अपनों के निशाने पर कांग्रेस पार्टी
रमेश सर्राफ धमोरा कांग्रेस पार्टी इन दिनों अपने ही साथी दलों के निशाने पर है। भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विपक्षी दलों के संयुक्त इंडी गठबंधन में शामिल विभिन्न राजनीतिक दल के नेताओं द्वारा कांग्रेस से गठबंधन का नेतृत्व वापस लेने की मांग की जा रही है
रमेश सर्राफ धमोरा


रमेश सर्राफ धमोरा

कांग्रेस पार्टी इन दिनों अपने ही साथी दलों के निशाने पर है। भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विपक्षी दलों के संयुक्त इंडी गठबंधन में शामिल विभिन्न राजनीतिक दल के नेताओं द्वारा कांग्रेस से गठबंधन का नेतृत्व वापस लेने की मांग की जा रही है। इंडी गठबंधन में शामिल बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी खुलेआम कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व पर सवाल उठा रही हैं। उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने प्रेस कांफ्रेंस करके कांग्रेस पार्टी को इंडी गठबंधन के नेता पद से हटाने की मांग की है। ममता बनर्जी की मांग के समर्थन में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने भी सहमति जताई। इससे विपक्षी गठबंधन की स्थिति लगातार कमजोर हो रही है।

जून 2023 में 26 विपक्षी दलों के साथ बना इंडी गठबंधन टूट के कगार पर है। लोकसभा चुनाव में मिली हार और उसके बाद हरियाणा व महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में हुई पराजय ने इस गठबंधन को कमजोर कर दिया। इसी के चलते कांग्रेस के सहयोगी दल उसकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाकर अलग राह पकड़ने के संकेत दे रहे हैं। हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी (आआपा) ने कांग्रेस को गठबंधन से बाहर निकलवाने तक की धमकी दे दी है। कांग्रेस के दिल्ली विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा के बाद से ही आआपा खासी नाराज है। पार्टी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस जिस तरह चुनाव लड़ रही है, उससे भाजपा को लाभ मिल रहा है। कांग्रेस नेता अजय माकन व संदीप दीक्षित के बयान विपक्ष को कमजोर करने के लिए भाजपा के कहने पर दिए जा रहे हैं। समाजवादी पार्टी, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद चंद पवार), नेशनल कांफ्रेंस तो खुलकर कांग्रेस की मुखालफत करने लगी है।

हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपनी जीत तय मानकर आआपा से गठबंधन से इनकार कर दिया था। जिसके चलते आआपा ने कई सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़कर 1.8 प्रतिशत वोट प्राप्त किए। जबकि हरियाणा में कांग्रेस को 39.34 प्रतिशत वोट व भाजपा को 39.94 प्रतिशत वोट मिले थे। यदि हरियाणा में कांग्रेस आआपा से समझौता करके चुनाव लड़ती तो निश्चय ही सरकार बन सकती थी। मगर कांग्रेस ने अवसर गंवा दिया और वहां भाजपा ने आसानी से तीसरी बार पहले से भी अधिक बहुमत से सरकार बना ली। उत्तर प्रदेश विधानसभा के उपचुनाव में तो समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के लिए एक भी सीट नहीं छोड़ी थी। जबकि लोकसभा चुनाव कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने मिलकर लड़ा था।

महाराष्ट्र में कांग्रेस नीत महाविकास अघाड़ी की करारी हार के बाद शिवसेना (यूबीटी) ने कांग्रेस पर जमकर निशाना साधते हुए कहा था कि कांग्रेस ने हरियाणा में आआपा और समाजवादी पार्टी को सीट ना देकर गलती की। पार्टी के मुखपत्र सामना में भी लिखा गया कि कांग्रेस नेताओं के अति आत्मविश्वास और घमंड ने हरियाणा में हार की भूमिका निभाई। पार्टी नेता संजय राउत ने तो यहां तक कह दिया कि कांग्रेस को लगने लगा था कि वह अकेले जीत सकती है इसलिए किसी को भी सत्ता में भागीदार बनाना उचित नहीं समझा था।

पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 99 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। कांग्रेस कुल 329 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। जिसमें से 145 सीटों पर बिना किसी गठबंधन की अकेले चुनाव लड़ी थी। इनमें कांग्रेस 37 सीटों पर चुनाव जीती थी। कांग्रेस का बिना किसी दल से गठबंधन में जीत का औसत, 25.52 प्रतिशत रहा था। जबकि कांग्रेस 184 सीटों पर साथी दलों से गठबंधन करके चुनाव लड़ी थी। इसमें कांग्रेस ने 62 सीट जीती थी और जीत का औसत 33.75 प्रतिशत रहा था। इस तरह देखें तो कांग्रेस को अकेले चुनाव लड़ने की बजाय गठबंधन साथियों की बदौलत बड़ी जीत हासिल हुई थी। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 13 करोड़ 67 लाख 59 हजार 64 यानी 21.29 प्रतिशत वोट मिले थे। गठबंधन करने के कारण 2019 की तुलना में 2024 में कांग्रेस को 1.91 प्रतिशत अधिक वोट मिले थे।

कांग्रेस पंजाब, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, गोवा, कर्नाटक, लक्षद्वीप, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, उड़ीसा, तेलंगाना व पश्चिम बंगाल में अपने बूते चुनाव लड़ी थी। जबकि बिहार, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, केरल, महाराष्ट्र, पांडिचेरी, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश में गठबंधन करके चुनाव लड़ा था। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, आंध्र प्रदेश, दादरा नगर हवेली व दमन दीव, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, मध्य प्रदेश, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तराखंड ऐसे प्रदेश हैं जहां लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल सका था।

हरियाणा विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका महाराष्ट्र में लगा जहां उनकी सीटें 44 से घटकर 16 रह गई। महाराष्ट्र में कांग्रेस शिवसेना (यूबीटी) व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के साथ महाविकास अघाड़ी बनाकर चुनाव मैदान में उतरी थी। वहां, कांग्रेस सबसे अधिक 101 सीटों पर चुनाव लड़ी जिसमें महज 16 सीट ही जीत पाई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 80 लाख 20 हजार 921 वोट मिले जो कुल मतदान का 12. 42 प्रतिशत थे। महाराष्ट्र में कांग्रेस की जीत का स्ट्राइक रेट 15.38 प्रतिशत ही रहा।

संसद के शीतकालीन सत्र का समापन हो चुका है। जिसमें अधिकांश समय कांग्रेस ने अदानी मुद्दे को लेकर संसद नहीं चलने दी। इससे संसद का कार्य पूरी तरह प्रभावित रहा। इसको लेकर भी कांग्रेस की सहयोगी तृणमूल कांग्रेस, सपा ने कांग्रेस को घेरते हुये आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर बहस नहीं होने देना चाहती है तथा सिर्फ अदानी मुद्दे को ही जिंदा रखे हुए हैं। यदि संसद चलती तो कई तरह के मुद्दों पर सरकार को घेरा जा सकता था।

इंडी अलायंस में जिस तरह की खटपट वर्तमान समय में चलने लगी है, वह अलायंस के लिए शुभ नहीं मानी जा सकती है। अलायंस में शामिल दल ही विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के नेतृत्व को नकारने लगे है इससे बुरी बात कांग्रेस पार्टी के लिए और क्या हो सकती है। लोकसभा चुनाव में जिस तरह से विपक्षी पार्टियों ने एकजुट होकर गठबंधन बनाकर केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी। वहीं, गठबंधन अब धीरे-धीरे कमजोर पड़ता जा रहा है।

आने वाले समय में दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने हैं। वहां भाजपा चुनाव जीतने की पूरी रणनीति बनाने में जुटी हुई है। आआपा चाहती है कि वह दिल्ली की सत्ता पर फिर से काबिज हो। मगर कांग्रेस का रवैया देखकर आआपा भी सकते में है। पार्टी के नेता कांग्रेस को वोट कटवा के रूप में देख रहे हैं तथा खुलेआम भाजपा की बी टीम के रूप में काम करने का आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की दो सूची जारी कर दी है। शेष सीटों पर भी जल्दी ही प्रत्याशियों के नाम घोषित करने की तैयारी चल रही है। यदि दिल्ली चुनाव में आआपा पराजित हो जाती है तो गठबंधन के ताबूत में वह आखरी कील साबित होगी।

कांग्रेस को यदि इंडी गठबंधन को बचाना है तो अपने सहयोगी क्षेत्रीय दलों की भावनाओं को समझ कर फैसला करना होगा। तभी कांग्रेस अपना राजनीतिक वजूद को बचा पाएगी। इंडी गठबंधन टूटने की स्थिति में कांग्रेस का भी कमजोर होना तय माना है। क्योंकि कांग्रेस अकेले भाजपा से मुकाबला नहीं कर सकती है। गठबंधन के साथी दलों की मदद से ही कांग्रेस मजबूत हो सकेगी, इस बात से कांग्रेस नेता भी अच्छी से वाकिफ हैं।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / रमेश