महाकुम्भ बना देश के विभिन्न प्रदेश के ग्रामीणों के उत्पादन बेचने का अच्छा बाजार
महाकुम्भ नगर, 13 जनवरी (हि.स.)। महाकुम्भ धर्म एवं आस्था के साथ आर्थिक स्थिति मजबूत करने का एक सुनहरा मौका भी लेकर आया है। प्रयागराज ही नहीं पूरे देश के विभिन्न क्षेत्र से आने वाले ग्रामीण अपने हाथ से तैयार किए गए सामान बेचने के लिए आए हुए हैं। मध्य प
महाकुम्भ में जबलपुर से चिलम बेचने पहुंचे कई ग्रामीण


महाकुम्भ नगर, 13 जनवरी (हि.स.)। महाकुम्भ धर्म एवं आस्था के साथ आर्थिक स्थिति मजबूत करने का एक सुनहरा मौका भी लेकर आया है। प्रयागराज ही नहीं पूरे देश के विभिन्न क्षेत्र से आने वाले ग्रामीण अपने हाथ से तैयार किए गए सामान बेचने के लिए आए हुए हैं। मध्य प्रदेश के जबलपुर जनपद के धमोई बरखेरा गांव की प्रसिद्ध मिट्टी से बनी चिलम बेचने के लिए महाकुम्भ मेले में कई ग्रामीण पहुंचे है।

सनातन का विश्व में सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन होने के साथ महाकुम्भ देश के विभिन्न क्षेत्रों के ग्रामीणों को रोजगार का एक सुनहरा मौका दिया है। महाकुम्भ में प्रदेश के अतिरिक्त झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, हिमाचल, राजस्थान समेत विभिन्न प्रान्तों से अलग—अलग उत्पादन लेकर बेचने के लिए आए हुए हैं।

कुम्भ मेले में पहुंची मध्य प्रदेश के धमोई बरखेरा गांव की प्रसिद्ध चिलम

महाकुम्भ मेला क्षेत्र में मध्य प्रदेश के जबलपुर जनपद में स्थित धमोई बरखेरा गांव की मिट्टी से तैयार ​चिलम बेचकर धनार्जन करने के लिए कई ग्रामीण पहुंचे हुए है। धमोई बरखेरा गांव निवासी घनश्याम प्रजापति ने बताया कि तंबाकू व गांजा पीने वाली चिलम मिट्टी से बनाई जाती है और देशभर में बनाई जाती है, लेकिन बरखेरा गांव की चिलम देशभर में प्रसिद्ध है। इस चिलम की खासियत मजबूती और टिकाऊ के साथ खूबसूरत ​आकृति होती है। इस चिलम को सामान्य नागरिकों के साथ ही अखाड़े के नागा सन्यासियों की पहली पसंद होती है। मेरे गांव से लगभग पचास लोग नक्काशीदार चिलम, सादी चिलम तथा काले रंग की चिलम लेकर मेला क्षेत्र में आए हुए हैं। छोटी एवं बड़ी के आधार पर इसकी कीमत निर्धारित की गई है। घनश्याम ने बताया कि मेरे पास दस रूपए एवं 20 रुपए कीमत की चिलम है।

भेड़ के ऊन से तैयार कंबल एवं आसनी बेचने पहुंचे देश के विभिन्न क्षेत्र के नागरिक

महाकुम्भ के इस पावन अवसर पर भेड़ की ऊन से तैयार होने वाले विभिन्न प्रकार के उत्पाद लेकर देश के विभिन्न क्षेत्र के लाेग पहुंचे हुए है। वह साइकिल पर अपना उत्पाद लेकर दिन भर मेले में बेंच रहें है। झारखंड प्रदेश से पहुंचे कम्बल कारोबारी राम अधीन पाल, उमाशंकर पाल ने बताया कि हम लोग पहले अच्छी तरह से ऊन को केमिकल के माध्यम से साफ करके मुलायम बनाते हैं। इसके बाद बहुत ही सुन्दर ढंग से हाथ से कम्बल, आसन सहित अन्य उत्पाद तैयार कर रहें है। अब भेड़ की ऊन से तैयार सूत का रंग भी बदल लेते है। जिससे उसकी सुन्दरता बढ़ जाती है। जिससे लोग इसे बहुत पसंद कर रहें है। इसकी बिक्री पहले की अपेक्षा बाजार में अधिक हो रही है।

हिन्दुस्थान समाचार / रामबहादुर पाल