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तीर्थराज प्रयागराज महाकुम्भ में करोड़ों लोग आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। मोक्षदायिनी मां गंगा के तट पर अपार जनसमूह है। इस मेले में कई संन्यासी जनमानस को जागरूक करने पहुंचे हैं। ऐसे ही एक संत हैं मास्टरजी। वह कहते हैं कि वर्तमान शिक्षा पद्धति से युवा भ्रमित है। गुरुकुल से भारत बनेगा विश्वगुरु। आनंद आपके अंदर ही है। सिंगल विंडो-ज्ञान है। उसे बस समझने की जरूरत है। बाहर ही नहीं अंदर का स्नान है महाकुम्भ।प्रत्येक व्यक्ति को आनंदमय बनाना ही मास्टरजी का उद्देश्य है। मास्टरजी के मुताबिक इसमें एक नया पैसा भी खर्च नहीं होता। किसी तरह का कोई लेन-देन नहीं होता। लोगों को उनके मूल स्वरूप की पहचान करवाना ही उनका मुख्य कार्य है। आत्मा को कैसे पहचाने? कैसे उससे एकाकार हों? व्यक्ति आनंद की सर्वोच्च स्थिति कैसे प्राप्त करे? मास्टरजी ये सब कैसे करते हैं, कैसे वो आत्मस्वरूप से पहचान करवाने वाले रास्ते पर व्यक्ति को चलना सिखाते हैं। मास्टरजी से ऐसे ही तमाम गूढ़ विषयों पर 'हिन्दुस्थान समाचार' के मुख्य समन्वयक एवं कुम्भ प्रभारी राजेश तिवारी ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं बीतचीत के मुख्य अंश-
प्रश्न : कुम्भ का क्या अर्थ है मतलब क्या? सीधा प्रश्न इसलिए पूछ रहा हूं कि इसका उत्तर प्राय: विद्वतजन घुमाकर देते हैं?उत्तर : कुम्भ का अर्थ घड़ा। मैं भी सीधा उत्तर दे रहा हूं (मुस्कुराते हुए..) लेकिन आप इतने से संतुष्ट तो नहीं हो पाएंगे। व्याख्या जरूरी है। इसीलिए थोड़ा विस्तार से चर्चा करता हूं। कुम्भ शरीर है। जिसमें ज्ञान रूपी अमृत पड़ा है। इसी को मंथन करके समझना है, निकालना है। पृथ्वी पर 75 प्रतिशत जल तत्व है। मतलब दो तिहाई। शरीर की भी हूबहू यही संरचना है। इस समुद्र रूपी शरीर से ज्ञान तत्व को बाहर निकालना है। मनुष्य ने भौतिक विकास तो बहुत किया है लेकिन शेष क्षेत्र में विकास का क्या हुआ? भौतिक विकास ने इतनी गति पकड़ ली है कि अन्य सभी क्षेत्र तितर-बितर हो गए हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि लोग अवसाद ग्रस्त हो गए। जिसका प्रभाव उनके दैनिक जीवन में भी देखने को मिलता है। (पूछने की मुद्रा में सिर हिलाते हुए)... मिलता है कि नहीं? हां! इस स्थिति से बचने के लिए कुम्भ का आयोजन किया जाता है।
प्रश्न : अमृत की प्राप्ति कैसे होगी?उत्तर : ज्ञान से और सिर्फ ज्ञान से। ज्ञान से हमारा तात्पर्य किताबी ज्ञान से नहीं है। मैं बात कर रहा हूं तत्वज्ञान की। जिन्हें इसका बोध है, वे बता देंगे कि वास्तव में अमृत का अर्थ क्या होता है। तत्वज्ञान से आत्मचेतना का बोध होता है। जिसे सभी धर्म, पंथ और विचारधारा के अनुयायी अलग-अलग शब्द और नाम से जानते-मानते हैं। मैं और मेरा का बोध ही इस रास्ते की सबसे बड़ी बाधा है। रास्ते से रोड़ा हट जाए, इस दिशा में मैं प्रयासरत हूं।
प्रश्न : मास्टरजी शब्द का क्या अर्थ है?उत्तर : मां+स्टर+जी। मां मतलब जो हमें जन्म देती है। जन्म देने में समर्थ है। मां पालन-पोषण करती है। 'स्टर' से हमारा तात्पर्य है कि नकारात्मकता से दूर रहें। कैसे रहेंगे, यह मैं आपको बताऊंगा, सिखलाता हूं। नकारात्मकता जैसे ही दूर होती है वैसे ही 'जी' शुरू हो जाता है। 'जी' से हमारा तात्पर्य गॉड (ईश्वर) से है। मतलब आनंद। खुशी। खुशी जो असीमित हो, अपरिमित हो। कुल मिलाकर यही मास्टर जी है।
प्रश्न : क्या यह कोई संगठन है या संस्था?उत्तर : (विचार मुद्रा में...) ...इस बारे में तो सोचा ही नहीं...। हम इसे परिवार कह सकते हैं। इसमें विश्व के आठ सौ करोड़ लोग शामिल हैं। पिछले 16-17 वर्ष पहले अकेले शुरू हुई यह यात्रा वर्तमान में लाखों तक पहुंच चुकी है। और वह दिन दूर नहीं जब इसे हम करोड़ों तक पहुंचा देंगे। पहुंचा देंगे से तात्पर्य सिर्फ मुझसे नहीं है। मेरे परिवार के सभी लोगों से है। ये सबका दायित्व है कि वह इसे यात्रा को आगे बढ़ाएं। इसीलिए मैं इसे कोई सीमित दायरे में नहीं बांधना चाहता। सब खुश रहें और सबको खुश रखें यही तो मास्टरजी का दायित्व है।
प्रश्न : ईश्वर क्या है?उत्तर : एक अवस्था (चेहरे पर चिन्तन के भाव तैर रहे हैं...)। ...वैसी अवस्था जिसमें व्यक्ति स्वयं को भगवता-सिद्ध अवस्था में पाता है। जिसमें वास्तविक सच्चिदानंद रूप का बोध होता है। सत्य का आनंद ही इस मिशन का ध्येय है। आनंद तो चुगली करने में भी आता है। ड्रग्स लेकर भी लोग आनंदित महसूस करते हैं। ऐसे आनंद की मैं बात नहीं कर रहा हूं। मैं बात कर रहा हूं, आत्म स्वरूप के साथ साक्षात्कार से। इससे जैसे ही साक्षात्कार होता है, एकाकार होता है, वैसे ही लोग ईश्वरमयी हो जाते हैं। मास्टर-जी प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर का बोध कराते हैं। और वह ईश्वर उससे अलग सत्ता नहीं है, वह तो उसके अंदर ही है।
प्रश्न : ...अगर सब कुछ अंदर ही है तो फिर इस त्रिवेणी पर क्या हो रहा है?उत्तर : इसे समझना होगा। गंगा+यमुना+सरस्वती के संगम को ही त्रिवेणी माना जाता है। यह तो बाह्य रूप में प्रतीकात्मक है। लेकिन यह सब कुछ हम सबके अंदर भी है। सर्वोच्च का नाम शिव है। मां के गर्भ के अंदर वह शिव स्वरूप में पड़ा होता है। नाल कटते ही वह शव में बदल जाता है। प्रकृतिमय हो जाता है। शव का स्नान तो हो गया। शिव का क्या हुआ? इसी शिव को समझने के लिए महाकुम्भ आयोजित किया जाता है। यह पूरा का पूरा विज्ञान है। इस पर बोलना ही पड़ा तो घंटों बोला जा सकता है। लेकिन समय की बाध्यता है, आपके लिए भी और मेरे लिए भी। गंगा ज्ञान है। इसे प्राप्त करने का माध्यम सरस्वती है। यमुना को मैं पवित्र मानता हूं। वह शिरोधार्य हैं। लेकिन रंग क्या है? श्याम, मटमैला। समझ में कुछ आया... (गूढ़ चिन्तन के भाव चेहरे पर तैर रहे हैं)?
प्रश्न : ... समझ नहीं आया। आप कहना क्या चाह रहे हैं?उत्तर : देखिए कर्म यमुना है। किसी प्रकार के भी आप कर्म करें। वह गंदा होगा ही। गलतियां होंगी ही। फिर क्या किया जाए? बिना कर्म किए कोई रह नहीं सकता! कर्म करे तो दोष। गीता भी तो इसी की व्याख्या करती है, समझाती है। भागना नहीं है। भाग भी नहीं सकते। तब क्या किया जाए? यहीं जरूरत होती है सरस्वती की। सरस्वती मतलब, अध्ययन। ज्ञान की प्राप्ति की दिशा में किया जा रहा प्रयास। यह प्रयास सकारात्मक, पवित्र और आनंदपूर्ण होना चाहिए। सरस्वती का प्रदर्शन संभव है क्या? आप उसे अमूर्त रूप में पाएंगे। इसलिए सरस्वती अंतःसलिला मानी जाती है। सरस्वती का मिलन होते ही गंगा प्रकट होती है। गंगा मतलब ज्ञान। ज्ञानमयी रूप में व्यक्ति सदैव आगे बढ़ता रहता है। इस बढ़ने में फिर डिप्रेशन नहीं मिलेगा। आनंद का द्वार खुलेगा। लेकिन ठहरना यहां भी नहीं होता। आगे बढ़िए और अपने स्वरूप को सागर में विलीन कर दीजिए। इतनी समझ का नाम महाकुम्भ है। (...हंसते हुए) शिव तो मां गंगा को सिर पर ही धारण किए हुए हैं। ...और इसके गूढ़ रहस्य भी हैं। उसकी अभी जरूरत नहीं। अगली बातचीत में बताऊंगा।
प्रश्न : सनातन क्या है?उत्तर : आत्मा है। गीता भी तो यही कहती है। डर मत। जीने का नाम जीवन है। लेकिन व्यक्ति जीवन भर डर-डर कर ही तो जीता चला जा रहा है। भयग्रस्त जीवन से क्या पाएंगे? रोग ही तो मिलेगा। वह कभी शरीर के माध्यम से, कभी मस्तिष्क के माध्यम से तो कभी व्यवहार के माध्यम से दिखाई देता है। आत्मा तो निर्लिप्त है। यही बात समझाने को हम सब यहां (महाकुम्भ में) जुटते हैं। लेकिन लोग इतना भी समझने के लिए रूकते कहां हैं। शव को नहलाया और बाहर निकल गए। क्या करें! (हंसते हुए...) आप लोग कुछ करते क्यों नहीं? मीडिया चाहे तो इस बात को एक बार में कहां से कहां पहुंचा दे।
प्रश्न : सनातन बोर्ड की मांग उठ रही है, उसके बारे में आप क्या कहेंगे?उत्तर : देखिए, यह मूल रूप से धार्मिक-राजनीतिक मामला है। इन सब की क्या जरूरत है। इन जैसे किसी भी बोर्ड की कोई जरूरत नहीं है। संविधान अपने-आप में काफी है। उसी के अनुसार चला जाए तो सबके लिए अच्छा होगा। वैसे हमारी समझ इस तरह के मामलों में शून्य है।
प्रश्न : गुरुकुल के बारे में क्या कहेंगे?
उत्तर : यह (गुरुकुल) तो बहुत अच्छी व्यवस्था थी। वैज्ञानिक व्यवस्था है। और सबसे बड़ी बात वर्तमान में इसकी नितांत आवश्यकता है। हम विश्वगुरु बनें, इसीलिए तो इस व्यवस्था को बनाया गया था। वर्तमान शिक्षा पद्धति ने सब गुड़-गोबर कर दिया है, इससे युवा भ्रमित हैं। शांति के नाम पर निपट अकेलापन दिया। और इसे मिटाने के लिए मोबाइल। जिसे हमारा सहायक होना चाहिए था वह हमारा मालिक बन गया। अब आप बताइए कि मोबाइल की गुरुकुल (...हंसते हुए)।
प्रश्न : वर्ण-व्यवस्था पर आपके क्या विचार हैं? वर्ण व्यवस्था होनी चाहिए या नहीं?उत्तर : फिर दोहरा रहा हूं इन सब मामलों में मेरी दृष्टि ज्यादा साफ नहीं है। मैं गीता को पढ़ रहा हूं। वर्ण तो कर्म से निर्धारित होना चाहिए। सबके लिए अवसर की समानता होनी चाहिए। इससे ज्यादा नहीं बोल पाऊंगा (शून्य में निहारते हुए...)।
प्रश्न : 'मास्टर-जी' के काम करने का तरीका?उत्तर : आपके माध्यम से लोगों से अपील कर रहा हूं कि आप सब इसे (मास्टर—जी) जाने-समझें। मेरे शिविर में आइए। सभी प्रश्नों का आपको उत्तर और हल मिल जाएगा। जब आप आठ साल के बच्चों के साथ अस्सी साल के बुजुर्गों को कदमताल करते हुए देखेंगे तो दंग रह जाएंगे। मात्र आयु का अंतर आप पाएंगे। आनंद का नहीं, कर्म का नहीं, मौज-मस्ती का नहीं। हमारा जीवन परमात्मा के द्वारा प्रदत्त एक उपहार है। इससे ज्यादा कुछ नहीं, पर इससे कुछ कम भी नहीं।
प्रश्न : यह आनंद मिलेगा कहां?उत्तर : (गहरी नजरों से देखते हुए)... मेरे भाई यह आनंद आपके अंदर ही है। सिंगल विंडो-ज्ञान है। ...बस समझने की देर है। ...ओर समझते ही, आप अपने अंदर आमूल-चूल परिवर्तन पाएंगे। कहीं जाने की जरूरत नहीं है। खोजने की आवश्यकता नहीं है। मैं स्टार्ट कर दूंगा... आपको बस चलते रहना है।
प्रश्न : महाकुम्भ के माध्यम से आप युवाओं को क्या संदेश देंगे?उत्तर : कुछ विशेष नहीं। अपने आत्म स्वरूप को पहचानो। किसी तत्ववेत्ता से इसे जानो और समझो। और अगर ऐसा नहीं कर पा रहे हो तो कृपया हमसे संपर्क करें। (चेहरे पर दृढ़ता भाव)... बदल दूंगा। बिल्कुल अपने जैसे आत्मस्वरूप में बना दूंगा। आनंदित कर दूंगा। इसका सौ प्रतिशत वादा रहा।
हिन्दुस्थान समाचार / राजेश