विश्व दलहन दिवस: गुजरात का दलहन क्षेत्र में अभूतपूर्व विस्तार, निर्यात हुआ दोगुना, उत्पादन में शीर्ष स्थान
-गुजरात के दलहन निर्यात में जबरदस्त वृद्धि, उत्पादन में राष्ट्रीय स्तर पर शीर्ष स्थान हासिल किया -गुजरात में दलहन की खेती का रकबा 13.10 लाख हेक्टेयर हुआ, राज्य के दलहन उत्पादन में लगभग तीन गुना की वृद्धि गांधीनगर, 09 फ़रवरी (हि.स.)। विश्व दलहन दिवस
अरहर की दाल


-गुजरात के दलहन निर्यात में जबरदस्त वृद्धि, उत्पादन में राष्ट्रीय स्तर पर शीर्ष स्थान हासिल किया

-गुजरात में दलहन की खेती का रकबा 13.10 लाख हेक्टेयर हुआ, राज्य के दलहन उत्पादन में लगभग तीन गुना की वृद्धि

गांधीनगर, 09 फ़रवरी (हि.स.)। विश्व दलहन दिवस के उपलक्ष्य पर गुजरात में दलहन उत्पादों के उत्पादन और निर्यात में कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2024 से जनवरी 2025 की अवधि में राज्य ने दलहन, ग्वार गम और डेयरी उत्पादों के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण ( एपीइडीए) की रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात में दलहन निर्यात बढ़कर 2,47,789 टन तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में दोगुना है, जिसका सीधा लाभ राज्य के किसानों को हुआ है।

गुजरात ने दलहन उत्पादों में आत्मनिर्भरता हासिल की है। हर साल 10 फरवरी को मनाया जाने वाला विश्व दलहन दिवस, दलहन की खेती और उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है। भारत, जो दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है, तूर, उड़द और मसूर जैसी प्रमुख फसलों में आत्मनिर्भरता पर जोर दे रहा है। हालिया केंद्रीय बजट में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दलहन उत्पादन को सुदृढ़ करने पर विशेष ध्यान दिया गया है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व में गुजरात ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। राज्य ने तूर (1,163 किग्रा/हे.) और चना (1,699 किग्रा/हे.) की उत्पादकता में देश में शीर्ष स्थान प्राप्त किया, जबकि मूंग और उड़द की उत्पादकता में गुजरात पांचवें स्थान पर रहा है।

इतना ही नहीं, गुजरात में दलहन की खेती का क्षेत्र 2018-19 में 6.62 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 2022-23 में लगभग दोगुना यानी 13.10 लाख हेक्टेयर हो गया है, और वहीं इसका उत्पादन भी इसी समयावधि में 6.79 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर लगभग तीन गुना यानी 18.11 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया। इस वृद्धि में चना, मूंग, मोठ और उड़द की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। खासतौर पर चने की खेती में बड़ा इजाफा देखा गया है, जहां इसका रकबा उपरोक्त समयावधि में 1.73 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 7.64 लाख हेक्टेयर हो गया, जबकि उत्पादन 2.35 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 12.98 लाख मीट्रिक टन हो गया है।

दलहन की खेती करने वाले राज्य के किसानों की आजीविका बेहतर हो रही है। केंद्र व राज्य सरकार के विभिन्न प्रयासों के परिणाम स्वरूप वर्ष 2020-21 से प्रमुख दलहन फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में निरंतर वृद्धि हुई है। प्रमुख फसलों की बात करें तो तूर (26%), मूंग (21%), उड़द (23%), चना (11%) और मसूर (31%) ने दलहन की खेती करने वाले किसानों की आजीविका को बेहतर बनाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।

राज्य सरकार की सिंचाई योजनाओं का बहुत अधिक प्रभाव हुआ है। गुजरात की सिंचाई पहलें दलहन उत्पादन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। वर्ष 2005-06 से 2024-25 तक, 24,13,945 हेक्टेयर भूमि को आधुनिक सूक्ष्म-सिंचाई तकनीकों, जैसे ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम के माध्यम से सिंचित किया गया है, जिससे न केवल दलहन की खेती के क्षेत्रफल में वृद्धि हुई है, बल्कि उत्पादन में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है।

इतना ही नहीं, उत्पादकता बढ़ाने के लिए किसान तेजी से आधुनिक कृषि तकनीकों को अपना रहे हैं, जिसमें मशीनीकरण, उन्नत संकर किस्में, प्रमाणित बीज और नवीनतम बीज उपचार तकनीकें शामिल हैं। ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी कुशल सिंचाई प्रणालियाँ, जैविक उर्वरकों का उपयोग, मिश्रित फसल प्रणाली, अंतरफसल और फसल चक्र जैसी तकनीकें संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन को बढ़ावा दे रही हैं।

दलहन की खेती करने वाले किसानों के लिए अन्य सहायता योजनाएं-

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) चना, मूंग, तूर और उड़द के लिए प्रमाणित बीज, सब्सिडी पर प्रदर्शन और प्रशिक्षण प्रदान कर उत्पादकता बढ़ाता है। राज्य सरकार की बीज प्रतिस्थापन दर (एसआरआर) योजना उच्च गुणवत्ता वाले बीज सुनिश्चित करती है, जिससे फसल उत्पादन और किसानों का लाभ बढ़ता है। वहीं, बाजार मूल्य गिरने पर केंद्र सरकार मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत एमएसपी पर दलहन खरीदकर किसानों की आय सुरक्षित रखती है।

जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए, जिससे राज्य ने इस क्षेत्र में नए आयाम हासिल किए हैं। उनके द्वारा शुरू किए गए कृषि महोत्सव ने किसानों को आधुनिक तकनीक से जोड़ा, जबकि सुजलाम सुफलाम और सौराष्ट्र नर्मदा अवतरण इरीगेशन योजना (सौनी) ने जल संकटग्रस्त क्षेत्रों तक सिंचाई का पानी पहुंचाकर गुजरात के कृषि क्षेत्र और किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया। सुनियोजित सब्सिडी और रणनीतियों ने न केवल राज्य के किसानों को लाभान्वित किया बल्कि गुजरात के कृषि निर्यात को भी नई गति दी।

----------------

हिन्दुस्थान समाचार / बिनोद पाण्डेय