मकर संक्रांति पर तिलभांडेश्वर महादेव का चंदन ,गुलाब से दिव्य श्रृंगार ,उमड़े श्रद्धालु
वाराणसी,14 जनवरी (हि.स.)। मकर संक्रांति पर्व पर मंगलवार शाम पांडेय हवेली (बंगाली टोला इंटर कालेज के समीप) स्थित श्री श्री तिलभांडेश्वर महादेव का भव्य श्रृंगार चंदन, गुलाब से किया गया। बाबा के श्रृंगार के बाद दर्शन पूजन के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी।
मकर संक्रांति पर तिलभांडेश्वर महादेव का खास श्रृंगार


वाराणसी,14 जनवरी (हि.स.)। मकर संक्रांति पर्व पर मंगलवार शाम पांडेय हवेली (बंगाली टोला इंटर कालेज के समीप) स्थित श्री श्री तिलभांडेश्वर महादेव का भव्य श्रृंगार चंदन, गुलाब से किया गया। बाबा के श्रृंगार के बाद दर्शन पूजन के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी।

मान्यता है कि मकर संक्रांति पर्व पर तिलभांडेश्वर महादेव का शिवलिंग तिल भर बढ़ता है। इस कारण ही इस मंदिर को तिलभांडेश्वर कहा जाता है। काशी खंड में भी तिलभांडेश्वर महादेव का उल्लेख है। मंदिर में सावन माह के सभी सोमवार और महाशिवरात्रि पर दर्शन पूजन के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। तिलभांडेश्वर महादेव शिवलिंग के संबंध में यहां मान्यता प्रचलित है कि ये स्वयंभू शिवलिंग है। ये क्षेत्र ऋषि विभांड की तप स्थली था। ऋषि विभांड यहीं पर शिव पूजा करते थे। भगवान ने उनके तप से प्रसन्न होकर वरदान दिया था कि ये शिवलिंग हर साल तिल के बराबर बढ़ता रहेगा। इस शिवलिंग के दर्शन से अश्वमेघ यज्ञ से मिलने वाले पुण्य के बराबर पुण्य फल मिलता है। तिल के बराबर बढ़ते रहने से और ऋषि विभांड के नाम पर इस मंदिर को तिलभांडेश्वर नाम मिला है।

एक अन्य मान्यता है कि मुगल आक्रांता बादशाह औरंगजेब जब काशी आया तो उसने अपने सैनिकों को इस मंदिर को ध्वस्त करने के लिए भेजा। सैनिकों ने शिवलिंग पर जैसे ही फावड़ा चलाया उसमें से रक्त की धारा बहने लगी। इस अद्भुत चमत्कार को देख कर मुगल सैनिक यहां से पलायित हो गए। मंदिर के महंत के अनुसार प्रयाग संगम और दशाश्वमेधघाट पर हजार बार स्नान करने का जो जितना पुण्य है। वह इस महाशिवलिंग के एक बार स्पर्श और दर्शन से प्राप्त होता है। तिलभांडेश्वर पर एक कलश जल चढ़ाने से नौग्रहों की बाधा भी दूर हो जाती है।

हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी