गोबर-गोमूत्र के बेहतर उपयोग से गौशालाओं को स्वावलंबी बनाने के प्रयास
चेन्नई, 9 सितंबर (हि.स.)। गोबर-गोमूत्र से गांव की अर्थव्यवस्था सुधारने के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता संस्था समस्त महाजन ने पिछले दो दशकों में जीव दया, पशु कल्याण और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। वर्ष 20
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चेन्नई, 9 सितंबर (हि.स.)। गोबर-गोमूत्र से गांव की अर्थव्यवस्था सुधारने के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता संस्था समस्त महाजन ने पिछले दो दशकों में जीव दया, पशु कल्याण और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। वर्ष 2023-24 में संस्था ने 51 करोड़ रुपये का बजट खर्च किया, जो किसी भी एनजीओ द्वारा जीव दया और पर्यावरण संरक्षण पर खर्च की गई सबसे बड़ी राशि है।

संस्था के मैनेजिंग ट्रस्टी डॉक्टर गिरीश जयंतीलाल शाह गांव और शहर में लावारिस पशुओं की बढ़ती चुनौतियों को प्राकृतिक ढंग से सुलझाने की कोशिशों में लगे हैं। संस्था ने गौशाला के निराश्रित पशुओं के गोबर-गोमूत्र के बेहतर उपयोग से गौशालाओं को स्वावलंबी बनाने के साथ-साथ जमीन को उपजाऊ बनाने और मिट्टी को जहरीली बनने से रोकने की रोकने की पहल की है। एक रिपोर्ट के अनुसार, पशुधन आबादी ‘गणना-2012’ की तुलना में 4.6 प्रतिशत बढ़कर 535.78 मिलियन के स्‍तर पर पहुंच गई है जो केंद्र और राज्य सरकारों के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई है।

एक अनुमान के मुताबिक भारत में करीब 30 करोड़ मवेशी हैं और इनसे हर रोज करीब 30 लाख टन गोबर का उत्पादन होता है लेकिन इसका बेहतर उपयोग नहीं हो पा रहा है। इसका नतीजा है कि मिट्टी से कार्बनिक तत्व घटता जा रहा है। राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए) ने बीते साल जारी एक रिपोर्ट में कहा था कि देश में पिछले 70 वर्षों में मृदा जैविक कार्बन (एसओसी) तत्व एक प्रतिशत से कम होकर 0.3 प्रतिशत पर आ गया है जो फसलों के उत्पादन और उसकी पोषण शक्ति को सीधे प्रभावित करते हैं। मिट्टी जहरीले होने से उत्पादन और उत्पाद भी जहरीला हो रहा है। इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के मुताबिक, 2020 में भारत में कैंसर के अनुमानित मामले 13.92 लाख थे, जो 2021 में बढ़कर 14.26 लाख और 2022 में बढ़कर 14.61 लाख हो गए। कुल मिलाकर स्थिति अत्यंत भयावह और चुनौती पूर्ण बनती जा रही है।

हिन्दुस्थान समाचार / डॉ आर बी चौधरी