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-महिला साहित्यकारों के राष्ट्रीय सम्मेलन में बुलंद हुआ स्वर, विज्ञान से विज्ञापन तक केंद्र में है नारी-शब्दों की अराजकता वर्तमान में ही नहीं भविष्य के लिए भी बड़ा संकट इसे दूर करना होगा
-भारत के अंदर और बाहर एट्रोसिटी लिटरेचर लिखा जा रहा, देश भक्त साहित्यकारों को आना होगा आगे
-देश भर से आई महिला साहित्यकारों का भोपाल में समागम हुआ
भोपाल, 05 जनवरी (हि.स.)। हमें भारत जैसे महान देश का निवासी होने और भारतीय संस्कृति को आत्मसात करने का गर्व है। भारतीय साहित्य में धार्मिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक विचारों का विशेष महत्व है। भारतीय साहित्य केवल मनोरंजन ही नहीं करता, बल्कि यह जीवन शैली को भी बदल देता है। भारतीय साहित्य में विश्व बंधुत्व, सामाजिक न्याय और समानता का स्वर है। इसे लोगों तक पहुचाने में धार्मिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक साहित्य का योगदान रहा है। भारतीय साहित्य में राष्ट्र का स्वर उद्घाटित होता है। राष्ट्र गौरव का भाव भारतीय दृष्टि की विशेषता है। हमारे साहित्यकारों ने संस्कृत, हिन्दी, मराठी, तमिल, बंगाली, उर्दू, गुजराती, और अन्य भारतीय भाषाओं में साहित्य रचा है और लगभग हर भाषा में महिला साहित्यकारों ने अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई है। उक्त बातें मध्य प्रदेश में महिला एवं बाल विकास विभाग मंत्री निर्मला भूरिया ने कहीं। वे देशभर से आईं महिला साहित्यकारों के सम्मेलन को संबोधित कर रही थीं।
मंत्री भूरिया ने कहा कि साहित्य रचना में बाजारवाद के प्रभाव को समझना भी एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि साहित्य को समझने में युवा पीढ़ी का रुझान कम है। इसलिए बाजार में साहित्यिक विषयों की किताबों की डिमांड कम होती है। आज के युग में युवाओं की सोच को समझते हुए हमारे साहित्यकार रचना को लिपिबद्ध करेंगे तो यही युवा इन किताबों को हाथों-हाथ लेंगे। उन्होंने कहा, अर्चना प्रकाशन ने न केवल अपनी गुणवत्ता को बनाये रखा वरन राष्ट्रवादी साहित्य और संस्कृति को संजोये रखने वालों साहित्य के लिए अर्चना प्रकाशन ने कोई समझौता न अर्चना प्रकाशन ने कोई समझौता नहीं किया। भारतीय संस्कृति को सहेजने और संवारने का जो कार्य अर्चना प्रकाशन ने किया है उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाये उतनी कम है।
विदुषी महिलाओं ने वेद काल से ही चहुँ दिशाओं में फैलाया है ज्ञान का प्रकाश
मंत्री निर्मला भूरिया ने कहा कि आदिकाल से ही भारत में विदुषी महिलाओं के द्वारा चहुँ दिशाओं में ज्ञान का प्रकाश फैलाया गया है। ऋग्वेद में 27 महिला साहित्यकारों का जिक्र है। कई मौके आए हैं जब महिला साहित्यकारों ने बड़े-बड़े महानुभावों को निरुत्तर कर दिया। आज भी महिला साहित्यकार महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। उन्होंने कहा, आज ऐसा साहित्य लिखने की जरूरत है जिसमें भारतीय गौरव की झलक दिखे।
इस अवसर पर सांसद माया नारोलिया ने कहा कि 'देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें।' प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी हर क्षेत्र में मातृशक्ति के कल्याण के लिए कार्य कर रहे हैं। सांसद ने कहा कि अर्चना प्रकाशन भी साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रहा है। आज साहित्य के क्षेत्र में मातृशक्ति राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी ख्याति को अर्जित करें, यहीं मेरी कामना है।
विचार आएंगे-जायेंगे, साहित्य तत्व बचा रहे : प्रो. कुमुद शर्मा
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यक्ष प्रो. कुमुद शर्मा ने कहा कि साहित्य एक तरह का संवाद है, इसमें विमर्श चलता रहता है, लेकिन बंटने वाला विमर्श ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि आज साहित्य बाहरी देशों से प्रभावित हो रहा है। साहित्य का बंटवारा नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब तक हृदय धड़कते रहेगा, साहित्य लिखा जाता रहेगा, यही भारतीय दृष्टि है। उन्होंने कहा कि विचार आएंगे-जायेंगे, साहित्य का तत्व बचा रहेगा। साहित्य आने वाले समाज के लिए पगडंडी तैयार करता है। आज दुनिया में भारतीय साहित्य का प्रभाव इस कदर बढ़ा है कि पश्चिमी देश भी नारीवाद की भारतीयता की तरफ लौट रहे हैं।
एट्रोसिटी लिटरेचर को समझना होगा : रश्मि सावंत
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट यूनियन की पहली भारतीय अध्यक्ष रहीं उडुपी की साहित्यकार रश्मि सावंत ने अपनी बात रखते हुए कहा, भारत के बाहर एट्रोसिटी लिटरेचर लिखा जा रहा है। इस साहित्य से ब्रिटिशर्स उन मानवीय कार्यों को जस्टिफाई करते हैं जो उन्होंने भारत और अन्य देशों में किए थे। रश्मि ने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि जो बचपन से बहुत टैलेंटेड होते हैं, वही आगे जाते हैं। बल्कि वे लोग जीवन में आगे बढ़ते हैं जो निरंतर प्रयास करते रहते हैं। जीवन में योग्यता ही नहीं, प्रयास ज्यादा महत्व रखते हैं।
महिलाओं के प्रति भ्रामक नेरेटिव को तोड़ना होगा : डॉ निवेदिता शर्मा
मध्य प्रदेश राज्य बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ निवेदिता शर्मा ने कहा कि पश्चिमी देशों ने इतिहास में भारत की महिलाओं के प्रति नकारात्मक प्रचार किया है। अब समय आ गया है कि महिला साहित्यकारों को आगे आकर गढ़े गए भ्रामक नेरेटिव को दूर करें। महिला साहित्यकारों को इन विषयों पर खुलकर लिखना चाहिए। हमारा साहित्य लेखन और इतिहास लेखन भारत को ध्यान में रखकर हो, क्योंकि साहित्य से जब व्यक्ति, परिवार, समाज प्रेरणा लेता है तभी देश आगे बढ़ता है, और जब देश आगे बढ़ता है तो हर संभव विकास हर क्षेत्र में होता हुआ हमें दिखाई देता है। स्वाभाविक तौर पर ऐसे वातावरण में हमारी वर्तमान पीढ़ी एवं भावी पीढियों का भी मनोबल ऊंचा होता है। दुनिया में कई देशों के उदाहरण और भारत में भी अतीत से जुड़े ऐसे कई सकारात्मक उदाहरण आज इस संदर्भ में देखे जा सकते हैं।
जड़ों से जुड़ना बेहद जरूरी : रक्षा दुबे चौबे
इस अवसर पर प्रसिद्ध साहित्यकार रक्षा दुबे ने कहा कि जब तक हम अपनी जड़ों से जुड़े रहेंगे, अच्छा कार्य करते रहेंगे। साहित्य लेखन में स्वतंत्रता और स्वच्छंदता को समझना बहुत जरूरी है। साहित्य लिखने के लिए सबसे सुंदर विचार आता है, वह मन की आवाज के रूप में आता है। साहित्य बिना स्वांग के लिखा जाता चाहिए। बनावटी साहित्य कभी भी कालजयी नहीं हो सकता। जब साधक किसी भी क्षेत्र में पर्याप्त श्रम करता है तभी उसका परिणाम चिर स्थाई रूप से दिखाई भी देता है, साहित्य क्षेत्र में भी यही बात लागू है, इसलिए शब्दों का चयन करते वक्त बहुत धेर्य और अनुशासन का पालन करें, ताकि जो भी कृति निर्मित हो वह वर्तमान के लिए ही नहीं बल्कि आने वाले समय के लिए भी उपयोगी हो सके।
भारत की विश्व परिवार की गौरवशाली परम्परा : प्रो. शशिकला
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की प्रो. शशिकला ने कहा कि पश्चिमी देशों में जब लोग डिप्रेशन में जाने लगे तो वहां अध्ययन शुरू किया गया। स्टडी के परिणाम में ये बात आई कि अच्छे रिश्ते खुश रहने के लिए बहुत जरूरी हैं। लेकिन भारत में तो शास्त्रों में पहले से लिखा है 'वसुधैव कुटुंबकम्'। यह हमारे देश की गौरवशाली पारिवारिक परम्परा रही है। जिससे हमारे देश के सामाजिक मूल्य सबसे ऊपर हैं। यहां महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिला है। यही हमारी साहित्यिक सृष्टि, भारतीय दृष्टि है।
भाषा पर अधिकार बढ़ाना होगा : डॉ साधना बलवटे
मध्य प्रदेश शासन में निराला सृजन पीठ की निर्देशक डॉ साधना बलवटे ने कहा कि संस्कृत में सबसे अच्छा साहित्य मिलता है, हमें पढ़ना शुरू करना चाहिए। हमें भाषाओं पर अधिकार बढ़ाना चाहिए। कोई भी शुरुआत हमें घर से करनी होगी।वहीं, सम्मेलन की संयोजिका प्रो. मनीषा बाजपेई ने बताया कि अर्चना प्रकाशन न्यास के बैनर तले आयोजित यह सम्मेलन 'महिलाओं का, महिलाओं के द्वारा, महिलाओं के लिए' किया गया। जिसमें, विशेष तौर पर देशभर की करीब 150 महिला साहित्यकार शामिल हुईं। इस सम्मेलन में महिला साहित्यकारों ने गद्य एवं पद्य की रचनाओं की प्रस्तुति भी दी। साथ ही महिला साहित्यकार एवं बच्चों के क्षेत्र में कार्य कर रहीं डॉ निवेदिता शर्मा की पुस्तक रण की रणचंडी रानी दुर्गावती का विमोचन संपन्न हुआ। इस पुस्तक के अलावा, बीच के सत्रों के दौरान अन्य पुस्तकों का भी विमोचन किया गया।
ये प्रमुख साहित्यकार हुई शामिल
इस सम्मेलन में रश्मि सावंत, डॉ मेधा पुरोहित, डॉ साधना बलबटे, डॉ आरती दुबे, प्रो. शशिकला, डॉ सोनाली मिश्रा, डॉ कुमकुम गुप्ता, डॉ वंदना मिश्रा, सुनीता यादव, रक्षा दुबे, डॉ निवेदिता शर्मा, डॉ सविता सिंह भदौरिया मौजूद रहीं। महिला सम्मेलन में भारतीय महिला मुक्केबाज टीम की हेड कोच अमनप्रीत कौर भी एक साहित्यकार के रूप में शामिल हुईं।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी