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जोधपुर, 12 फरवरी (हि.स.)। एम्स जोधपुर ने सफलतापूर्वक अपनी पहली ऑटोलॉगस हेमटोपॉयटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट एक 43 वर्षीय पुरुष मरीज पर किया, जो उच्च जोखिम वाले मल्टीपल मायलोमा और मधुमेह से पीड़ित थे। यह प्रक्रिया मेडिकल ऑन्कोलॉजी/हेमेटोलॉजी विभाग द्वारा की गई, जिसमें ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन, रेडिएशन ऑन्कोलॉजी, पीडियाट्रिक्स, पैथोलॉजी, एंडोक्राइनोलॉजी, डाइटेटिक्स और एनेस्थेसियोलॉजी एवं क्रिटिकल केयर विभागों की सक्रिय भागीदारी थी।
हेमटोपॉयटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट पश्चिमी राजस्थान में लंबे समय से एक आवश्यक सेवा रही है। पहले, इस क्षेत्र के मरीजों को ऐसे महत्वपूर्ण उपचार के लिए लंबी दूरी तक यात्रा करनी पड़ती थी। इस सफल ट्रांसप्लांट के साथ, एम्स जोधपुर ने अब इस क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाली बोन मैरो स्टेम सेल ट्रांसप्लांट सेवाओं की आवश्यकता को पूरा किया है। अस्पताल प्रशासन और इसके समर्पित चिकित्सा दल ने इसे साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
एम्स जोधपुर के कार्यकारी निदेशक डॉ. जी.डी. पुरी ने मरीज से अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान उनके अनुभवों के बारे में बातचीत की और उन्हें छुट्टी के समय पूरी तरह से ठीक होने पर बधाई दी। डॉ. जी.डी. पुरी ने डॉक्टरों, नर्सों, तकनीशियनों और सहायक कर्मचारियों की पूरी टीम की सराहना की और उन्हें भविष्य में अधिक मरीजों की मदद करने के लिए इन सेवाओं को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया। एम्स जोधपुर के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. महेश देवनानी ने भी मरीज और उनके परिवार को बधाई दी। डॉ. देवनानी ने भविष्य में इस सेवा की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की।. प्रमोद कुमार, सहायक प्रोफेसर, मेडिकल ऑन्कोलॉजी/हेमेटोलॉजी विभाग, ने कहा, एम्स जोधपुर की यह महत्वपूर्ण उपलब्धि पश्चिमी राजस्थान में रक्त कैंसर मरीजों के लिए उपचार की उपलब्धता में एक महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाती है।
ऑटोलॉगस हेमटोपॉयटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया में मरीज के अपने स्टेम सेल को एक प्रक्रिया के माध्यम से एकत्र किया जाता है, जिसे एपेरेसिस कहा जाता है। इसके पहले, दवाइयों के जरिए इन कोशिकाओं का उत्पादन उत्तेजित किया जाता है। एकत्रित स्टेम कोशिकाओं को नियंत्रित परिस्थितियों में स्टोर किया जाता है। फिर मरीज को उच्च खुराक की कीमोथेरेपी दी जाती है, जो कैंसर कोशिकाओं और मौजूदा बोन मैरो को समाप्त कर देती है, जिसके बाद संग्रहित स्टेम कोशिकाएं मरीज में पुन: प्रविष्ट की जाती हैं। ये स्टेम कोशिकाएं 2-3 सप्ताह के भीतर एक नया बोन मैरो बनाती हैं, जो रोग को नियंत्रित करने और मरीज के जीवित रहने के अवसरों को बढ़ाने में मदद करती हैं। इसके विपरीत, एलोजेनिक बोन मैरो स्टेम सेल ट्रांसप्लांट में एक दाता से बोन मैरो स्टेम कोशिकाओं का ट्रांसप्लांट किया जाता है, जिसका ॥रु्र प्राप्तकर्ता से मेल खाता है। यह उपचार विभिन्न रक्त कैंसरों के मरीजों के लिए उपयोग किया जाता है, जिसमें एक्यूट ल्यूकेमिया, लिंफोमा और मल्टीपल मायलोमा शामिल हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / सतीश