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- साइबर अपराध एक मूक वायरस की तरह है, जो समाज को पैसे से भी ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है : इलाहाबाद हाई कोर्ट
प्रयागराज, 22 जनवरी (हि.स.)। देश भर में साइबर अपराधों में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरोपित को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि हमारे देश में साइबर अपराध एक मूक वायरस की तरह है। इसने असंख्य निर्दोष पीड़ितों को प्रभावित किया है, जो अपनी मेहनत की कमाई से ठगे गए हैं।
न्यायालय ने कहा कि साइबर अपराध पूरे देश के लोगों को प्रभावित कर रहा है, चाहे उनका धर्म, क्षेत्र, शिक्षा या वर्ग कुछ भी हो। ऐसे अपराधों पर अंकुश लगाया जाना चाहिए।
क्षन्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की पीठ ने आगे कहा कि डिजिटल इंडिया जैसी पहल ने देश के डिजिटल परिवर्तन को गति दी है लेकिन इसने उन कमजोरियों को भी उजागर किया है जिनका साइबर अपराधी फायदा उठाते हैं। एकल न्यायाधीश ने कहा, इस न्यायालय का मानना है कि भारत में प्रौद्योगिकी की तीव्र प्रगति और डिजिटल बुनियादी ढांचे को व्यापक रूप से अपनाने से फिशिंग घोटाले, साइबर-स्टॉकिंग और डेटा उल्लंघनों सहित साइबर अपराधों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
अदालत ने ये टिप्पणियां निशांत रॉय नामक आरोपित व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए किया। याची पर डिजिटल गिरफ्तारी के कथित मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 384, 406, 419, 420, 506, 507 और 34 तथा आईटी अधिनियम की धारा 66-सी और 66-डी के तहत मामला थाना-साइबर क्राइम प्रयागराज में दर्ज किया गया है। डिजिटल गिरफ़्तारी घोटाले में धोखेबाज वीडियो कॉल के माध्यम से कानून प्रवर्तन अधिकारी का रूप धारण करते हैं। अवैध गतिविधियों का झूठा आरोप लगाकर फर्जी गिरफ्तारी की धमकी देते हैं और उनसे पैसे ऐंठते हैं।
इस मामले में पीड़िता एवं प्रथम सूचनाकर्ता (काकोली दास) को एक कूरियर कंपनी के प्रतिनिधि के रूप में किसी व्यक्ति से कॉल आया जिसमें दावा किया गया कि उसके नाम से एक पार्सल ताइवान भेजा जा रहा है और इसमें 200 ग्राम एमडीएमए सहित अवैध सामग्री है। बाद में यह कॉल एक ऐसे व्यक्ति को स्थानांतरित कर दी गई जिसने खुद को अपराध शाखा का पुलिस उपायुक्त बताया। जिसने डिजिटल तरीके से उसे गिरफ्तार कर लिया और उसके बाद जांच के लिए उससे अपने बैंक खाते का विवरण साझा करने के लिए दबाव डाला।
इसके बाद, तीन दिनों (23-25 अप्रैल, 2024) में, साइबर अपराधियों द्वारा आरटीजीएस के माध्यम से उनके एसबीआई और यस बैंक खातों से कुल 1.48 करोड़ की राशि धोखाधड़ी से स्थानांतरित कर दी गई। मामले में जमानत की मांग करते हुए आवेदक जोकि बीबीए का छठा सेमेस्टर का छात्र है, उसने हाई कोर्ट में जमानत अर्जी दायर कर तर्क दिया कि उसका नाम प्राथमिकी में था लेकिन जांच के दौरान उसे झूठा फंसाया गया है, क्योंकि आरोपित रामा उर्फ चेतन ने अपने इकबालिया बयान में उसके पिता का नाम लिया था।
आवेदक ने तर्क दिया कि 3 मोबाइल, दो पूर्व-सक्रिय सिम कार्ड और एक चेकबुक की बरामदगी जांच अधिकारी द्वारा गढ़ी गई थी और उसके वकील ने दावा किया कि आवेदक के खाते में कोई लेनदेन नहीं हुआ था। उनका यह भी कहना था कि इन अपराधों की सुनवाई मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है तथा इनमें अधिकतम 7 वर्ष की सजा का प्रावधान है तथा उन्हें केवल सह-अभियुक्त के बयान के आधार पर मामले में नहीं फंसाया जा सकता।
यह तर्क दिया गया कि वह 7 मई, 2024 से जेल में है, और यद्यपि आरोप पत्र 27 जून, 2024 को दायर किया गया था लेकिन उसके खिलाफ आरोप अभी तक तय नहीं किए गए हैं। कहा गया कि हिरासत में पूछताछ अब आवश्यक नहीं है, इसलिए उसे जमानत दी जानी चाहिए।
दूसरी ओर सरकारी वकील ने इस आधार पर उनकी जमानत याचिका का विरोध किया कि पीड़ित, जो एक वरिष्ठ नागरिक है, उसके बैंक खाते से निकाली गई 1.48 करोड़ रुपये की राशि में से 62 लाख रुपये संधू एंटरप्राइजेज के खाते में स्थानांतरित कर दिए गए थे। जिसे सह-आरोपित अमर पाल सिंह और उनकी पत्नी द्वारा चलाया जाता था। यह भी प्रस्तुत किया गया कि आवेदक से बरामद सिम संधू एंटरप्राइजेज के बैंक खाते से जुड़ा हुआ पाया गया था, जिसके कारण उसे इस मामले में फंसाया गया था।
यह भी बताया गया कि सह-आरोपित अमर पाल सिंह, करण प्रीत, अमर पाल सिंह की पत्नी, देवेंद्र कुमार उर्फ देव रॉय फरार हैं और उनके खिलाफ जांच चल रही है। कोर्ट ने यह देखते हुए कि आवेदक के खिलाफ अभी तक आरोप तय नहीं किए गए हैं, अन्य सह-आरोपितों के खिलाफ जांच अभी भी चल रही है। अदालत ने उसे जमानत देने से इनकार कर दिया।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे