(बॉलीवुड के अनकहे किस्से) राज कपूर के पीछे के सितारे
अजय कुमार शर्मा राज कपूर की सफलता के पीछे उनकी अपनी मेहनत और समझ तो थी ही लेकिन उसके साथ ही उनकी टीम का भी महत्वपूर्ण रोल था, जो हमेशा उनके साथ बनी रही। शराब पीने के बाद वह इस टीम से लड़ते-झगड़ते भी और अगले दिन फिर सब भूलकर उन्हें फिर गले से लगा ल
राज कपूर फिल्म अवारा में नायिका के साथ।


अजय कुमार शर्मा

राज कपूर की सफलता के पीछे उनकी अपनी मेहनत और समझ तो थी ही लेकिन उसके साथ ही उनकी टीम का भी महत्वपूर्ण रोल था, जो हमेशा उनके साथ बनी रही। शराब पीने के बाद वह इस टीम से लड़ते-झगड़ते भी और अगले दिन फिर सब भूलकर उन्हें फिर गले से लगा लेते। बरसों उनके सहायक रहे राहुल रवेल ने उनके साथ बिताए अपने समय के आधार पर लिखी पुस्तक में इस तरह के अनेकों किस्से साझा किए हैं।

राज कपूर की एक क्रिएटिव टीम थी जिसमें लेखक और संवाद लेखक के रूप में ख्वाजा अहमद अब्बास, वीपी साठे, इंदरराज आनंद, गीतकार के रूप में शैलेंद्र और हसरत जयपुरी, संगीतकार शंकर-जयकिशन गायकों में लता, मुकेश और रफी आदि सबसे प्रिय थे। लेकिन उनकी एक टेक्निकल टीम भी थी जो उनके मन और कागजों पर लिखी फिल्म को यादगार बनाती थी। यानी कि परदे के पीछे की टीम। इस टीम में सबसे महत्वपूर्ण थे उनकी तीसरी आंख यानी राधू करमाकर जी। 'आवारा' में राधू साहब का काम असाधारण था। श्वेत-श्याम फोटोग्राफी बहुत मुश्किल होती है और प्रकाश और छाया के खेल पर ही निर्देशक द्वारा परिकल्पित दृश्य को प्रभावी बनाना होता है। राधू साहब इस पहलू को पूरा करने में माहिर थे। अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में जब 'आवारा' फिल्म की स्क्रीनिंग हुई, तब फिल्म पारखियों ने उनकी प्रतिभा पर ध्यान दिया। प्रतिष्ठित फिल्म प्रोड्यूसर और डायरेक्टर-सर अलेक्सेंडर कोरदा राधू साहब के काम से उनके इतने मुरीद हुए कि उन्होंने राज साहब को सलाह दी, जब वे श्वेत-श्याम फिल्मों से रंगीन फिल्म में शिफ्ट होंगे, तब राधू साहब को मास्टर सिनेमेटोग्राफर जैक कार्डिफ से ट्रेनिंग जरूर दिलवाएं । जिसे राज साहब ने माना और राधू साहब को 'संगम' के शुरू होने से पहले उनसे ट्रेनिंग दिलवाई। 'संगम' के दृश्यों की क्वालिटी ने उसे एक बेहद यादगार फिल्म बनाया।

राज साहब के कान थे एक मास्टर टेक्नीशियन खान साहब। आरके फिल्म्स की सारी डबिंग वही कराते थे। डबिंग एक प्रक्रिया है, जिसमें डायलॉग, जिसे पहले से ही रिकॉर्ड कर लिया जाता है, उसे फिर से रिकॉर्ड किया जाता है ताकि पहलेवाली आवाज से शोर निकाला जा सके। अब तो डबिंग थियेटर साउंडप्रूफ होते हैं जिसमें बाहर से कोई आवाज भीतर नहीं आती है और साफ डायलॉग ट्रैक मिल जाता है। आरके का डबिंग स्टूडियो साउंडप्रूफ नहीं था, बल्कि वहां सभी तरह की आवाजें सुनाई देती थीं। चार बिल्डिंग दूर फैक्टरी से मशीन के चलने और तेज शोर की आवाजें, रोड का ट्रैफिक और कई दूसरी आवाजें सुनाई पड़ती। लेकिन खान साहब साउंड की ऐसी समझ और निगरानी रखते थे कि जब भी आरके की फिल्म रिलीज होती, उन्हें बेहतरीन साउंड रिकॉर्डिस्ट का अवार्ड मिलता। आउटडोर में शूटिंग की अच्छी व्यवस्था न होने पर उन दिनों फिल्में मुख्यतः सेट्स पर ही शूट होती थीं । सेट डिजाइनर यानी कला निर्देशक के रूप में उनके पास थे अचरेकर साहब जिन्होंने आरके के 'लोगो' का भी डिजाइन तैयार किया था। 'आवारा' फिल्म के लिए उन्हें स्लम के सेट और अमीर घरों के भीतरी और बाहरी दृश्य, कोर्ट और गलियों को एक आश्चर्यजनक 'ड्रीम सिकुएंस' में बदलकर काफी वाहवाही बटोरी थी। स्टूडियो में हरीश दादा नाम के इलेक्ट्रिशियन थे। उनकी और राधू साहब की बहुत अच्छी बनती थी। जब राज साहब राधू साहब को एक शॉट देते हुए कहते थे, मैं यह चाहता हूं, हरीश दादा, राधू साहब के कहे बिना ही हरीश दादा बैकग्राउंड की लाइटिंग को ऑन कर देते थे।

पटरी पर कैमरे को घुमाने के लिए एक ट्रॉली का इस्तेमाल होता है, जिसे एक समतल स्तर के मैदान पर सेट किया जाता था, ताकि ट्रॉली आसानी से घूम सके। बापू काटकर नाम के बापू दादा ट्रॉली शॉट के लिए पटरी सेट करने के काम में सिद्धहस्त थे। स्टूडियो की सख्त और समतल जमीन पर ट्रॉली को सेट करना सरल होता था, लेकिन आउटडोर में या ऊंची-नीची जमीन पर ट्रॉली को सेट करना लगभग असंभव काम होता था। यहीं पर बाबू दादा की विशेषता काम आती। उनके पास ओमजी, ओम प्रकाश मेहरा भी थे, जो उनके स्टूडियो के प्रोडक्शन इंचार्ज थे। वे हर रोज ऑफिस आते, अपनी पेमेंट डायरी में खुद को 500 रुपये दिए की इंट्री कर लेते। ओमजी और राज साहब का विशेष और अनोखा रिश्ता था। दोनों को पीने का बहुत शौक था और जब कुछ ज्यादा ही पी लेते थे, तब दोनों लड़ने झगड़ने लगते। इस लड़ाई में कभी राज साहब ओमजी को पकड़ लेते थे और उन्हें स्टूडियो से बाहर फेंक देते थे और कभी-कभार ओमजी राज साहब को पकड़ते और उन्हें बाहर फेंक देते। इस तरह का अद्भुत व्यवहार देखकर, आरके का एक चौकीदार हमेशा पसोपेश में रहता था कि राज साहब मालिक हैं या ओम साहब। एक देर रात राज साहब स्टूडियो आए तो चौकीदार ने उन्हें भीतर नहीं घुसने दिया, क्योंकि उसे लगने लगा था कि ओम प्रकाश मेहरा ही उस स्टूडियो के मालिक हैं।

चलते-चलते

राज साहब के सचिव थे हरीश बिबरा। उनका मानना था कि पूरी दुनिया राज कपूर को जानती है। एक बार जब सारी दुनिया नील आर्मस्ट्रांग के चांद पर उतरने का जश्न मना रही थी तब वे राज कपूर की तरफ से अमेरिका के राष्ट्रपति को चांद पर पहले आदमी को लैंडिंग करवाने के लिए बधाई का तार भेजना चाहते थे। जब राज साहब वैजयंती माला को अपनी फिल्म संगम के लिए साइन करना चाहते थे और उसके जवाब की प्रतीक्षा कर रहे थे, तब हरीश जी ने उन्हें एक टेलीग्राम भेजा। जिसपर लिखा था-'बोल राधा बोल संगम होगा के नहीं', यह घटना आरके की खास स्मृति बन गई और आगे चलकर फिल्म के गीत का मुखड़ा भी बनी...।

(लेखक, साहित्य एवं सिनेमा की गहरी समझ रखते हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद