सद्गुरु मधुपरमहंस जी महाराज ने विज्ञान और तत्वों के गूढ़ रहस्यों को उजागर किया
जम्मू, 5 जनवरी (हि.स.)। साहिब बंदगी के सद्गुरु मधुपरमहंस जी महाराज ने रविवार अखनूर, जम्मू में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि वैज्ञानिक, बुद्धिजीवी, संत, महात्मा सबने संसार को नाशवान बोल दिया है। संसार है ही नाशवान। पर लग
साहिब बंदगी के सद्गुरु मधुपरमहंस जी महाराज ने विज्ञान और तत्वों के गूढ़ रहस्यों को उजागर किया


जम्मू, 5 जनवरी (हि.स.)। साहिब बंदगी के सद्गुरु मधुपरमहंस जी महाराज ने रविवार अखनूर, जम्मू में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि वैज्ञानिक, बुद्धिजीवी, संत, महात्मा सबने संसार को नाशवान बोल दिया है। संसार है ही नाशवान। पर लगता सत्य है। जल का आधार आग है। इसलिए कहते हैं कि जल जल रहा है। आग की उत्पत्ति वायु से है। वायु कहाँ से आई। वायु है क्या। वायु तो दो गैसों का मिश्रण है। वायु का आधार आकाश तत्व है। ये पाँच तत्वों को भौतिक तत्व कहते हैं। पृथ्वी तत्व का रंग पीला है। इसकी चाल है गोल। इसका स्वाद है मीठा। पाँचों तत्वों का स्वाद भी है। चाल भी है और रंग भी है। आप देखो कि बच्चे मिट्टी खाते हैं। मिट्टी में भी एक स्वाद है। मिट्टी सारे बच्चे खाते हैं। इस तरह पानी का रंग सफेद है। पानी का स्वाद खारा है।

वैज्ञानिकों की एक सीमा है। वो जल के लिए कहते हैं कि जल रंगहीन, स्वादहीन, गंदहीन है। मैं सिद्ध करता हूँ। वैज्ञानिक यहाँ गलत हैं। आपके सामने एक शरबत रखा जाए, एक दूध रखा जाए और एक पानी रखा जाए, एक डीजल रखा जाए। आपको कहा जाए कि पहचानो कि इसमें पानी कौन सा है। तो क्या आप नहीं पहचान पायेंगे। इसका मतलब रंग है। उसी से पहचाना। मैं सिद्ध करता हूँ कि पानी में स्वाद भी है। इसका स्वाद खारा है। आपकी आँख बंद कर दी जाए। दूध पिलाया जाए तो स्वाद से जान जाते हैं कि दूध है। छाछ पिलाई जाए तो जान जाते हैं कि छाछ है। क्योंकि उसका अपना स्वाद है। सूप पिलाया जाए तो जान जाते हैं कि सूप है। आपकी आँखों में तो पट्टी थी। फिर कैसे जाना। स्वाद से ही तो जाना न। इस तरह पानी पिलाया जाए तो जान जाते हैं कि यह पानी है। इसका मतलब स्वाद है। इस तरह वायु का रंग हरा है और इसका स्वाद खट्टा है। कुछ लोग यात्रा करते हैं तो उलटी आती है। गैस बन गयी ज्यादा। उलटी खट्टी होती है। कुछ लोग कहत हैं कि खट्टी ढकारें आती हैं। यह वायु का स्वाद है।

आकाश का रंग काला है। वैज्ञानिक लोग बहुत ठीक कह रहे हैं कि इस सृजन का आधार ही ब्लैक मैटर है। यह तो आपको सूर्य के कारण से रोशनी मिल रही है। अभी भी अँधकार है। जब सूर्य उगा हुआ है तभी भी अँधकार है। हम सब अँधकार के अन्दर रहते हैं। रात में आप टार्च जलाते हैं तो थोड़ी रोशनी दिखती है। क्योंकि रोशनी की किरणें कुछ जगह पड़ीं तो उन्होंने अँधकार को ढक दिया। था अँधकार ही। इस तरह 90 प्रतिशत इस ब्रह्माण्ड में अँधकार है। सूर्य केवल 10 प्रतिशत इस ब्रह्माण्ड को रोशनी दे पाता है, अधिक नहीं। शाम को सूर्य ढलता है तो भी थोड़ा थोड़ा दिखता है, क्योंकि सूर्य का प्रकाश ऊपर आता है। धरती ने सूर्य का आच्छादन कर दिया, पर सूर्य की रोशनी ऊपर से आती है।

जब बिजली चली जाती है तो लोग मेरे ऊपर मोबाइल का टार्च डालते हैं। मैं कहता हूँ कि नहीं, ऊपर डालो। छत से रोशनी नीचे आती है। तो आकाश का रंग काला है और स्वाद फीका है। आग का स्वाद तीखा और चरपरा है। पूरा ब्रह्माण्ड तत्वों से है। वैज्ञानिकों ने यहाँ बहुत बड़ी भूल कर दी कि पानी का स्वाद नहीं है, गंद नहं है, रंग नहीं है। पर वो आत्मा का देश तत्वों से परे है। वहाँ तत्व नहीं हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / राहुल शर्मा