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हुगली, 17 मार्च (हि. स.)। सोमवार को फुरफुरा शरीफ में आयोजित इफ्तार कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी उपस्थिति और बयानों से एक बार फिर सद्भाव का संदेश दिया। ममता ने इस मौके पर विपक्ष की आलोचनाओं का जवाब देते हुए कहा कि जब मैं दुर्गा पूजा और काली पूजा में हिस्सा लेती हूं, तो कोई सवाल नहीं उठाता। फिर इफ्तार में शामिल होने पर यह सवाल क्यों?
उन्होंने स्पष्ट किया कि वह न केवल हिंदू त्योहारों, बल्कि ईसाई, सिख और मुस्लिम आयोजनों में भी उसी उत्साह से शामिल होती हैं, क्योंकि उनका मानना है कि बंगाल की पहचान ही विभिन्न समुदायों के बीच सौहार्द में निहित है।
ममता ने अपने संबोधन में कहा कि मैं पहले भी कई बार फुरफुरा शरीफ आ चुकी हूं, यह मेरा सोलहवां मौका है। मैं इफ्तार मनाती हूं, गुरुद्वारों में जाती हूं, हर धार्मिक आयोजन का हिस्सा बनती हूं। उन्होंने रमजान के पवित्र महीने में सभी को शुभकामनाएं दीं और प्रार्थना की कि अल्लाह सबके रोजे कबूल करें।
ममता बनर्जी का यह दौरा राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। हाल ही में राज्य विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी की अल्पसंख्यकों पर की गई टिप्पणी और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं हुमायूं कबीर व सिद्दीकुल्ला चौधरी की जवाबी प्रतिक्रिया से उत्पन्न तनाव के बाद, ममता इस मुद्दे पर अल्पसंख्यक समुदाय की नब्ज टटोलना चाहती थीं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह दौरा ममता की उस रणनीति का हिस्सा था, जिसमें वह विपक्ष के आरोपों को निष्प्रभावी करने के साथ-साथ अपने समर्थन आधार को मजबूत करना चाहती हैं।
फुरफुरा शरीफ, जो पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मतदाताओं के बीच प्रभावशाली केंद्र माना जाता है, वहां ममता की मौजूदगी और उनके संदेश ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह धार्मिक राजनीति के खेल को उसी के मैदान में पटखनी देना जानती हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / धनंजय पाण्डेय