Enter your Email Address to subscribe to our newsletters
जयपुर, 23 मार्च (हि.स.)। राजस्थानी भाषा के प्रचार-प्रसार और संवर्धन के लिए तीन दिवसीय 'विजयदान देथा साहित्य उत्सव' का आयोजन जयपुर के जवाहर कला केंद्र में 21 से 23 मार्च तक किया गया। इस भव्य साहित्यिक आयोजन के अंतिम दिन राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति के प्रमुख साहित्यकारों, कवियों, विद्वानों और भाषा प्रेमियों ने भाग लिया। उत्सव में दस सत्रों के दौरान लगभग पचास साहित्यकारों ने राजस्थानी भाषा के इतिहास, महत्व और विभिन्न साहित्यकारों जैसे विजयदान देथा, रानी लक्ष्मी कुमारी चुंडावत, सीताराम लालस, नृसिंह राजपुरोहित, किशोर कल्पनाकांत, चतर सिंह बावजी, ओम पुरोहित कागद और कन्हैया लाल सेठिया के लेखन और साहित्य में महिलाओं के योगदान पर विचार-विमर्श किया।
प्रातःकालीन सभा की शुरुआत तुषार शर्मा और उनके साथी कलाकारों द्वारा प्रस्तुत गायन से हुई। इसके बाद ‘राजस्थानी भाषा रो कथा संसार’ विषय पर आयोजित सत्र में मनोहर सिंह राठौड़, दिनेश पांचाल और शिवराज भारतीय ने अपने विचार रखे, जिसमें विजय जोशी सूत्रधार रहे। दिनेश पांचाल ने कहा कि राजस्थानी कहानी लेखन की परंपरा बहुत पुरानी है और यह लोक कथाओं से विकसित हुई है। विजयदान देथा ने राजस्थानी लोककथाओं को एक मंच पर लाकर इस क्षेत्र में नई शुरुआत की। मनोहर सिंह राठौड़ ने कहा कि राजस्थानी कहानियां आम आदमी को नायक बनाती हैं और साहित्य का उद्देश्य संवेदना को जीवित रखना है। विजय जोशी ने बताया कि राजस्थानी कहानियों का इतिहास व्रत कथाओं से शुरू हुआ, जो समय के साथ त्यौहारों और परंपराओं में समाहित होता चला गया।
‘राजस्थानी री नूंवी कवितावां’ विषय पर आयोजित एक अन्य सत्र में मदन गोपाल लढ़ा, रवि पुरोहित और घनश्याम नाथ कच्छावा ने कविता लेखन में नए प्रयोगों और बदलते समय के प्रभावों पर चर्चा की। मोनिका गौड़ ने सत्र का समन्वय किया। मदन गोपाल लढ़ा ने कहा कि राजस्थानी कविता में पहले युद्ध और रंग-रूप का उल्लेख होता था, लेकिन अब यह संवेदना और वैश्विक विचारों तक विस्तारित हो गई है। घनश्याम नाथ कच्छावा ने कहा कि कविता लोगों को जोड़ने का माध्यम है और नई पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने के लिए नए तरीके अपनाने होंगे। रवि पुरोहित ने कहा कि साहित्यिक रचनाएँ आत्मविश्लेषण और शांति प्रदान करती हैं, इसलिए इसकी प्रासंगिकता बनी रहेगी।
'राजस्थानी देस दिसावर' विषय पर आयोजित सत्र में प्रवासी राजस्थानियों के योगदान और राजस्थानी भाषा के संरक्षण पर चर्चा हुई। इसमें मृदुला कोठारी, गौरीशंकर भावुक और दिनेश जांगिड़ ने अपने विचार व्यक्त किए। दिनेश जांगिड़ ने कहा कि भाषा के साथ संस्कृति आगे बढ़ती है और प्रवासी राजस्थानी जहां भी होते हैं, वहां अपनी भाषा और संस्कृति को जीवंत बनाए रखते हैं। गौरीशंकर भावुक ने राजस्थानी साहित्य के अनुवाद और शोध पर जोर दिया तथा सुझाव दिया कि राजस्थानी साहित्य को संग्रहित कर पुस्तकालयों का निर्माण किया जाए।
समापन सत्र में जयपुर कलेक्टर डॉ. जितेंद्र कुमार सोनी ने कहा कि किसी भाषा में अधिक बोलियां होना उसकी समृद्धि का प्रमाण है। उन्होंने राजस्थानी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए सभी से योगदान देने की अपील की। राज्य धरोहर प्राधिकरण के अध्यक्ष ओंकार सिंह लखावत ने राज्य सरकार की भाषा और संस्कृति के संरक्षण हेतु प्रतिबद्धता को दोहराया। वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र बारहठ ने राजस्थानी भाषा के महत्व और इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डाला।
यह उत्सव राजस्थान सरकार की बजट घोषणा 2024-25 के अंतर्गत आयोजित किया गया था। आयोजन का क्यूरेशन ग्रास रूट मीडिया फाउंडेशन द्वारा किया गया। समापन सत्र में जेकेके की अतिरिक्त महानिदेशक अलका मीणा ने सभी साहित्यकारों और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया। उत्सव के दौरान साहित्यकारों, भाषा प्रेमियों और राजस्थानी संस्कृति को समर्पित व्यक्तियों की बड़ी उपस्थिति रही, जिन्होंने राजस्थानी भाषा को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों की सराहना की।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / ईश्वर