सुंदरलाल बहुगुणा की जयंती पर उनके लेखों की पुस्तक 'पहाड़ की पीड़ा ' का लोकार्पण
देहरादून, 09 जनवरी (हि. स.)। प्रख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा की जयंती पर उनके लेखों की पुस्तक 'पहाड़ की पीड़ा 'का दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में गुरुवार कोलोकार्पण केंद्र के सभागार में किया गया। इस दौरान व्यक्ताओं ने उनके लेखों की चर्चा करते
सुंदरलाल बहुगुणा की पुस्तक 'पहाड़ की पीड़ा ' का लोकार्पण कार्यक्रम।


देहरादून, 09 जनवरी (हि. स.)। प्रख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा की जयंती पर उनके लेखों की पुस्तक 'पहाड़ की पीड़ा 'का दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में गुरुवार कोलोकार्पण केंद्र के सभागार में किया गया। इस दौरान व्यक्ताओं ने उनके लेखों की चर्चा करते हुए उन्हें पहाड़ की मिट्टी, पानी और जंगलों के संरक्षण के लिए उपयोगी बताया।

इस दौरान वक्ताओं ने सुंदरलाल बहुगुणा की जयंती पर उनको याद करते हुए उनके हिमालय के प्रति पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण को महत्वपूर्ण बताया और उस दिशा पर प्राथमिकता के साथ काम करने की जरूरत पर बल दिया।

वक्ताओं ने यह भी कहा कि जिंदा रहने के अधिकार तब तब अर्थहीन है, जब तक हर नागरिक के लिए स्वच्छ हवा, शुद्ध जल, भोजन प्राप्त करने के लिये काम की सुविधा, और रहने के लिये आवास स्थल सुनिश्चित न हो। इस संदर्भ में सुन्दरलाल बहुगुणा के इन विचारों को बहुत अर्थवान समझा जाना चाहिये।

पुस्तक में शामिल आलेखों का संकलन सुंदरलाल बहुगुणा की बेटी मधु पाठक ने किया है। लोकार्पण के पश्चात मधु पाठक ने किताब के आलेखों पर प्रकाश डालते हुए उनका संक्षिप्त परिचय श्रोताओं के समक्ष रखा।

पहाड़ों की पीड़ा किताब में सुन्दरलाल बहुगुणा के 49 लेख संकलित हैं। जिसमे पर्यावरण, वन, डायरी, विविध और सान्निध्य शीर्षकों से 5 खंड हैं। भूमिका प्रसिद्ध गांधीवादी व गांधी शान्ति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने लिखी है।

पर्यावरण खंड में बहुगुणा की ओर से पर्वतीय क्षेत्रों से लेकर विश्व स्तर पर बढ़ रहे पर्यावरण संकट पर लेखन किया गया है। पुस्तक में सार्क देशों की पर्यावरणीय चुनौतियां से लेकर चेरनोविल और जलसंकट देशव्यापी अभियान जरूरी और उजड़ते पहाड़ों की असली पीड़ा, पहाड़ों की तबाही का स्त्रोत और पर्वतों पर हमला जैसे अनेक लेख शामिल है। वन खंड में नई वन नीति, मध्य हिमालय के वन और जन जैसे लेख और डायरी खंड में यात्रा वृतांत व कुछ जेल डायरियां शामिल हैं। लेखों में वन आंदोलन, दलितों के सवाल और पर्यावरणीय चिन्ताएं भी शामिल हैं।

कार्यक्रम का संचालन सामाजिक इतिहासकार डॉ. योगेश धस्माना की ओर से किया गया। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने प्रारम्भ में उपस्थित अतिथियों और श्रोताओं का स्वागत किया।

पुस्तक लोकार्पण के अवसर पर विमला बहुगुणा , चंद्र सिंह, आईएएस रिटायर्ड, समाजसेवी डॉ. एस फ़ारुख, सामाजिक अध्यता डॉ. बी पी मैठाणी, सामजिक विचारक अनूप नौटियाल, जनकवि डॉ. अतुल शर्मा, डॉ. राजेंद्र डोभाल, डॉ. हर्ष डोभाल सहित अन्य गणमान्य मौजूद थे।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश कुमार