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- संदेह से परे अपराध साबित करने में अभियोजन रहा नाकाम
- गाजियाबाद की सत्र अदालत ने सुनाई थी सजा
प्रयागराज, 24 मार्च (हि.स.)। नाबालिग से दुष्कर्म तथा हत्या मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे आरोपित को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है। यह राहत उसे 16 साल बाद मिली है।
न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह एवं न्यायमूर्ति डा. गौतम चौधरी की खंडपीठ ने अभियोजन द्वारा पेश छह वर्षीय बच्चे की गवाही को संदिग्ध माना और संदेह का लाभ देते हुए अपीलार्थी सलीम को बरी करने का आदेश पारित किया।
यह मामला थाना निवाड़ी जिला गाजियाबाद का है। अपीलार्थी के खिलाफ 25 अप्रैल को नौ वर्षीय बच्ची संग दुष्कर्म कर उसकी हत्या करने की प्राथमिकी ईंट भट्टे पर काम करने वाले श्रमिक ने दर्ज कराई थी। पुलिस ने सलीम के खिलाफ 18 जून 2009 को चार्जशीट दाखिल की। अतिरिक्त जनपद एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट संख्या-11, गाजियाबाद ने 31 जनवरी 2014 को अपीलार्थी को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। जिसे अपील में चुनौती दी गई थी।
न्यायमित्र अधिवक्ता ने तर्क दिया कि सजा का मूल आधार एक छह वर्षीय बच्चे की गवाही संदिग्ध है, जिसने मृतका को अपीलार्थी के साथ अंतिम बार देखा था। किन्तु आरोपित द्वारा ही दुष्कर्म कर हत्या की गई इसका कोई साक्ष्य देने में अभियोजन विफल रहा।
कोर्ट ने कहा एक तरफ दोषी को सजा मिले ,यह अभियोजन का दायित्व है। दूसरी तरफ अपराध संदेह से परे साबित भी किया जाना जरूरी है। आरोपित 26 अप्रैल 2009 से जेल में बंद हैं। उसे अन्य केस में वांछित न हो तो तत्काल रिहा करने का कोर्ट ने निर्देश दिया है।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे