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बलिया, 14 मार्च (हि.स.)। आपसी द्वेष मिटाने और हंसी ठिठोली का महापर्व होली पर गीत-गवनई की प्राचीन परम्परा फाग बलिया में बदस्तूर कायम है। बुजुर्गों से जुगलबंदी करते हुए नई पीढ़ी ने इसे अपने कंधे पर बखूबी ले लिया है।
जिले के प्रायः हर गांव में वसंत पंचमी से ही फाग गीत गाने का चलन है। मूलतः ईश्वर की आराधना का माध्यम फाग गायन में वाद्ययंत्रों की भूमिका भी अहम है। ढोलक, झाल और डंफ जैसे वाद्य यंत्रों पर लोग घर घर जाकर फाग गाते हैं। इस बार भी ग्रामीण अंचलों में फाग गीतों की धूम है। बिहार से सटे गड़हांचल के गावों में फाग गायन जोरों पर है। होली से ठीक एक दिन पहले गुरूवार की देर शाम चौरा गांव में फाग गीत गाने के लिए जुटे लोगों ने जमकर माहौल बनाया। फाग गा रहे वीर बहादुर सिंह ने कहा कि इसमें बिलकुल स्वस्थ बोल होते हैं। ख़ासकर भोलेनाथ को समर्पित गीत गाए जाते हैं। वहीं, छोटकन सिंह ने कहा कि हमें इस बात की खुशी है कि युवा फाग गा रहे हैं। हमारे बाप-दादा गाते थे। जिनसे हमने सीखा। अब नई पीढ़ी सीख रही है। हमें खुशी है कि फाग गायन की परम्परा मजबूत कंधों पर है। उन्होंने कहा कि सबसे अहम है कि फाग गाने के लिए जात-पांत नहीं देखा जाता। विरोधी पक्ष के दरवाजे पर भी लोग इसी के माध्यम से जाते हैं और वर्षों पुरानी दुश्मनी भी खत्म हो जाती है। चौरा में फाग गायन में ढोलक, झाल और डम्फ जैसे वाद्य यन्त्रों पर रणधीर सिंह, आनंद सिंह, अरविंद सिंह, रोहित सिंह, श्रवण पाठक, सनन्दन उपाध्याय, प्रतापी सिंह, अभिषेक उपाध्याय, आकाश सिंह धन्नू, रामचंद्र सिंह, नवीन उपाध्याय, केएन सिंह आदि थे।
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हिन्दुस्थान समाचार / नीतू तिवारी