शाहजहां की बहू के मकबरा समेत तीन ऐतिहासिक इमारतों पर वक्फ बोर्ड का हक नहीं : हाई कोर्ट
जबलपुर, 1 अगस्त (हि.स.)। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने मुगल बादशाह शाहजहां की बहू बेगम बिलकिस के मकबरा समेत तीन ऐतिहासिक इमारतों को वक्फ बोर्ड की संपत्ति का हिस्सा नहीं माना है। ये तीनों इमारतें मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में स्थित हैं, जिनको अपनी
शाहजहां की बहू के मकबरा समेत तीन ऐतिहासिक इमारतों पर वक्फ बोर्ड का हक नहीं: हाईकोर्ट


जबलपुर, 1 अगस्त (हि.स.)। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने मुगल बादशाह शाहजहां की बहू बेगम बिलकिस के मकबरा समेत तीन ऐतिहासिक इमारतों को वक्फ बोर्ड की संपत्ति का हिस्सा नहीं माना है। ये तीनों इमारतें मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में स्थित हैं, जिनको अपनी संपत्ति का हिस्सा मानते हुए वक्फ बोर्ड ने वर्ष 2013 में अधिसूचना जारी की थी। इसके खिलाफ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर करके इनको प्राचीन और संरक्षित स्मारक बताया था। इस याचिका पर गुरुवार को सुनवाई करते हुए मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि ये वक्फ बोर्ड की संपत्ति का हिस्सा नहीं हो सकती हैं।

दरअसल, बुरहानपुर के सैयद रजोद्दिन और सैयद लायक अली की अपील पर मध्यप्रदेश वक्फ बोर्ड ने 2013 में एक आदेश जारी कर इन तीनों इमारतों को अपनी संपत्ति घोषित कर दिया था। आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) ने 2015 में इसके खिलाफ याचिका दायर की थी। एएसआई की ओर से कहा गया कि बुरहानपुर स्थित शाह शुजा स्मारक, नादिर शाह का मकबरा और बुरहानपुर के किले में स्थित बीबी साहिबा की मस्जिद भी प्राचीन और संरक्षित स्मारक हैं। शाह शुजा स्मारक मुगल सम्राट शाहजहां के बेटे शाह शुजा की पत्नी बेगम बिलकिस की कब्र है। बेगम बिलकिस की बेटी के जन्म देते समय मौत हो गई थी, जिन्हें बुरहानपुर में दफनाया गया था।

एएसआई ने कहा कि प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1904 के तहत इन्हें प्राचीन और संरक्षित स्मारक की श्रेणी में रखा गया था तो इसे वक्फ बोर्ड कैसे अपनी संपत्ति घोषित कर सकता है। इस पर वक्फ बोर्ड की तरफ से जवाब दिया गया कि सीईओ ने संपत्ति को वक्फ बोर्ड की संपत्ति घोषित कर दिया था तो उनके पास इसे खाली कराने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। इस तर्क को हाई कोर्ट ने नहीं माना।

हाई कोर्ट के जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने गुरुवार को सुनवाई करते हुए वक्फ बोर्ड के आदेश को रद्द कर दिया। उन्होंने कहा, 'शाह शुजा स्मारक, नादिर शाह का मकबरा और किले में स्थित बीवी साहब की मस्जिद प्राचीन और संरक्षित इमारत हैं। तीनों इमारत वक्फ बोर्ड अपने अधीन नहीं कर सकता।' 2015 में जब हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी, तब वक्फ बोर्ड के आदेश पर एएसआई को स्टे मिला था।

अधिवक्ता कौशलेंद्र पेठीया ने बताया कि 2013 में एमपी वक्फ बोर्ड ने एएसआई को आदेश दिया कि आप अपना पजेशन इमारतों से खत्म करिए। पजेशन सैयद रजोद्दिन और सैयद लायक अली को दे दीजिए। इस ऑर्डर को रिट पिटीशन में चुनौती दी गई। तब जस्टिस आरएस झा ने इस ऑर्डर पर स्टे दिया। अब जस्टिस जीएस अहलूवालिया फैसला दिया है।

जस्टिस अहलूवालिया ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में साफ किया कि प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम-1904 के तहत ये तीनों स्मारक विधिवत अधिसूचित हैं। ऐसे में यह वक्फ बोर्ड की संपत्ति का हिस्सा नहीं हो सकतीं। उन्होंने कहा कि इस संपत्ति के संबंध में वक्फ बोर्ड की ओर से गलत अधिसूचना जारी की गई। यह अधिसूचना विवादित संपत्ति पर केंद्र सरकार का स्वामित्व नहीं छीनेगी। ऐसे में मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड के सीईओ द्वारा याचिकाकर्ता एएसआई को इसे खाली करने का निर्देश देने का अनुचित कदम उठाया है।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर / प्रभात मिश्रा