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मुंबई, 22 फरवरी (हि.स.)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को छत्रपति संभाजीनगर में स्थित डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर मराठा विश्वविद्यालय के छात्रों को 65वें दीक्षांत समारोह के मौके पर संबोधित किया। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि विश्वविद्यालय का नाम ही सब कुछ कह देता है, डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय और फिर, जिस शहर में यह स्थित है, वह भी बहुत महत्वपूर्ण है। ये दो बातें परिभाषित करती हैं कि हम किस चीज के लिए खड़े हैं। छत्रपति संभाजी महाराज, यह नाम हमें हाल ही में मिला है। देर से, विलंब से लेकिन फिर भी बदलते समय को दर्शाता है कि भारत, जो मानवता का छठा हिस्सा है, अपनी लय में वापस आ रहा है। यह अपने गौरव को सुरक्षित करने के रास्ते पर है। इसलिए मैं इस महान अवसर, इस महान विश्वविद्यालय के 65वें दीक्षांत समारोह से जुड़ने के लिए खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं।
उप राष्ट्रपति ने कहा कि पिछले दशक में भारत ने विकास, तेजी से आर्थिक उन्नति, अभूतपूर्व अवसंरचनात्मक उत्थान, गहन डिजिटलीकरण, अज्ञात पैमाने पर प्रौद्योगिकी की पहुंच देखी है, जिसकी विश्व स्तर पर प्रशंसा हुई है। दुनिया में किसी भी देश ने पिछले दशक में अर्थव्यवस्था और विकास में इतनी तेजी से वृद्धि नहीं की है, जितनी भारत ने की है। हमने अपनी अर्थव्यवस्था में जो प्रगति की है, वह कुछ वर्ष पहले तक कल्पना से परे थी। हम वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति में 10वें या 11वें नंबर से 5वें स्थान पर पहुंच गए हैं और एक साल में जापान और जर्मनी से आगे तीसरे स्थान पर पहुंचने की राह पर हैं। इसलिए यह देश आशा और संभावनाओं से भरा है। भारत अब केवल संभावनाओं वाला देश नहीं रह गया है, यह एक उभरता हुआ देश है, इसकी उन्नति को रोका नहीं जा सकता और यह उन्नति क्रमिक है। हमारे युवाओं के पास भरपूर अवसर हैं, अब आपकी बारी है। आप लोकतंत्र में सबसे महत्वपूर्ण हितधारक हैं। हमारा विकसित भारत अब एक सपना नहीं है, यह हमारा उद्देश्य है। हम सभी उस लक्ष्य की ओर अग्रसर हैं। हममें से कुछ लोग उम्र के कारण पीछे छूट जाएंगे, लेकिन मुझसे पहले जो लोग हैं, युवा दिमाग, आप चालक की सीट पर होंगे। आपको विकास के इंजन को पूरी ताकत से चलाना होगा। मुझे कोई संदेह नहीं है, अगर 2047 में जब भारत अपनी स्वतंत्रता की शताब्दी मनाएगा, उससे पहले भारत एक विकसित राष्ट्र होगा। अब मैं आप सभी को बताना चाहता हूँ कि एक विकसित राष्ट्र का दर्जा वैश्विक रूप से परिभाषित नहीं है, लेकिन अगर आप चारों ओर देखें और विभिन्न तत्वों और मापदंडों को देखें, तो चुनौती कठिन है, लेकिन प्राप्त करने योग्य और लागू करने योग्य है। हमें अपनी प्रति व्यक्ति आय को आठ गुना बढ़ाना होगा और इसलिए हम सभी को तेजी से आगे बढऩा होगा, प्रतिबद्धता के साथ आगे बढऩा होगा, उस प्रतिबद्धता के लिए सबसे पहले हमें अपने राष्ट्र पर विश्वास करना होगा। राष्ट्र को हमेशा पहले स्थान पर रखना होगा। हम राष्ट्रीय हित को व्यक्तिगत हित, पक्षपातपूर्ण हित, व्यावसायिक हित के अधीन नहीं रख सकते। राष्ट्रवाद के प्रति प्रतिबद्धता पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता क्योंकि यह सीधे हमारी स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है। इसलिए मैं आपसे बड़े पैमाने पर अपना योगदान देने का आह्वान करता हूँ। अब एक मुद्दा उठता है। व्यक्ति क्या कर सकते हैं? लेकिन मैं आपको बता दूँ, व्यक्ति अपने अनुशासन से, अपने शिष्टाचार से, अच्छे नागरिक होने से राष्ट्र को परिभाषित करते हैं। लेकिन मैं आपको ‘पंच प्राण’ से शुरुआत करने की सलाह देता हूँ और ये ‘पंच प्राण’ आपको हमारी सभ्यता के मूल्यों में सर्वश्रेष्ठ लगेंगे। ये हमारे सभ्यतागत ज्ञान और मूल्य का सार और अगर मैं कहूँ तो अमृत हैं और इनमें से एक है, जो बहुत आसान है, अगर हम अभ्यास करें। सच तो ये है कि हम अभ्यास नहीं कर रहे हैं, हमें दिन-रात अभ्यास करना है, विश्वास करना है और काम करना है।
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हिन्दुस्थान समाचार / राजबहादुर यादव