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-प्रियंका सौरभ
भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में वर्षों से रैगिंग एक गंभीर बदमाशी और उत्पीड़न की समस्या रही है, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर मनोवैज्ञानिक आघात, आत्महत्या और यहाँ तक कि हत्या जैसे हिंसक अपराध भी होते हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और 2009 से यूजीसी के एंटी-रैगिंग नियमों के बावजूद घटनाएँ जारी हैं। 2012 और 2023 के बीच रैगिंग के कारण 78 छात्रों की मौत इस समस्या के भयावह चेहरे को सामने रखती है।
भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में मुख्य रूप से सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों की वजह से रैगिंग होती है। भारतीय सामाजिक संरचनाओं द्वारा सुदृढ़ कठोर पदानुक्रम में वरिष्ठ छात्र कनिष्ठों पर अपना प्रभुत्व जताते हैं। यह इंजीनियरिंग कॉलेजों में शक्ति-आधारित सामाजिक व्यवस्था को मज़बूत करता है जब वरिष्ठ जूनियर से अपमानजनक कार्य करवाते हैं। आक्रामकता का महिमामंडन करने वाली अति-पुरुषवादी संस्कृति छात्रों को रैगिंग की परंपराओं का पालन करने के लिए मजबूर करती है। मेडिकल संस्थानों में छात्रों को लचीला बनाने के नाम पर धीरज-आधारित असाइनमेंट पूरा करने के लिए मजबूर किया जाता है। कई उच्च शिक्षा संस्थान अत्यधिक हिंसा होने तक हस्तक्षेप को हतोत्साहित करते हैं क्योंकि वे रैगिंग को दीक्षा अनुष्ठान की तरह देखते हैं। साल 2023 में जादवपुर विश्वविद्यालय में रैगिंग को बॉन्डिंग प्रक्रिया के रूप में लिखा गया था, जिसके परिणामस्वरूप एक छात्र की असामयिक मृत्यु हो गई। प्रतिशोध का डर, प्रभावी गवाह सुरक्षा की कमी और सामाजिक कलंक, पीड़ितों को रैगिंग की रिपोर्ट करने से अनिच्छुक बनाते हैं।
रैगिंग को प्रभावी ढंग से खत्म करने के लिए सख्त और त्वरित दंड आवश्यक है। संभावित रैगर्स को हतोत्साहित करने के लिए सुनिश्चित करें कि तत्काल निष्कासन, कानूनी मुकदमा और उसे ब्लैकलिस्ट करने जैसी कार्रवाई की जाए। खुली निगरानी के साथ एक निजी ऑनलाइन शिकायत पोर्टल स्थापित करने की जरूरत है। पारदर्शी जवाबदेही के साथ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग हेल्पलाइन का नया संस्करण आवश्यक है क्योंकि वर्तमान हेल्पलाइन पर्याप्त तेज़ी से प्रतिक्रिया नहीं देती है। अनिवार्य कार्यशालाओं, संवेदनशीलता अभियानों और मेंटरशिप कार्यक्रमों को लागू करके सकारात्मक वरिष्ठ-जूनियर सम्बंधों को प्रोत्साहित करें। एम्स दिल्ली रैगिंग के मामलों को नियंत्रित रखता है और नए छात्रों को परामर्श सत्र देकर एक सहायक संस्कृति को बढ़ावा देता है। संभावित मुद्दों को अधिक गंभीर होने से पहले पहचानने के लिए व्यवहार ट्रैकिंग, सरप्राइज चेक और छात्रावासों में सीसीटीवी लगाने का उपयोग करें। आईआईटी मद्रास ने सीसीटीवी निगरानी और छात्र प्रोफ़ाइलिंग का उपयोग करके रैगिंग की घटनाओं की संख्या में उल्लेखनीय कमी की है।
रैगिंग की समस्या का कोई एकल, सार्वभौमिक रूप से लागू समाधान नहीं है। शैक्षणिक संस्थानों, छात्रों और बड़े पैमाने पर समाज के लिए एक सुरक्षित और देखभाल करने वाला वातावरण स्थापित करने के लिए मिलकर काम करना महत्त्वपूर्ण है। रैगिंग ख़त्म करने के लिए बहुआयामी रणनीति, कठोर कानूनी सुरक्षा और त्वरित दंडात्मक कार्रवाई की जरूरत है। संस्थागत जवाबदेही और प्रौद्योगिकी-संचालित निगरानी यह गारंटी देगी कि उच्च शिक्षा संस्थान भय के बजाय सुरक्षा, समावेशिता और समग्र विकास के स्थान हैं।
यूजीसी को उन संस्थानों के खिलाफ खंड 9.4 का उपयोग करना चाहिए जो इससे संबंधित नियमों का कड़ाई से पालन नहीं करते। अपराधियों को कड़ी सज़ा मिले, इसकी गारंटी के लिए फास्ट-ट्रैक ट्रायल और पुलिस सत्यापन ज़रूरी है। छात्रावासों में सीसीटीवी लगाए जाने चाहिए जो एआई-आधारित चेहरे की पहचान का उपयोग करते हैं। पीड़ितों की सुरक्षा के लिए एक डिजिटल आईडी-आधारित ट्रैकिंग सिस्टम लागू किया जाना चाहिए। मनोवैज्ञानिक परामर्श और एंटी-रैगिंग कार्यशालाओं को लागू करना अनिवार्य होना चाहिए। छात्र मेंटरशिप कार्यक्रमों द्वारा एक समावेशी संस्कृति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। यूजीसी हेल्पलाइन की प्रतिक्रिया समय और पहुँच में सुधार की आवश्यकता है। ऐसे डिजिटल शिकायत पोर्टल होने चाहिए जो गुमनाम हों और सीधे पुलिस अलर्ट प्रदान करें।
(लेखिका, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश