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पेरिस, 10 मार्च (हि.स.)। फ्रांस और ब्रिटेन द्वारा प्रस्तावित यूक्रेन की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय बल की रूपरेखा पर चर्चा के लिए मंगलवार को पेरिस में 30 से अधिक देशों के सैन्य अधिकारियों की एक महत्वपूर्ण बैठक होगी। इस पहल का उद्देश्य यूक्रेन में संभावित युद्धविराम के बाद रूस को दोबारा आक्रमण करने से रोकना है।
बैठक का उद्देश्य और भागीदारी
फ्रांस के एक सैन्य अधिकारी के अनुसार, यह बैठक इस विचार पर केंद्रित होगी कि कैसे एक बहुराष्ट्रीय सुरक्षा बल गठित किया जाए जो युद्धविराम लागू होने के बाद यूक्रेन की रक्षा कर सके। इस पहल में यूरोप, एशिया और ओशिनिया के कई देश शामिल होंगे, जो बैठक में व्यक्तिगत रूप से या ऑनलाइन भाग लेंगे।
फ्रांस और ब्रिटेन इस योजना पर मिलकर काम कर रहे हैं और इसे इच्छुक और सक्षम देशों के गठबंधन के रूप में देख रहे हैं, जो यूक्रेन की सुरक्षा सुनिश्चित करने में योगदान दे सकें।
सैन्य रणनीति और संभावित योगदान
फ्रांसीसी अधिकारी ने कहा कि यह सुरक्षा बल भारी हथियारों और आपातकालीन युद्ध सामग्री के भंडारण से लैस होगा, ताकि रूस द्वारा युद्धविराम तोड़ने की स्थिति में तुरंत यूक्रेन को सहायता दी जा सके।
बैठक के पहले सत्र में फ्रांस-ब्रिटेन की योजना प्रस्तुत की जाएगी, जबकि दूसरे सत्र में प्रतिभागी देश अपनी सैन्य क्षमताओं के अनुरूप योगदान देने पर चर्चा करेंगे।
फ्रांसीसी सैन्य अधिकारी ने कहा, यह मांगपत्र नहीं है, बल्कि यह देखने की प्रक्रिया है कि कौन-कौन क्या योगदान दे सकता है। हालांकि, अंतिम निर्णय राजनीतिक स्तर पर सरकारों द्वारा लिया जाएगा।
नाटो और अन्य देशों की भागीदारी
-नाटो के 32 में से 29 सदस्य देश बैठक में भाग लेंगे, जबकि क्रोएशिया, मोंटेनेग्रो और अमेरिका अनुपस्थित रहेंगे।
-अमेरिका को आमंत्रित नहीं किया गया, क्योंकि यूरोपीय देश यह दिखाना चाहते हैं कि वे यूक्रेन की सुरक्षा जिम्मेदारी स्वयं संभाल सकते हैं।
-ग़ैर-नाटो यूरोपीय संघ सदस्य आयरलैंड, साइप्रस और ऑस्ट्रिया के सैन्य प्रतिनिधि भी बैठक में भाग लेंगे।
-ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान और दक्षिण कोरिया वर्चुअल माध्यम से बैठक में शामिल होंगे।
-यूक्रेन का प्रतिनिधित्व एक सैन्य अधिकारी करेंगे, जो देश की सुरक्षा और रक्षा परिषद के सदस्य भी हैं।
यूक्रेन की सुरक्षा के लिए यह बैठक एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक और सैन्य पहल है, जो भविष्य में यूरोप की सुरक्षा रणनीति और रूस के साथ संबंधों को प्रभावित कर सकती है। इस योजना की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि देश कितनी प्रभावी रूप से सहयोग करने के लिए तैयार हैं और वे कितना सैन्य समर्थन प्रदान कर सकते हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / आकाश कुमार राय