दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजे के बाद की चुनौती आआपा से ज्यादा भाजपा की
मनोज कुमार मिश्र चुनाव नतीजों के 12 दिन बाद दिल्ली में शालीमार बाग से पहली बार विधायक बनीं रेखा गुप्ता की अगुवाई में सरकार ने कामकाज संभाल लिया। भाजपा दिल्ली में विधानसभा बनने के बाद हुए पहले चुनाव यानी 1993 में सत्ता में आई थी। आपसी विवाद आदि के चल
मनोज कुमार मिश्र


मनोज कुमार मिश्र

चुनाव नतीजों के 12 दिन बाद दिल्ली में शालीमार बाग से पहली बार विधायक बनीं रेखा गुप्ता की अगुवाई में सरकार ने कामकाज संभाल लिया। भाजपा दिल्ली में विधानसभा बनने के बाद हुए पहले चुनाव यानी 1993 में सत्ता में आई थी। आपसी विवाद आदि के चलते पांच साल में भाजपा को तीन मुख्यमंत्री बदलना पड़े। 1998 में दिल्ली की सत्ता से बेदखल होने के बाद इस बार वह सत्ता में लौट पाई है। इस बार भाजपा बिना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए चुनाव लड़ी और 70 सदस्यों वाली विधानसभा में 45.86 फीसद वोट और 48 सीटों के साथ सत्ता में वापसी की। दस साल से दिल्ली में सत्ता में बैठी आम आदमी पार्टी(आआपा) का वैसे तो वोट औसत काफी (करीब दस फीसद) घटा लेकिन भाजपा के मुकाबले दो फीसद कम यानी 43.57 फीसद पर रह गया। उसकी सीटें केवल 22 रह गई। भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी आआपा का सबसे बड़ा संकट यह है कि पूरी पार्टी एक व्यक्ति यानी संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की है। उनके अलावा उस पार्टी में बाकी नेता केवल नाम के हैं। इस चुनाव में वे खुद चुनाव हार गए हैं। उनके लिए भविष्य में पार्टी को एकजुट रखना बड़ी चुनौती है। 2014 में वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ने बनारस पहुंच गए। वे खुद बुरी तरह हारे और उनकी पार्टी देश भर में हारी। परेशान होकर वे जमानत तुड़वाकर तिहाड़ जेल चले गए थे। माना जाता है कि अगर तब भाजपा कांग्रेस के आठ में से छह विधायकों के साथ मिलकर सरकार बना लेती तो आआपा का कहीं पता भी नहीं होता। अब तक की आआपा की राजनीति में यही दिखा है कि उसके नेता अरविंद केजरीवाल के पास धैर्य ज्यादा नहीं है। वे आसानी से किसी पर उबल पड़ते हैं।

केजरीवाल समेत आआपा के कई नेता बार-बार कह चुके हैं कि वे सत्ता की राजनीति करने के लिए बने हैं। अभी आआपा की सरकार पंजाब में है और उसके विधायक गुजरात में भी हैं। इसी के चलते आआपा अपने स्थापना के दस साल में ही राष्ट्रीय पार्टी बन गई। चुनाव नतीजों के बाद अरविंद केजरीवाल काफी संभलकर बोल रहे हैं। सार्वजनिक रूप से वे बोलने से भी अभी तक बच रहे हैं। दिल्ली में उन्हें विधानसभा में अपने दल का नेता चुनना है। केजरीवाल समेत पार्टी के बड़े नेताओं पर शराब घोटाले समेत कई मामले चल रहे हैं। उन्हें सुप्रीम कोर्ट से सशर्त जमानत मिली है। यानी आने वाले समय में उनको या मनीष सिसोदिया आदि को जेल जाना पड़ सकता है। आआपा कोई कार्यकर्ता आधारित पार्टी नहीं है और न ही कई राज्यों के दलों की तरह जाति या वंशवादी भी नहीं है। यह तो केजरीवाल , उनके कुछ करीबियों और लाभार्थियों की पार्टी बनकर रह गई है। इसलिए केजरीवाल पर बहुत कुछ झेलने का दबाव रहेगा। अगर वे साल भर इसे झेल लेते हैं तो पार्टी बचेगी, अन्यथा उसके बिखरने का खतरा है। पूरी आआपा में पंजाब सरकार बचाए रखने की प्राथमिकता दिखने लगी है।

मगर इससे बड़ी चुनौती भाजपा के सामने है। लोकसभा के चुनाव में दिल्ली की सभी सातों सीटें और लंबे समय तक दिल्ली नगर निगम चुनाव जीतने के बावजूद बार-बार विधानसभा चुनाव भाजपा हारती रही है। शायद इसीलिए भाजपा में बड़ी तादाद में इस बार चुनावी वादे किए गए। हर महिला को हर महीने 2500 रुपए देने, युवाओं को राजगार का अवसर दिलाने, आटो वालों का बीमा करवाने से लेकर समाज के हर वर्ग को कुछ-कुछ देने के वादे चुनाव पूर्व संकल्प पत्र में किए गए। सरकार ने अपनी पहली मंत्रिमंडल की बैठक में देशभर में लागू आयुष्मान योजना दिल्ली में भी लागू करने का फैसला कर लिया। इन सभी से बड़ी चुनौती गंदा नाला बन चुकी यमुना नदी को साफ करने का वादा है। भाजपा सरकार ने शपथ लेने के साथ ही यमुना की सफाई को प्राथमिकता पर करने की शुरुआत भी कर दी। दिल्ली की खराब सीवर प्रणाली, बड़ी संख्या में बस चुकी अनधिकृत कालोनियों की गंदगी आदि को तो सालों से यमुना ही झेल रही है। एक तिहाई दिल्ली में आज भी सीवर लाइन नहीं है। उसकी गंदगी सीधे यमुना में जाती है। यमुना नदी को साफ करने के लिए सबसे पहली जरूरत है कि ऐसी व्यवस्था बने कि एक बूंद भी सीवर, गंदगी या गंदा पानी यमुना में न जाए। सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च करके सालों से यमुना को साफ करने के नाम पर सरकारी लूट चलती रही है और यमुना पहले से ज्यादा गंदी होती जा रही है। आआपा के नेता अरविंद केजरीवाल ने भी यमुना साफ करने का वादा किया था। ईमानदारी से उसे न पूरा करने और इसके लिए पांच साल और देने का समय मांगा था। माना जाता है कि उनके ऊपर और उनके नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के मामलों के अलावा आआपा की हार में उनका तीन मुद्दों पर माफी मांगना (आत्म स्वीकृति) भी कारण बने। उन्होंने कहा कि कि वे सभी दिल्लीवालों को साफ पीने का पानी नहीं दे पाए। दिल्ली की सड़कें ठीक नहीं करा पाए और यमुना को भी साफ नहीं करा पाए। यही मुद्दे भाजपा सरकार के भी सामने रहने वाले हैं। इसी से जुड़ा है साफ हवा या प्रदूषण का मुद्दा। वह भी आम दिल्ली वालों को प्रभावित कर रहा है और इससे देश की राजधानी दिल्ली की छवि काफी प्रभावित हुई है।

आने वाले समय में इस सरकार के लिए यही मुद्दे इम्तिहान बनने वाले हैं। दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में मेट्रो रेल बेहतरीन योगदान कर रही है लेकिन दिल्ली की ढाई करोड़ और एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की कुल साढ़े चार करोड़ आबादी) के लिए अकेले मेट्रो रेल नाकाफी है।जर्जर हो चुकी डीटीसी की बसों और परिवहन विभाग के अधीन चलने वाली बसों की संख्या को बढाकर कम से कम 15 हजार करना होगा, लोकल रेल सेवा यानी रिंग रेल को मजबूत बनाना होगा। इसका दायरा बढाना होगा। इससे पहले दिल्ली की करीब चालीस हजार किलोमीटर की सड़कों को ठीक कराना होगा। केन्द्र सरकार ने लाखों करोड़ की लागत से दिल्ली के बाहर पेरिफेरियर और दूसरी सड़कें बनाकर दिल्ली में अनावश्यक रूप से आने वाले वाहनों पर रोक लगाई लेकिन दिल्ली को अपनी सड़कें ठीक करनी होंगी। बसों की सेवा ठीक होने से कम से कम दुपहिया वाहनों की भीड़ सड़कों से कम होगी। अब तो यह बहाने भी नहीं चलेंगे कि पड़ोसी राज्य दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने के कारण हैं। अब तो दिल्ली के हर तरफ भाजपा की ही सरकार है। दिल्ली में पानी की जरूरत डेढ़ हजार एमजीडी (मिलियन गैलन डेली) और दिल्ली में पानी सौ एमजीडी ही पैदा हो पाता है। गंगा और यमुना पर पूरी निर्भरता है। अगर यमुना दिल्ली में साफ हो पाई और बड़े जलाशय के रूप में विकसित हो पाई तो इस संकट का समाधान एक हद तक संभव हो पाएगा।

नई सरकार के सामने साफ हवा और पानी की चुनौती तो है ही, इसके साथ शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर आवास, कूड़ा निबटान, साफ-सफाई इत्यादि अनेक मुद्दे भी सरकार की परीक्षा लेंगे। डबल इंजन यानी केन्द्र और राज्य दोनों में भाजपा सरकार बनने का लाभ तो होगा ही, सरकार में आपसी तालमेल रखना भी एक बड़ी चुनौती होगी। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की छवि साफ सुथरी है लेकिन वे भी बाकी मंत्रियों के समान वरिष्ठता वाली हैं। चुनाव परिणामों ने अनेक नेताओं में मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा जगा दी। कुछ ने तो अप्रत्यक्ष ढंग से उसे प्रकट भी कर दिया। पार्टी नेतृत्व का फैसला मानकर सभी ने स्वीकार लिया लेकिन सभी सरकार को या यूं कहें मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को सहयोग करेंगे, यह आसानी से कहा नहीं जा सकता है। इस मंत्रिमंडल में कपिल मिश्र के अलावा सभी पहली बार मंत्री बने हैं। सभी को अपने काम से अपनी उपयोगिता साबित करनी होगी। आने वाले समय में इस बात की परीक्षा होनी है। विपक्ष संख्या बल में कमजोर है, उसे वोट दो ही फीसद कम मिले हैं। वे अपने घर में परेशान हैं। अगर अपने घर को संभालकर सालभर बने रहते हैं तो दिल्ली की भाजपा सरकार को कदम-कदम पर चुनौती देते रहेंगे।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार के कार्यकारी संपादक हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद