी को नजरबंद कर दिया। शिवाजी वहां से अपनी बुद्धिमत्ता और चतुराई से वापस महाराष्ट्र पहुंच गए। तीन वर्ष संघर्ष रुका रहा। 16 जून 1674 ई. को रायगढ़ में बनारस के वैदिक अध्येता पं. विश्वेश्वर गागभट्ट ने शिवाजी का राज्याभिषेक किया। छत्रपति शिवाजी की उपाधि धारण कर उन्होंने एक स्वतंत्र हिंदू राज्य की स्थापना की। 14 अप्रैल 1680 ई. में शिवाजी की मृत्यु हो गई। औरंगजेब कभी भी शिवाजी से युद्ध में सफलता नहीं पा सका (पृष्ठ संख्या 131,158 मध्यकालीन इतिहास एलपी शर्मा)। मराठों का औरंगजेब से संघर्ष आजीवन चला। औरंगजेब कभी सफल नहीं हुआ। 3 मार्च 1707 में औरंगजेब की मृत्यु हुई। उसे दौलताबाद से चार मील दूर शेख जैन उल हक के मजार के निकट दफन किया गया।
किसी भी राष्ट्र की संस्कृति अपने धर्म, दार्शनिक विचार, कविता, साहित्य और कला आदि के रूप में अभिव्यक्त करती है। भारत की संस्कृति ने अपने को जिस रूप में अभिव्यक्त किया है, उसकी मुख्य विशेषता अध्यात्म की भावना है। भारत का इतिहास प्राचीन है। यहां की सभ्यता संसार की प्राचीन सभ्यताओं में गिनी जाती है। वेद दुनिया का प्राचीनतम अभिलेख है। प्राचीन संसार की अनेक सभ्यताएं नष्ट हो चुकी है। वेद, उपनिषद , गीता ज्ञान की धारा आज भी प्रवाहमान है। भारत की संस्कृति में राम, कृष्ण, बुद्ध और महावीर की सर्व भूत हिते रतः की धारा है। भारत ने अपने गौरवशाली इतिहास को लगातार विकसित किया है। वही इतिहास भारतीय संस्कृति है। एक तरफ भारत की सहिष्णु संस्कृति है। दूसरी ओर हिंसक रक्तपात करने वालों का कलुषित इतिहास है। वह भारत की संस्कृति सभ्यता पर सांस्कृतिक प्रतिमानों पर सदियों से हमलावर रहने वाले है। विध्वंसक हैं। पूर्व में एक शासन पूरे भारत में न रहना अलग बात है। मगर भारतीय अनुभूति यही रही है कि राष्ट्र धार्मिक,साहित्यिक, सांस्कृतिक रूप से एक है। यह कम से कम राजनीतिक क्षेत्र में अभिव्यक्त होना चाहिए।
यह ऐतिहासिक तथ्य है कि मुस्लिम धर्माचार्यों के अनुसार दो प्रकार के देश होते थे। जिन देशों के निवासी मुसलमान हों, उन्हें वे दारुल इस्लाम शांति मय देश कहते थे। और जहां इस्लाम का प्रचार न हो उन्हें वे दारुल हरब युद्धस्थली समझते थे। मुस्लिम धर्माचार्यों का मत था, कि दारुल हरब के खिलाफ जिहाद करना और उनको जीतकर इस्लाम के झंडे के नीचे ले आना मुसलमानों का धार्मिक कर्तव्य है। भारत में इस्लाम का प्रथम प्रवेश अरब साम्राज्य के संगठित होने पर 712 ईस्वी में एक अरब सेनापति मोहम्मद बिन कासिम ने भारत के सिंध प्रांत में आक्रमण किया था। जीतकर अपने कब्जे में लिया था। तब से अब तक हमले जारी हैं। आज भारत पूरी दुनिया में मजबूती के साथ खड़ा है। दुनिया के देश भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं। प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य होना चाहिए कि वह राष्ट्र के ममत्व एकत्व के जागरण में रहे। विभिन्न सम्प्रदायों, पंथिक आस्थाओं का लक्ष्य राष्ट्र सर्वोपरि ही होना है। यहीं से वसुधैव कुटुम्बकम का राजमार्ग जाता है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद