(बॉलीवुड के अनकहे किस्से) बस यही अपराध में हर बार करता हूं...
अजय कुमार शर्मा चार जनवरी, 2025 को प्रख्यात हिंदी कवि और गीतकार गोपालदास नीरज को 100वीं जयंती मनाई गई।लोकप्रिय मंचीय कवि होने के साथ उन्होंने अनेक फिल्मों के लिए कई यादगार गीत लिखे। उनके लिखे गीत-कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे...। बस यही अपराध मे
गोपाल दास नीरज


अजय कुमार शर्मा

चार जनवरी, 2025 को प्रख्यात हिंदी कवि और गीतकार गोपालदास नीरज को 100वीं जयंती मनाई गई।लोकप्रिय मंचीय कवि होने के साथ उन्होंने अनेक फिल्मों के लिए कई यादगार गीत लिखे। उनके लिखे गीत-कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे...। बस यही अपराध में हर बार करता हूं...। शोखियों में घोला जाए थोड़ा सा शबाब...। फूलों के रंग से दिल की कलम से...। खिलते हैं गुल यहां खिल के बिखरने को...। चूड़ी नहीं ये मेरा दिल है...। ऐ भाई जरा देख के चलो...। आज भी शिद्दत से सुने जाते हैं।

गोपालदास नीरज के पुत्र मिलन प्रभात गुंजन द्वारा पिता पर लिखी पुस्तक नीरज की यादों का कारवां में उन्होंने उनके अभावग्रस्त बचपन, पूरे जीवन संघर्ष और उनकी काव्य यात्रा उनके कवि सम्मेलनों उनका फिल्मों में पहुंचना, उनके ज्योतिष ज्ञान और अटल बिहारी वाजपेयी जी से उनके खास संबंध और उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं पर भी विस्तार से चर्चा की है।

नीरज का जन्म चार जनवरी, 1925 को पुरावली (इटावा) उत्तर प्रदेश में हुआ था। जब वह छह वर्ष के थे तभी उनके पिता गुजर गए । उनकी मां अपने पिता के पास इटावा चली आईं। आर्थिक हालत ठीक नहीं थे। इसलिए नीरज और उनके बड़े भाई को पढ़ने के लिए उनकी बुआ ने अपने पास एटा बुला लिया। साल 1942 में उन्होंने हाईस्कूल पास किया। इटावा में जीवनयापन के लिए उन्होंने कचहरी में टाइपिंग का काम किया और फिर दिल्ली में सप्लाई विभाग में टाइपिंग की नौकरी मिलने पर दिल्ली आ गए। उस समय उनकी तनख्वाह 67 रुपये थी जिसमें से वे 40 रुपये इटावा भेज देते थे। इस बीच वे कवि सम्मेलनों में निरंतर भाग ले रहे थे। किसी कवि सम्मेलन में उनकी कविता सुनकर हफीज जालंधरी ने सॉन्ग एंड ड्रामा डिवीजन में उन्हें 110 रुपये की नौकरी लगवा दी। लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ कविता लिखने के कारण यह नौकरी भी जाती रही। अलग-अलग नौकरी करते हुए उन्होंने प्राइवेट इंटर और 1951 में बीए प्रथम श्रेणी में पास किया । इसके बाद मेरठ और कानपुर में कुछ समय नौकरी करने के बाद अंत में वे अलीगढ़ के डीएस कॉलेज में पढ़ाने लगे। उनका पूरे देश के कवि सम्मेलनों में आना-जाना लगा रहता था। वह उन दिनों मंच के सबसे चर्चित और पसंद किए जाने वाले कवि थे।

मुंबई के बिरला मातुश्री सभागार में नौ फरवरी, 1960 को एक प्रोग्राम नीरज गीत गुंजन के नाम से हुआ, जिसमें आर चंद्रा जो कि अलीगढ़ के ही रहने वाले थे और उस समय के प्रसिद्ध हीरो भारत भूषण के भाई थे ने उनके कविता पाठ से प्रभावित हो उन्हें फिल्मों में लिखने के लिए मुंबई आमंत्रित किया। नीरज मुंबई रहने के लिए तो नहीं माने लेकिन गीत लिखने के लिए तैयार हो गए वह भी इस शर्त पर कि जब गाने की रिकॉर्डिंग होगी तब वह मुंबई आ जाएंगे। इस तरह 'नई उमर की नई फसल' फिल्म बनी और उसमें उनके मशहूर गीत 'कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे' का इस्तेमाल किया गया। इस फिल्म की ज्यादातर शूटिंग अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में हुई। इसमें तनुजा ने हीरोइन का रोल किया था। फिल्म के गाने तो बहुत हिट हुए लेकिन फिल्म सफल नहीं हो पाई। नीरज के गाने लोकप्रिय होने के कारण और लोग भी उनको फिल्मों में गीत लिखने के लिए बुलाने लगे। उसके बाद 'चा चा चा' फिल्म के लिए उन्होंने कुछ गीत लिखे और 'सती नारी' का एक गीत भी बहुत लोकप्रिय हुआ। इस तरह मझली दीदी, दुल्हन एक रात की, तू ही मेरी जिंदगी आदि फिल्मों के गीत भी खूब पसंद किए गए। आखिरकार 1966 में नीरज जी मुंबई शिफ्ट हो गए। फिर तो कन्यादान, पहचान, लाल पत्थर, उमंग, पतंगा,कल आज और कल, मेरा नाम जोकर जैसी फिल्मों के कालजयी गीत उन्होंने लिखे।

साल 1969 में उन्हें 'चंदा और बिजली' के गीत 'काल का पहिया घूमे' के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला। उसके बाद देवानंद ने उनसे प्रेम पुजारी के गीत लिखववाए । बाद में देवानंद की तीन और फिल्मों तेरे मेरे सपने, गैंबलर और छुपा रुस्तम के गीत भी उन्होंने लिखे। इनके संगीतकार सचिन देव बर्मन थे । शर्मीली फिल्म में भी सचिन देव बर्मन का ही म्यूजिक था । उनका यह फिल्मी सफर 1972 तक खूब अच्छी तरह चला।

नीरज जी ने करीब 40 फिल्मों में गीत लिखे। जनता ने बहुत पसंद किया। बाद में फिल्मों और गीत-संगीत के गिरते स्तर के कारण उन्होंने फिल्मों के लिए लिखना छोड़ दिया। हालांकि उन्होंने बाद में भी कुछ फिल्मों के लिए लिखा। 1996 में महेश भट्ट की फिल्म फरेब में उनके दो गाने काफी लोकप्रिय हुएय़ अपने गीतों के जरिए आम आदमी के जज्बात को जुबान देने वाले लोकप्रिय कवि नीरज की रचनाओं में जमाने का दुख-दर्द तो सांस लेता ही है बल्कि प्रेम और प्यार के नए प्रतीक भी सामने आते हैं। उन्होंने हमेशा अपने दिल की बात सुनी और कभी भी कविता के स्तर से समझौता नहीं किया। लगातार सात दशकों तक काव्य मंच पर अपनी कामयाब पारी के बाद 19 जुलाई, 2018 को वे हमारे बीच नहीं रहे ।

चलते-चलते

शायद यह बात कम लोग जानते हैं की भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से गोपाल दास नीरज के बहुत अच्छे संबंध थे। दरअसल नीरज तथा अटल जी एक साथ डीएवी कॉलेज कानपुर में पढ़ते थे और हॉस्टल में अगल -बगल वाले रूम में ही रहते थे। दोनों को ही कविता लिखने का शौक था और दोनों कई बार कवि सम्मेलनों में कविता पढ़ने साथ-साथ ही जाया करते थे। एक बार दोनों किसी कवि सम्मेलन के लिए ग्वालियर गए लेकिन उनकी गाड़ी लेट हो गई और जब तक कार्यक्रम स्थल तक पहुंचे तब तक सम्मेलन अंतिम चरण में था। अत: न दोनों को कविता पढ़ने का अवसर मिला और न ही मानदेय। दोनों ने खाना भी नहीं खाया। और तो और वहां रात में रुकने का कोई ठिकाना भी नहीं था। दोनों की जेब खाली थी। तब अटल जी नीरज जी को अपने नजदीकी रिश्तेदार के घर ले गए जहां पर दोनों रुके भी और अच्छा खाना-पीना हुआ भी हुआ। गोपाल दास नीरज का ज्योतिष ज्ञान भी अद्भुत था। अटल जी और उनकी कुंडलिया लगभग एक जैसी ही थीं क्योंकि दोनों के जन्मदिन में सिर्फ 10 दिन का अंतर था। इसलिए उन्होंने अटल जी की कुंडली देखकर कहा था कि हम दोनों पर शनि की महादशा चल रही है। इसलिए हम दोनों पैर के रोगों से ग्रसित रहेंगे और घुटनों के ऑपरेशन के बाद भी उन्हें इस समस्या से निजात नहीं मिलेगी। उन्होंने यह भी भविष्यवाणी की थी कि मेरी मृत्यु के एक महीने के अंदर ही उनकी भी मृत्यु हो जाएगी और ऐसा हुआ भी...।

(लेखक, सिनेमा इतिहास के जानकार हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद