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हरिद्वार, 7 जनवरी (हि.स.)। ऑक्सीजन डिपो माने जाने वाले उत्तराखण्ड की वन संपदा का आजादी से पूर्व अंग्रेजों ने जम कर दोहन किया तो कुछ ऐसे निर्माण भी किए जो आज के दौर में सम्भव नहीं हैं। लगभग डेढ़ सौ साल पहले अंग्रेजों ने पर्वतीय व मैदानी क्षेत्र में कई फॉरेस्ट रेस्ट हाउस का निर्माण कराया था। आज भी राज्य के कई वन प्रभागों में ये बंगले खड़े हैं। उत्तराखण्ड के ये बंगले रात्रि विश्राम हेतु आज भी अफसरों, नेताओं और प्रभावशाली लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं। मगर वन प्रभागों में मौजूद कई फॉरेस्ट रेस्ट हाउस बजट के अभाव में खंडहर बनते जा रहे हैं जिसमें राजाजी पार्क का ऐतिहासिक सत्यनारायण स्थित फिशिंग बंगला भी शामिल है।
गढ़वाल मंडल के तीन जिलों मे विभाजित राजाजी टाइगर रिजर्व अपने बंगलों के लिए देश भर में विख्यात है। पार्क की सभी दस रेंजों में स्थित बंगले लगभग सौ से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व बने हुए हैं। चीला, कुनाउ, मीठावली, धौलखंड, बेरीवाड़ा, मोतीचूर, रामगढ़ हो या फिर हरिद्वार का ललताराव व रानीपुर फॉरेस्ट रेस्ट हाउस अपने आप में एक विरासत हैं। समय समय पर हो रहे रख रखाव के चलते ये आज तक टिके हुए हैं। मगर इन सब के बीच एक फॉरेस्ट रेस्ट हाउस ऐसा भी है जो इतिहास के पन्नों में सिमटने को तैयार है। मोतीचूर रेंज स्थित सत्यनारायण में सन 1882 में निर्मित यह फॉरेस्ट रेस्ट हाउस फिसिंग बंगलों के रूप में जाना जाता था। इसी कैम्पस में 1950 में भी एक और रेस्ट हाउस बनाया गया था। लगभग दो हेक्टेयर से ज्यादा में बना यह बंगला सौंग व गंगा की प्रमुख धाराओं से घिरा हुआ है। मगर वर्षों से बजट के अभाव व अधिकारियों की उदासीनता के चलते अब यह खंडहर में तब्दील हो रहा है।
इस ऐतिहासिक विरासत की बदहाली को लेकर राजा जी टाइगर रिजर्व के निदेशक कोको रोजे का कहना है कि राजाजी टाइगर रिजर्व में मौजूद सभी फॉरेस्ट रेस्ट हाउस हमारी विरासत हैं। हम इन विरासतों को संजोने का कार्य कर रहे हैं। सत्यनारायण स्थित फॉरेस्ट रेस्ट हाउस एक महत्वपूर्ण बंगला है। यह फिशिंग बंगलों के रूप में विख्यात रहा है।
जल्द ही इसके पुनरनिर्माण को लेकर सार्थक प्रयास किए जाएंगे।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.रजनीकांत शुक्ला