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रुद्रप्रयाग, 15 मार्च (हि.स.)। जलवायु परिवर्तन से मौसम में लगातार हो रहे बदलाव से बारिश और बर्फबारी का चक्र भी प्रभावित हो रहा है, जिससे भूस्खलन, भूधंसाव और हिमस्लखन की घटनाएं बढ़ रही है। समय पर बारिश और बर्फबारी नहीं होने से प्रकृति और पर्यावरण व्यापक रूप से प्रभावित हो रहे हैं। सही समय पर पर्याप्त बर्फबारी नहीं होने से ग्लेशियरों में बर्फ की नई सतह नहीं बन रही है, जिससे ग्लेशियर नदियों के स्राव में कमी आ रही है।
पिछले एक दशक में मौसम में व्यापक परिवर्तन हुआ है। जाड़ों के दिनों में तापमान में वृद्धि हो रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिसंबर व जनवरी में दोपहर को केदारनाथ जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्र में तापमान 12 से 16 डिग्री सेल्सियश तक दर्ज किया जा रहा है। यही नहीं, बीते दो-तीन वर्षों में देखने में आया कि यहां जनवरी में दोपहर का तापमान 20 डिग्री तक पहुंचा है। यही स्थित तृतीय केदार तुंगनाथ क्षेत्र में भी देखने को मिली है, जहां तापमान में वृद्धि दर्ज की गई। साथ ही हिमालय क्षेत्र में भी बर्फबारी का क्षेत्र घट रहा है। हिमालय क्षेत्र में शीतकाल में नामात्र बर्फबारी हो रही है, जो किसी भी स्तर पर प्रकृति के लिए शुभ नहीं है। बीते तीन वर्षों में देखें तो बरसात के बाद शीतकाल में नवंबर से जनवरी तक नियमित बारिश और बर्फबारी नहीं हुई हैं।
बीते वर्ष नवंबर से इस वर्ष जनवरी तक भी केदारनाथ, मद्महेश्वर और तुंगनाथ बर्फविहीन रहे। मौसम में हो रहे इस परिवर्तन से ग्लेशियरों को समय पर नहीं बर्फ नहीं मिल पा रही है, जिससे वहां बर्फ की नई सतह तैयार नहीं हो पा रही है। फरवरी-मार्च में अनियमित बर्फबारी हो रही है, जो हिमस्लखन का कारण बन रही है। चोराबाड़ी ग्लेश्यिर के ऊपरी क्षेत्र में वर्ष 2022 से 2024 के बीच हिमस्खलन की छह से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं। वैज्ञानिकों ने के अनुसार, यह सामान्य घटनाएं थी, पर केदारनाथ तक सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम जरूरी है।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी संस्थान, देहरादून के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. मनीष मेहता बताते हैं कि यह शोध से भी स्पष्ट हो चुका है कि एक दशक पूर्व तक दिसंबर व जनवरी के माह होने गिरने वाली बर्फ शुष्क होती थी, जिस कारण बर्फबारी के दौरानरीहिमस्खलन कम से कम होता था। साथ ही समय बढ़ने पर इस बर्फ का घनत्व अधिक होने से यहा जमा रहती थी और बर्फ हिमनद के ऊपर एक आवरण के तौर पर बनी रहती है, जिससे ग्लेश्यिर का पिघलने की गति न्यून रहती थी। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों से मौसम में व्यापक परिवर्तन हुआ है, जिसका असर प्रत्यक्ष दिख रहा है। अब, नवंबर से जनवरी तक बर्फबारी नामात्र हो रही है। फरवरी-मार्च में बर्फबारी हो रही है, पर इस दौरान तक तापमान बढ़ने लगता है। ऐसे में बर्फ जम नहीं पाती और बर्फबारी के साथ ही हिमस्खलन होने लगता है। श्रीबदरीनाथ क्षेत्र के माणा में ग्लेश्यिर से हिमस्लखन का कारण भी यही रहा। इन परिस्थितियों में हिमस्खलन का पूर्वानुमान लगाना भी मुश्किल हो जाता है। फरवरी-मार्च में जो बर्फबारी होती है, वह अप्रैल-मई तक ग्लेशियरों में भी पिघल जाती है, जिससे हिमनद के पिघलने की गति भी बढ़ती है। इन परिस्थितियों में गर्मियों में तापमान में वृद्धि से बारिश का चक्र भी बदल रहा है। यही नहीं, बारिश के चक्र में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। अब, रिमझिम बारिश नहीं हो रही है। सीधे तेज बारिश हो रही है, जिससे भूस्खलन व भूधंसाव की घटनाएं हो रही हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / दीप्ति