संविधान को संकीर्ण राजनीतिक लड़ाई का उपकरण न बनाएं
हृदयनारायण दीक्षित संविधान के खात्मे को लेकर खासी बहस चली है। भारत का संविधान अनूठा है, अद्वितीय है। यह देश का राजधर्म है। इस संविधान में अनेक लोकतांत्रिक संस्थाएं हैं। सबकी अपनी सीमा है। यह सीमा भी संविधान निर्देशित है। सभी संवैधानिक संस्थाओं का
हृदयनारायण दीक्षित


हृदयनारायण दीक्षित

संविधान के खात्मे को लेकर खासी बहस चली है। भारत का संविधान अनूठा है, अद्वितीय है। यह देश का राजधर्म है। इस संविधान में अनेक लोकतांत्रिक संस्थाएं हैं। सबकी अपनी सीमा है। यह सीमा भी संविधान निर्देशित है। सभी संवैधानिक संस्थाओं का स्रोत संविधान है। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्तियां भी संविधान प्रदत्त हैं। संविधान निर्माता भविष्य के भारत के प्रति सजग थे। उन्होंने गहन विमर्श के बाद संविधान बनाया। परस्पर विचार विमर्श अच्छी बात है, लेकिन संविधान को समाप्त करने का दुष्प्रचार करने का विपक्षी दलों का निर्णय अनुचित है। लोकसभा चुनाव के समय संविधान को खत्म करने और बदलने का शोर मचाया गया। विपक्षी दल लगातार आरोप लगाते रहे कि केन्द्रीय सत्ता संविधान के खात्मे पर उतारू है। संविधान समाप्ति जैसी कोई योजना कभी प्रकाश में नहीं आई। न विचार में, न कर्म में और न ही लेखन सहित अन्य अभिव्यक्तियों में भी। संविधान को खत्म करने की अफवाह देश के कोने कोने तक पहुंची। शिक्षित लोग सन्न थे कि संविधान के खात्मे की बात कहां से आई? संसद में विपक्ष के नेता राहुल गांधी संविधान की किताब लेकर फोटो खिंचवा रहे थे।

मजेदार बात है कि संविधान खत्म किए जाने की सूचना संभवतः सबसे पहले उनको ही प्राप्त हुई। यह झूठ देश के मानस में बार-बार आ रहा है। संविधान के खात्मे का दुष्प्रचार करने वाले व्यक्ति/दल/समूह नितांत झूठ का सहारा ले रहे हैं। संविधान बदलने का सबसे बड़ा दुस्साहस 1976 में अधिनियमित 42वें संविधान संशोधन में कांग्रेस ने किया था। दुर्भाग्य से इस संविधान के खात्मे का विषय ठीक से जानने वाले लोगों की संख्या कम है।

संसद और विधान मण्डल और न्यायालयों की बहसों में संविधान की सर्वोपरिता है। संविधान की उद्देशिका में राष्ट्रजीवन के लक्ष्य हैं। उद्देशिका में उल्लिखित भारत को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार अभिव्यक्ति, विश्वास और धर्म उपासना की स्वतंत्रता, अवसर की समता प्राप्त कराना मुख्य उद्देश्य है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने तमाम निर्णयों में उद्देशिका के महत्व और उपयोगिता की चर्चा की है। बेशक संविधान के अन्य प्रावधानों की तरह उद्देशिका को न्यायालय द्वारा प्रवर्तित नहीं किया जा सकता। लेकिन न्यायालयों के कई निर्णयों में यह शासन का मुख्य घटक है।

उद्देशिका ‘हम भारत के लोग‘ से शुरू होती है। संविधान सभा को मिली शक्ति भारत के लोगों द्वारा ही अर्जित है। कुछ राजनीतिक दल जाति और मजहब के आधार पर राजनीतिक समूह या संगठन चलाते हैं। इस प्रकार के दलों द्वारा समाज तोड़ने वाले शब्द चलाए जाते हैं। इनकी बात माने तो संविधान की उद्देशिका में लिखा जाता कि भारत जाति पाति आदि कई संकीर्णताओं में लिप्त है। इसे ‘भारत के लोग‘ कहना बेकार है। वे कहते हैं कि यहां की जनता केवल कुछ समूहों का गठजोड़ है। जबकि संविधान रचना का उद्देश्य और कारण सुस्पष्ट हैं। प्रत्येक भारतवासी उद्देशिका के अनुरूप ‘हम भारत के लोग‘ का हिस्सा है। भारत हजारों वर्ष पहले भी एक राष्ट्र था। वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक भारत की एक संस्कृति है। इस संस्कृति के कारण ही हम भारत के लोग एक सशक्त राष्ट्र हैं। डॉ. आम्बेडकर ने लिखा है कि, “यह बात ठीक है कि भारतवासी परस्पर लड़ते झगड़ते रहते हैं। किन्तु संस्कृति के कारण भारत एक राष्ट्र है।“ संविधान रचना के उद्देश्य स्पष्ट हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में उद्देश्य और संकल्प का प्रस्ताव रखा था। संकल्प के अनुसार, “प्रभुत्व संपन्न स्वतंत्र भारत की सभी शक्तियां और प्राधिकार उसके संगठक भाग शासन के सभी अंग आम जनों से उत्पन्न हैं।“

संकल्प के अनुसार भारत की जनता को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, प्रतिष्ठा और अवसर की तथा विधि के समक्ष समता, विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और संगठन बनाने आदि कार्यों की विधि के अधीन स्वतंत्रता होगी। आगे कहा है कि, “राज्य क्षेत्र की अखण्डता, भूमि, समुद्र और आकाश पर उसके प्रभुत्वसंपन्न अधिकार, न्याय और अन्य राष्ट्रों की विधि के अनुसार बनाए रखे जाएंगे।“ संकल्प के अंतिम आठवें प्रावधान में लिखा है, “यह प्राचीन भूमि विश्व में अपना समुचित और गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त करेगी, और विश्व शांति तथा मानव कल्याण के लिए स्वेच्छा से अपना पूर्ण सहयोग प्रदान करेगी।“ संकल्प में उल्लिखित प्राचीन भूमि का अर्थ क्या हो सकता है? सारी दुनिया की भूमि प्राचीन है। भारत के अर्थ में प्राचीन भूमि का अर्थ प्राचीन संस्कृति होना चाहिए। संविधान निर्माताओं ने भारत को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न राष्ट्र बताया है।

स्वाधीनता मिलने तक भारत राष्ट्रकुल का सदस्य था। इंग्लैंड के सम्राट के अधीन राष्ट्रमण्डल में भारत के बने रहने पर आलोचना हुई। प्रत्यक्ष रूप में यह निर्णय उचित नहीं था। सभा में प्रधानमंत्री नेहरू को स्पष्टीकरण देना पड़ा। आखिरकार एक संप्रभु राष्ट्र इंग्लैंड के राजा रानी के प्रति निष्ठा कैसे रख सकता है? आयरलैंड ने रिपब्लिक आफ आयरलैंड एक्ट बनाकर अपने आप को इंग्लैंड से पृथक कर लिया। आलोचनाओं के बाद कहा गया कि भारत में सम्राट के प्रति निष्ठा स्वीकार्य नहीं है। यह निर्णय प्रधानमंत्रियों के सम्मेलन में लिया गया। प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि, “प्रभुत्व संपन्न गणराज्य बन जाने के पश्चात भी भारत राष्ट्रकुल का पूर्ण सदस्य बना रहेगा।“

लोकमंगल भारत के राष्ट्रजीवन का लक्ष्य रहा है। अनेक महत्वपूर्ण विषय ऐसे भी थे जो संविधान सभा में अंतिम निर्णय तक पारित नहीं किए जा सके। संविधान सभा ने उन महत्वपूर्ण विषयों को भी संविधान में जगह दी। उन्हें राज्य का नीति निदेशक तत्व कहा है। संविधान के नीति निदेशक तत्वों (भाग चार-अनुच्छेद 36 से 51) में ऐसे उपयोगी उद्देश्य रखे गए हैं। संविधान में कहा गया है कि प्रशासन और विधि के निर्माण में इन सिद्धांतों का अनुसरण किया जाए। गोवंश का संरक्षण भी ऐसा ही नीति निदेशक तत्व है। बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्राप्त कराने का लक्ष्य भी नीति निदेशक तत्वों में है। शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत भी सम्मिलित हैं। संविधान निर्माताओं की क्षमता भी अद्भुत थी। नीति निदेशक तत्व किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तित नहीं हैं। वे किसी को सुभाषित लग सकते हैं, लेकिन वस्तुतः सबके लिए मार्गदर्शी हैं। संविधान में राष्ट्रजीवन के सभी मूलभूत विशेषताओं का उल्लेख है। सम्प्रति संविधान के बदलने को लेकर झूठी अफवाहें हैं।

संविधान निर्माता जानते थे की नई राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप काम करना कठिन होगा। इसलिए उन्होंने संविधान में संविधान संशोधन का भी स्पष्ट उल्लेख कर दिया। अमेरिका में संविधान संशोधन की विधि के सापेक्ष भारत में संविधान संशोधन की विधि उदार है। इसीलिए भिन्न-भिन्न अवसरों पर अनेक संविधान संशोधन हुए हैं। अधिकांश राजनीतिक कार्यकर्ता भी संविधान से नहीं जुड़ते। सामान्य बोलचाल में युवा प्रश्न करते हैं कि अमेरिका में न्यायपालिका का शासन चलता है और ब्रिटेन में संसद का तो भारत में किसका शासन चलता है? इसका सीधा उत्तर है कि भारत में संविधान का शासन है। संविधान सगुण है और निर्गुण भी। सगुण में रूप और चेहरा देखा जाना चाहिए और निर्गुण में आंतरिक भाव। संविधान के पक्ष में खड़े होना भक्ति भाव है। अध्यात्म भाव है और सगुण उपासना है। संविधान के एक-एक वाक्य पर निष्ठा रखना, उसे अंतःकरण में जगह देना निर्गुण है। कृपया, संविधान को संकीर्ण राजनीतिक लड़ाई का उपकरण न बनाएं।

(लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद