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बांसवाड़ा, 14 मार्च (हि.स.)। वागड़ क्षेत्र में होली का पर्व उत्साह और जोश के साथ मनाया जा रहा है। बांसवाड़ा जिले के घाटोल कस्बे में होली की एक अनूठी परंपरा है, जिसमें जलती लकड़ियों से राड़ खेली गई। लगभग 250 वर्षों से चली आ रही इस परंपरा में सर्व समाज की भागीदारी होती है। यह अनोखी परंपरा अपनी भिन्नता और रोमांचक स्वरूप के कारण लाेगाें को आकर्षित करती है।
मध्यरात्रि को पटेलवाड़ा में पाटीदार समाज द्वारा गैर नृत्य का आयोजन किया गया। ढोल की थाप पर युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक ने पारंपरिक गैर नृत्य में हिस्सा लिया। ब्रह्म मुहूर्त में ढोल की थाप बदलते ही युवाओं ने हाथ में जलती हुई लकड़ियां लेकर होलिका दहन किया। इसके बाद पोस्ट चौराहा पर पाटीदार समाज सहित पांच अन्य समुदायों ने मिलकर गैर नृत्य किया।
सूर्योदय की पहली किरण के साथ ही ढोल की थाप के स्वर बदलते ही युवाओं ने दो पक्षों में बंटकर जलती हुई लकड़ियों से पारंपरिक राड़ खेली। एक पक्ष से दूसरे पक्ष की ओर जलती लकड़ियां फेंकी गईं, जिन्हें हवा में लहराते हुए दूसरी लकड़ियों से रोका गया। करीब पांच मिनट तक चली इस रोमांचक परंपरा ने दर्शकों को रोमांचित कर दिया। पंचों द्वारा राड़ रोकने का संकेत दिए जाने के बाद युवाओं और बुजुर्गों ने एक-दूसरे को गले लगाकर होली की शुभकामनाएं दीं।
इस आयोजन के दौरान सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा गया। राड़ खेलने के दौरान दो युवाओं को उंगलियों पर हल्की चोट आई, जबकि एक युवक को पीठ पर हल्की चोट लगी। वर्षों से चली आ रही इस अनूठी परंपरा को देखने के लिए कस्बे सहित आसपास के गांवों से भी लोग पहुंचे। घाटोल कस्बे में यह परंपरा लगभग 250 वर्षों से निभाई जा रही है और इसे विशेष रूप से पाटीदार समाज द्वारा संजोया गया है। होली से लगभग 15 दिन पूर्व से ही पटेलवाड़ा में रात्रि के समय गैर नृत्य का आयोजन शुरू हो जाता है, जो राड़ खेलने तक जारी रहता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / अखिल