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अजय कुमार शर्मा
मोहम्मद रफ़ी साहब की दरियादिली के हजारों किस्से हैं। हाल ही में प्रकाशित हुई पुस्तक दास्तान-ए- हेमलता में उनकी ऐसी ही दरियादिली का एक किस्सा हेमलता जी ने साझा किया है। रफ़ी साहब जब भी अपने स्टेज़ शो करने जाते थे तो हेमलता को अवश्य अपने साथ ले जाते। एक दिन रफ़ी साहब ने उन्हें फोन किया कि शो के लिए कलकत्ते चलना है। इस शो के लिए रफ़ी साहब की पत्नी बिलकिस बानो भी उनके साथ चल रही थीं। बंबई से सुबह छह बजे की फ्लाइट लेकर यह लोग कलकत्ता आठ बजे तक पहुंच गए। वहां जोरदार स्वागत हुआ और हल्का-फुल्का नाश्ता भी। शो के प्रमोटर द्वारा भेजी कार में सवार होते हुए रफ़ी साहब ने ड्राइवर से पूछा भाई कितनी देर का सफर है?
यही कोई दो घंटे का, उसने जवाब दिया। रफ़ी साहब और हेमलता जी पिछली देर रात तक रिकॉर्डिंग करने की वजह से थके हुए थे इसी वजह से सो गए। कुछ देर बाद रफ़ी साहब की आंख खुली तो उन्होंने घड़ी देखी 11 बजने को थे। तब उन्होंने ड्राइवर से पूछा, भाई कहीं हम आगे तो नहीं निकल आए हैं। उसने जवाब दिया, नहीं साहब अभी कुछ देर में पहुंच जाएंगे। तीनों लोग आपस में बातचीत करने लगे लेकिन गाड़ी चलती ही जा रही थी... जब दोपहर हुई तो रफी साहब को हैरानी हुई। उन्होंने ड्राइवर से कुछ मजाकिया अंदाज़ में कहा ,क्यों भाई, क्या हमें वापस बंबई ले जा रहे हो...?
नहीं साहब, बस पहुंचने वाले हैं... तीनों को अब भूख के साथ थकावट भी लग रही थी, किंतु रफ़ी साहब ऐसे में अपना संयम बनाए हुए थे। करीब एक बजे कार एक घाट के पास रुकी तो सबने चैन की सांस ली। लेकिन यह खुशी ज़्यादा समय तक टिकी नहीं रह पाई। उन्हें बताया गया कि अभी तो नाव पर सवार होकर नदी पार करना है। तीनों नाव पर सवार हो गए। नदी पार करने में करीब आधे घंटे का समय लगा। जैसे ही तीनों नदी पार कर घाट पहुंचे तो वहां एक शख्स ने इन मेहमानों को घोड़ा गाड़ी में बैठने को कहा। अब तो रफ़ी साहब के मुंह से निकल ही पड़ा.. या अल्लाह आज नसीब में क्या-क्या देखना लिखा है? घोड़ा गाड़ी मेहमानो को एक रेलवे स्टेशन पर ले गई। रेलवे स्टेशन देखकर रफ़ी साहब ने कहा बस अब यही सवारी बची थी अल्लाह... रफ़ी साहब अभी भी शालीन बने रहे.. सब रेलगाड़ी से शाम के छह बजे उस शहर में पहुंचे जहां रात को प्रोग्राम होना था। वह प्रमोटर जिसने रफ़ी साहब को बुक किया था वह भी वहां आया हुआ था लेकिन रफ़ी साहब ने यहां पर भी उससे कोई शिकायत नहीं की। हां, उन्होंने उसे कुछ खाने-पीने का इंतजाम करने के लिए कहा। प्रमोटर तीनों को सर्किट हाउस ले गया। सर्किट हाउस बहुत छोटा और पुराना था। रफ़ी साहब को तो बताया गया था यह शहर समुद्र के किनारे बसा हुआ है लेकिन रफ़ी साहब तो अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक आ गए थे। खैर खाने में सबके लिए पूरी-सब्जी बनवाई गई। तीनों ने खाना खाया और थोड़ा आराम करने की इजाज़त मांगी।
बंगाल में म्यूज़िक नाइट रात भर चलती है। पहले स्थानीय कलाकार गाते हैं फिर अतिथि कलाकार। इस लिहाज़ से हेमलता जी और रफ़ी साहब को रात तीन बजे स्टेज पर पहुंचना था और सुबह छह बजे तक गाना था क्योंकि तीनों लंबा सफर तय करके आए थे और सभी को आराम की सख़्त जरूरत थी। लेकिन सर्किट हाउस में सिर्फ़ एक पलंग था और उस पर भी एक ही आदमी सो सकता था जबकि तीनों लोगों को गहरी नींद की जरूरत थी। किसी तरह एक पलंग का और इंतजाम किया गया और एक खाली बिस्तर लाया गया। एक पलंग पर रफी साहब और दूसरे पर उनकी पत्नी...हेमलता दोनों पलंग के बीच में नीचे जमीन पर बिस्तर बिछा कर सो गई ... अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि बाहर जोर-जोर से दरवाजा पीटना शुरू हो गया। तीनों की नींद तुरंत खुल गई। अभी एक भी नहीं बजा था। दरवाजा खोला तो सामने शो का प्रमोटर खड़ा था और वह अपनी छाती पीट-पीट कर रो रहा था और एक ही बात दोहराता जा रहा था... मैं बर्बाद हो गया सर...मैं लुट गया सर... रफ़ी साहब अजीब असमंजस थे तब हेमलता ने थोड़ा गुस्से से उससे पूछा, साफ-साफ बताओ क्या हुआ है? इस पर प्रमोटर ने कांपते हुए कहा ,मेरी बीवी भाग गई... बच्चों को साथ लेकर भाग गई... मैं बर्बाद हो गया मैं लुट गया... रफी साहब उनकी बीवी और हेमलता को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह अचानक हुआ क्या है और यह आदमी पुलिस के पास जाने की बजाय हम लोगों के सामने क्यों रो रहा है? हेमलता ने फिर चिल्ला कर पूछा हमसे क्या चाहिए? तब प्रमोटर असली बात पर आया। उसने बताया कि तूफान आया था और सबकुछ उड़ा ले गया। पंडाल भी और उसका घर भी... उसकी बीवी उसे छोड़कर बच्चों के साथ कहीं चली गई। रफ़ी साहब ने उसे सांत्वना देते हुए कहा कि कोई बात नहीं अगली बार जब तुम बुलाओगे तो मैं फिर आ जाऊंगा। तब उसका रोना बंद हुआ।
अगले दिन उसी तरह तीनों लोग वापस कलकत्ता हवाई अड्डे पहुंचे। शो का प्रमोटर भी साथ था। रफ़ी साहब ने बोर्डिंग पास लिया और एयरपोर्ट में अंदर घुसने से पहले एक लिफाफा प्रमोटर के हाथ में पकड़ा दिया और साथ चल रही हेमलता से कहा पीछे मुड़कर मत देखना। कुछ कदम आगे चलने के बाद हेमलता से रहा नहीं गया और मुड़कर देखा तो प्रमोटर वह लिफ़ाफ़ा पकड़े रोए जा रहा था। उसकी आंखों को देखकर लग रहा था मानो वह रफ़ी साहब के पैरों में गिरना चाह रहा था। दरअसल, रफ़ी साहब ने अपने मेहनताने के सारे पैसे उसे लौटा दिए थे।
चलते-चलते
हेमलता स्टेज पर बड़ी लोकप्रिय थी क्योंकि वह मुख्यतः लता मंगेशकर जी के गीत गाती थीं लेकिन मौका मिलने पर नूरजहां, शमशाद बेगम, मुबारक बेगम, गीता दत्त और आशा भोंसले जैसी गायिकाओं के गीत भी गा लिया करती थीं। इसीलिए वह देश-विदेश में होने वाले म्यूज़िक शो की सबसे लोकप्रिय गायिका थीं। वे मोहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार, महेंद्र कपूर और मन्ना डे जैसे सर्वाधिक लोकप्रिय गायकों के साथ मास्को, इस्तांबुल, पेरिस, सेंट पीटरवर्स, मेंड्रिक, बार्सिलोना, फ्रेंकफर्ट जैसे यूरोपीय शहरों में भी गई, अमेरिका तथा ब्रिटेन में भी। वह खुद अपने शो हेमलता कॉन्सर्ट्स के नाम से किया करती थी।
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश