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रमेश गुप्ता
पाकिस्तान में इस साल पांच फरवरी को कश्मीर एकजुटता दिवस पर फिर 'आतंकी चेहरा' दिखा। यही नहीं पाकिस्तान के हुक्मरान ने अपनी पुरानी आदत नहीं छोड़ी। इस बार भी कश्मीर का राग अलापते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भारत पर दबाव डालने का आह्वान किया। पाकिस्तान कतई नहीं चाहता कि दुनिया कब्जाए गए उसके कश्मीर के लोगों के ऊपर ढाए जा रहे जोर-जुल्म को देखे। इस साल का कश्मीर एकजुटता दिवस पिछले समारोहों से जुदा है। हद तो यह है कि रावलाकोट में आयोजित कार्यक्रम में जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा के अतिरिक्त हमास के नेताओं को बुलाया गया। इससे यह बात सिद्ध होती है कि पाकिस्तान आतंकवाद का समर्थक है। इस कार्यक्रम में आतंकवादियों की मौजूदगी भारत के लिए चिंता का विषय है।
रावलाकोट में इस अवसर पर बड़ी रैली का आयोजन किया गया। इस रैली का मुख्य अतिथि खालिद-अल-कोदामी रहा। हमास के इस नेता ने ईरान के प्रतिनिधि के तौर पर रैली में पहुंचा। उसका भव्य स्वागत किया। उसके साथ जमात उलेमा इस्लाम के अध्यक्ष मौलाना फजल-उर-रहमान की अलग बैठक आयोजित की गई।
हमास की क्रूरता किसी से छुपी नहीं है। उसने इजराइल पर हमला कर सैकड़ों बेगुनाह नागरिकों की हत्या की है। जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा 2001 में भारत की संसद, 2008 में मुंबई और 2019 में पुलवामा में हमला कर देश को हिलाकर रख चुके हैं। कश्मीर घाटी में आतंकवाद फैलाने में इन्हीं दोनों संगठनों का प्रमुख हाथ है। हाल के दिनों में भारत के जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाओं में कमी से पाकिस्तान तिलमिलाया हुआ है। उसने सीमा के पास लगभग दो दर्जन ट्रेनिंग कैंप खोले हैं। इसका मकसद भारत में घुसपैठ कराना है। हाल ही में राजौरी क्षेत्र में सीमापार करते हुए बिछाई सुरंगों की चपेट में आकर सात आतंकवादी मारे गए थे। रावलाकोट में हुए इन तीनों आतंकी सरगना के समर्थन में नारे लगवाए गए।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस दिवस का उपयोग भारत के खिलाफ किया। दोनों ने कहा कि कश्मीर के लोगों को अपना भविष्य तय करने का अधिकार है। प्रधानमंत्री शहबाज ने तो यहां तक कहा कि स्थानीय लोगों की वास्तविक आकांक्षाओं को दबाकर स्थायी शांति हासिल नहीं की जा सकती। रेडियो पाकिस्तान ने दोनों के संदेश जारी किए। शहबाज शरीफ ने कश्मीर एकजुटता दिवस के नाम पर कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की। शहबाज शरीफ ने कहा कि आत्मनिर्णय का अधिकार अंतरराष्ट्रीय कानून का मौलिक सिद्धांत है। हर साल, संयुक्त राष्ट्र महासभा एक प्रस्ताव अपनाती है जो लोगों के अपने भाग्य का फैसला करने के कानूनी अधिकार पर जोर देता है। उन्होंने कहा कि अफसोस की बात है कि 78 साल बीत जाने के बावजूद कश्मीरी लोगों को अभी तक इस अपरिहार्य अधिकार का प्रयोग नहीं करने दिया गया। राष्ट्रपति जरदारी ने कहा कि यह दिन वैश्विक समुदाय को उत्पीड़ित कश्मीरी लोगों के प्रति अपनी जिम्मेदारी की याद दिलाता है। संयुक्त राष्ट्र को 78 साल पहले कश्मीरियों से किए गए वादों का सम्मान करना चाहिए।
(लेखक, जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में रहते हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद