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जयपुर, 18 सितंबर (हि.स.)। राजस्थान हाईकोर्ट ने मोटर दुर्घटना की क्लेम अपील में पिता-पुत्र की उम्र में सिर्फ छह साल का अंतर बताने को गंभीरता से लिया है। अदालत ने प्रदेश के सभी मोटर दुर्घटना दावा अधिकरणों को निर्देश दिए हैं कि वे क्लेम याचिका पेश होते समय ही दावेदारों और मृतक आदि के उम्र व जन्मतिथि से संबंधित आधार कार्ड के अतिरिक्त दुर्घटना से पूर्व का कोई एक दस्तावेज पेश करना सुनिश्चित करे। यदि ऐसे दस्तावेज उपलब्ध नहीं है तो दावेदारों से इस संबंध में शपथ पत्र लें। वहीं यदि वांछित दस्तावेज पेश नहीं किए जाए तो क्लेम याचिका को खारिज किया जा सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि लंबित क्लेम याचिकाओं में भी अधिकरण जरूरी समझे तो इस संबंध में निर्देश दे सकता है। जस्टिस उमाशंकर व्यास की एकलपीठ ने यह आदेश डूंगाराम व अन्य की क्लेम याचिका को वापस लेने के आधार पर खारिज करते हुए दिए।
अदालत ने कहा कि अधिक क्लेम राशि लेने के लिए दुर्घटना के बाद मृतक या घायल के दस्तावेजों में जानबूझकर उम्र कम लिखाई जाती है। ऐसे में आश्रितों की उम्र को समायोजित कर वास्तविकता से कम लिखते हैं। जिससे भ्रष्ट आचरण को प्रोत्साहन मिलता है। इस मामले में पिता-पुत्र में छह साल का अंतर बताया गया है। ऐसे में सिर्फ छह साल की उम्र में पिता बनना असंभव है।
मामले के अनुसार एमएसीटी कोर्ट संख्या 2 जयपुर द्वितीय ने 7 अगस्त, 2020 को अपीलार्थी डूंगाराम की पत्नी पार्वती देवी की दुर्घटना में मौत होने पर 7.71 लाख रुपए बीमा कंपनी को अदा करने को कहा था। इस आदेश के खिलाफ डूंगाराम व उसके पुत्रों ने हाईकोर्ट में अपील की थी। सुनवाई के दौरान अदालत की जानकारी में आया कि मृतका की उम्र 45 साल और उसके पति डूंगाराम की आयु चालीस साल बताई गई है। जबकि बेटे प्रदीप की उम्र 34 साल दर्शाई गई। वहीं अदालत की ओर से उम्र संबंधी अनियमिता पकडने पर अपीलार्थी ने इस अपील को वापस लेने की अनुमति मांगी। इस पर अदालत ने अपील को खारिज करते हुए सभी दुर्घटना अधिकरणों को इस संबंध में निर्देश दिए हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / पारीक