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नई दिल्ली, 22 मार्च (हि.स.)। ‘भारत 2047: जलवायु-अनुकूल भविष्य का निर्माण’ संगोष्ठी का आज यहां भारत मंडप में समापन हुआ, जिसमें निरंतर कार्रवाई, सहयोग और नीति-संचालित जलवायु अनुकूलन और लचीलेपन के लिए जोरदार आह्वान किया गया।
समापन सत्र के दौरान अपने भाषण में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने जलवायु चुनौतियों का सामना करने में भारत की उल्लेखनीय यात्रा पर प्रकाश डाला। उन्होंने जलवायु कार्रवाई की बहुआयामी प्रकृति पर जोर दिया, जिसमें कृषि पर हीटवेव और पानी की कमी के प्रभाव, लचीली स्वास्थ्य प्रणालियों के निर्माण की तात्कालिकता, अनुकूलन वित्तपोषण और निर्मित वातावरण में अभिनव समाधान जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की गई। उन्होंने व्यापक जलवायु अनुकूलन और लचीलेपन उपायों का आह्वान किया। मंत्री ने संगोष्ठी से उभरे महत्वपूर्ण कार्य बिंदुओं को रेखांकित कियाः
मजबूत संस्थागत ढांचे: स्थानीय स्तर सहित शासन के सभी स्तरों पर जलवायु अनुकूलन को शामिल किया जाना चाहिए।
समुदाय संचालित समाधान: नीतियों को जमीनी हकीकत, स्थानीय जरूरतों और परिस्थितियों के अनुरूप बनाया जाना चाहिए।
तत्काल और दीर्घकालिक कार्रवाई: गर्मी राहत कार्यक्रमों, जैसे आपातकालीन हस्तक्षेप महत्वपूर्ण हैं, बुनियादी ढांचे, नीति और वित्तपोषण में प्रणालीगत परिवर्तन दीर्घकालिक लचीलेपन के लिए प्रासंगिक हैं। अनुकूलन वित्त को संबोधित करना, अल्पकालिक और दीर्घकालिक जलवायु अनुकूलन कार्यों में अनुकूलन को मुख्यधारा में लाने के लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।
सहयोगात्मक कार्यान्वयन: नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं, व्यवसायों और समुदायों को न्यायसंगत और न्यायसंगत जलवायु अनुकूलन रणनीतियों को बढ़ाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
मंत्री ने बताया कि भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और लक्ष्मी मित्तल एवं फैमिली साउथ एशिया इंस्टीट्यूट तथा सलाटा इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट एंड सस्टेनेबिलिटी द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने वाले हार्वर्ड विश्वविद्यालय के बीच सहयोग, विशेषज्ञों और हितधारकों को एक साथ लाने और विचारों के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाने का एक अनूठा अवसर रहा है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस संगोष्ठी से प्राप्त सबक और सिफारिशों को 21वीं सदी की जलवायु चुनौतियों से निपटने में भारत की निरंतर अग्रणी भूमिका का समर्थन करने के लिए उचित रूप से लिया जाना चाहिए। पिछले चार दिनों में संगोष्ठी ने जलवायु विज्ञान, सार्वजनिक स्वास्थ्य, श्रम और शहरी नियोजन सहित विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञों के लिए जलवायु परिवर्तन द्वारा उत्पन्न तत्काल चुनौतियों और एक लचीले भविष्य के मार्गों पर विचार-विमर्श करने के लिए एक गतिशील ज्ञान साझाकरण मंच के रूप में कार्य किया। विचार-विमर्श चार प्रमुख विषयों पर केंद्रित था: कृषि, स्वास्थ्य, कार्य और निर्मित पर्यावरण पर इसके निहितार्थों के साथ ऊष्मा और जल का जलवायु विज्ञान।
उन्होंने कहा कि कृषि में जलवायु अनुकूलन के लिए साक्ष्य-आधारित नीतियों और निर्णय लेने की आवश्यकता होती है। खाद्य सुरक्षा और पोषण में सुधार के लिए स्थानीय शासन और जलवायु-लचीली कृषि प्रथाओं पर जोर दिया गया। चर्चाओं में वैज्ञानिक अनुसंधान को नीति, दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन, जल उपयोग प्रवृत्तियों, स्थानीय जलवायु मंचों की स्थापना, हितधारक-केंद्रित मीट्रिक और पूर्वानुमान में एआई को एकीकृत करने का सुझाव दिया गया। विशेषज्ञों ने हितधारकों के बीच संचार, तकनीकी प्रगति और अल्पकालिक और दीर्घकालिक अनुकूलन रणनीतियों को संतुलित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। स्वास्थ्य क्षेत्र में लचीलापन चर्चा में गर्मी के जोखिम की मात्रा और मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें एआई और मशीन लर्निंग में प्रगति का उपयोग करके डेटा संग्रह, सह-सम्बंध और स्थानीय संदर्भ पर विचार करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया। विचार-विमर्श में जलवायु-उत्तरदायी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने, खंडित स्वास्थ्य डेटा परिदृश्य को संबोधित करने और क्रॉस-सेक्टरल सहयोग को बढ़ावा देने के महत्व पर भी जोर दिया गया।
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हिन्दुस्थान समाचार / दधिबल यादव